मोदी सरकार पर यह आरोप भी लग रहा कि उसके अब तक के कार्यकाल में रोज़गार के अवसर लगातार घट रहे हैं | युवा बेरोज़गारी से त्रस्त हैं | जो सेवारत थे , उनमें से बहुतों की नौकरियां छूट गई हैं और कुछ की नौकरियों पर ख़तरे मंडरा रहे हैं | भारत की सूचीबद्ध कंपनियों के रोजगार के आंकड़ों का प्रतिष्ठित अंग्रेज़ी समाचारपत्र ‘ इंडियन एक्सप्रेस ‘ द्वारा किए गये विश्लेषण के अनुसार वित्त वर्ष 2016-17 में ज्यादातर कंपनियों में पिछले वर्षों की तुलना में नौकरियां कम हुई हैं। इस समाचारपत्र के पास इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी और फाइनेंशियल सर्विसेज सेक्टर कंपनियो को छोड़कर अन्य क्षेत्रों की 121 कंपनियों के रोजगार से जुड़े आंकड़े हैं। ये सभी कंपनियां बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसए) में सूचीबद्ध हैं और वित्त वर्ष 2016-17 से जुड़े इनके आंकड़े उपलब्ध हैं।आंकड़ों के अनुसार इन कंपनियों ने पिछले वित्त वर्ष के 742,012 की तुलना में वित्त वर्ष 2016-17 में केवल 730,694 नौकरियां दीं। रोजगार में 11,318 की ये कमी धातु, ऊर्जा, कैपिटल गुड्स, निर्माण क्षेत्र और एफएमसीजी क्षेत्र की कंपनियों में हुई है। इन कंपनियों के आंकड़ों से पुष्टि होती है कि नौकरियों में कमी लगातार दूसरे साल जारी है। जिन 107 कंपनियों के पिछले तीन वित्त वर्षों के आंकड़े हैं उनमें मार्च 2015 तक कुल 684,452 कर्मचारी थे जिनकी संख्या मार्च 2016 में घटकर 677,296 रह गयी और मार्च 2017 तक ये संख्या घटकर 669,784 हो गयी। नौकरी में कमी की संख्या छोटी लग सकती है ,लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार यह एक प्रवृत्ति को दिखाती है जो चिंता का विषय है।
देश की सबसे बड़ी कंपनियों के कर्मचारियों में कमी से इन कंपनियों के विस्तार की योजनाओं और निकटवर्ती विकास के निराशा की स्थिति का पता चलता है। कुछ समय पहले पेश किए गए सरकारी आंकड़ों में यह बात उजागर हुई थी कि बेरोज़गार लोगों में पढ़े-लिखे युवाओं की तादाद ही सबसे अधिक है | बेरोजगारों में 25 फीसदी 20 से 24 आयुवर्ग के हैं, जबकि 25 से 29 वर्ष की उम्र वाले युवकों की तादाद 17 फीसदी है | 20 साल से ज्यादा उम्र के 14.30 करोड़ युवाओं को नौकरी की तलाश है | विशेषज्ञों का कहना है कि लगातार बढ़ता बेरोजगारी का यह आंकड़ा सरकार के लिए गहरी चिंता का विषय है | खबरों के अनुसार वित्त वर्ष 2016-17 में छंटनी के मामले में देश की बड़ी कंपनियों के नाम भी सामने आए हैं | अध्ययन में स्पष्ट रूप से पता चला है कि है कि लगातार दूसरे साल इन कंपनियों के कर्मचारियों की संख्या में कमी दर्ज की गई | खासकर मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों में मानव संसाधन समेत कई तरह के संसाधनों का पूरा उपयोग नहीं हो पा रहा है, इसलिए ये कंपनियां नई नौकरियां देने के बदले अपने कर्मचारियों की संख्या में लगातार कमी कर रही हैं |
वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर एक सरकारी अध्ययन में यह बात पाई गई कि महिलाओं में बेरोज़गारी एक गंभीर समस्या बनती जा रही है | भौतिकवाद ने उन्हें इसके लिए विवश किया है कि वे कमाएं भी | अतः हमारे देश में नौकरी की तलाश करने वालों में लगभग आधी महिलाएं शामिल हैं | बेरोजगारों में 10वीं या 12वीं तक पढ़े युवाओं की तादाद 15 फीसदी है | यह तