18 फरवरी 2017 को सुप्रीमकोर्ट ने वन्दे मातरम् के गायन पर न्यायिक दिशा – निर्देश जारी करने से इन्कार कर दिया था | जस्टिस दीपक मिश्रा की पीठ ने साफ़ कह दिया था कि ” संविधान में राष्ट्रीय गीत [ वंदेमातरम् ] की कोई अवधारणा नहीं है ….. संविधान के अनुच्छेद 51 A में केवल राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्र गान [ जन गण मन ] का उल्लेख है | ” 1985 में राष्ट्र गान से संबंधित एक स्कूल का मामला सामने आया था , जब स्कूल प्रबन्धन ने ईसाई विद्यार्थियों को राष्ट्र गान न गाने पर स्कूल से नाम काट दिया था | इस मामले में सुप्रीमकोर्ट ने तीनों विद्यार्थियों के नाम दोबारा लिखने का आदेश देते हुए कहा कि इसकी बाध्यता का कोई प्रावधान मौजूद नहीं है | अभी कुछ ही माह पहले 28 मार्च 17 को मेरठ [ उ . प्र . ] के मेयर हरिकांत अहलूवालिया ने कथित तौर पर सात नगर सेवकों को मीटिंग में हिस्सा लेने से इन्कार कर दिया क्योंकि उन्होंने वंदे मातरम गाने से इन्कार कर दिया था। मेयर और भाजपा नेता हरिकांत अहलूवालिया ने नगर निगम बोर्ड के सभी पार्षदों को राष्ट्रगीत वंदे मातरम गाने के निर्देश भा जारी किए थे ।
निर्देश में कहा गया था कि जो ऐसा नहीं करेगा उसे बोर्ड मीटिंग रूम में घुसने या मीटिंग में हिस्सा लेने की अनुमति नहीं दी जाएगी। नगर निगम बोर्ड में कुछ मुस्लिम पार्षद भी हैं जिन्होंने इस घोषणा का विरोध किया और सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि वंदे मातरम गाना अनिवार्य नहीं है । पिछले साल सुप्रीमकोर्ट ने सिनेमा घरों में फिल्म के आरंभ में ‘ जन गण मन ‘ का गायन अनिवार्य कर दिया था | अब मद्रास हाईकोर्ट ने विगत 25 जुलाई को आदेश दिया है कि सभी स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटीज में हफ्ते में एक दिन वंदे मातरम बजाना जरूरी होगा। यह एक दिन सोमवार से शुक्रवार के बीच होगा। इसके साथ ही सरकारी दफ्तरों, संस्थानों, प्राइवेट कंपनी और किसी भी फैक्ट्री में कम से कम एक बार राष्ट्रगान बजाना होगा। मद्रास हाईकोर्ट ने यह भी कहा है कि अगर किसी को वंदे मातरम गाने में दिक्कत है तो उसे बाध्य नहीं किया जाएगा, लेकिन वजह तर्कपूर्ण होनी चाहिए।
न्यायमूर्ति एमवी मुरालीधरन ने इस फैसले के संबंध में और भी कई बाते कही। उन्होंने कहा, “अगर लोगों को राष्ट्रीय गीत बंगाली या संस्कृत भाषा में गाने में परेशानी होती है तो राष्ट्रीय गीत को तमिल भाषा में अनूदित करने के लिए कदम उठाए जा सकते हैं।” यह मामला के. वीरामणी नाम के एक शख्स की याचिका को लेकर सुर्खियों में रहा था। वीरामणी बीटी असिस्टेंट की नौकरी के लिए लिखित परीक्षा में फेल हो गए थे। परीक्षा में राष्ट्रीय गीत को लेकर एक सवाल था जिसका जवाब वह इसलिए नहीं दे पाए , क्योंकि उन्हें बंगाली भाषा समझ नहीं आती थी। नौकरी के लिए लिखित परीक्षा में न्यूनतम 90 अंक हासिल करना जरूरी था लेकिन वह सिर्फ 89 अंक ही हासिल कर पाए। बहस के दौरान यह बात निकलकर सामने आई कि वंदे मातरम को मूल रूप से संस्कृत में नहीं लिखा गया था | दूसरी ओर यह एक ऐतिहसिक तथ्य है कि कि इस गीत की आरंभिक जो दो पंक्तियाँ लिखी गयीं , वे संस्कृत भाषा में थीं | कोर्ट ने वीरामनी को उस पोस्ट पर नियुक्त करने का भी आदेश दिया है |
कोर्ट ने यह भी कहा, ”इस देश में सभी नागरिकों के लिए देशभक्ति ज़रूरी है. यह देश हमारी मातृभूमि है और देश के हर नागरिक को इसे याद रखना चाहिए | आज़ादी की दशकों लंबी लड़ाई में कई लोगों ने अपने और अपने परिवारों की जान गंवाई है | इस मुश्किल घड़ी में राष्ट्रगीत वंदे मातरम से विश्वास की भावना और लोगों में भरोसा जगाने में मदद मिली थी |” कोर्ट ने कहा है, ”इस देश के युवा ही भविष्य हैं | उम्मीद है कि इस आदेश को सकारात्मक प्रेरणा के रूप में लिया जाएगा |” इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए
चेन्नई के एडवोकेट के .पी . अनंतकृष्णा ने कहते हैं, ”तमिलनाडु सरकार इस आदेश को लागू करने के लिए बाध्य है | इसे सरकार अगर लागू नहीं करती है तो यह कोर्ट की अवमानना होगी | इस फ़ैसले से दूसरे राज्य भी जु़ड़े हैं , लेकिन उनके लिए अनिवार्य नहीं है |” शिक्षाविद् प्रिंस गजेंद्र बाबू ने कोर्ट के इस फ़ैसले पर कहा, ”शिक्षण संस्थान छात्रों को ज्ञान देने के लिए पाठ्यक्रम पर काम करते हैं | हम सिलेबस के ज़रिए अपने लक्ष्य हासिल करते हैं | एक स्कूल को क्या करना चाहिए और शिक्षा में क्या शामिल करना है, इस पर शिक्षा विभाग, विशेषज्ञ, अभिभावक और शिक्षक को फ़ैसला लेना चाहिए |”
उन्होंने कहा, ”कोर्ट यह फ़ैसला नहीं कर सकता कि स्कूल कैसे चलाना है| हम मद्रास हाई कोर्ट के फ़ैसले को मानने के लिए मजबूर हैं क्योंकि हम कोर्ट का सम्मान करते हैं | अगर कोई शख़्स वंदे मातरम गा रहा है तो हम इसे लेकर आश्वस्त नहीं हो सकते हैं कि वह देशभक्त है या नहीं है |” वास्तव में वंदेमातरम् को थोपा नहीं जा सकता | इसके प्रमुख समर्थक नोबेल पुरस्कार विजेता रवीन्द्रनाथ टैगोर ने साफ़ कहा है कि किसी मुसलमान से इसके गायन की आशा नहीं की जा सकती है | उन्होंने 1937 ई॰ में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने कहा था, ‘‘वन्देमातरम् वास्तव में दुर्गा देवी की वन्दना है। यह सत्य इतना स्पष्ट है कि इस पर बहस नहीं की जा सकती। बंकिम ने अपने इस गीत में बंगाल से दुर्गा का अटूट संबंध बताया है। इसलिए किसी भी मुसलमान से यह आशा नहीं की जा सकती कि वह दस हाथों वाली इस देवी को राष्ट्रीयता की भावना से स्वदेश के रूप में पूजेगा। इस साल हमारी पत्रिका के बहुत से पाठकों ने वन्देमातरम् के गायन वाले कुछ स्कूलों के हवाले दिए हैं और सबूतों के साथ सम्पादकों को लिखा है कि यह गीत दुर्गा देवी का भजन ही है।’’ (सेलेक्टेड लेटर्स आफ रवीन्द्रनाथ टैगोर, सम्पादक दत्ता तथा रॉबिन्सन, कैम्ब्रिज, 1997, पृ॰ 487) | टैगोर जी को पता था और यह सच भी है कि इस्लाम की मूल धारणा-एकेश्वरवाद-के खि़लाफ़ है। मुसलमान केवल अल्लाह की भक्ति – बन्दगी करता है, उसी के समक्ष झुकता है, अन्य किसी की न तो वह इबादत कर सकता है और न ही किसी दूसरे के सामने झुक सकता है। – Dr RP Srivastava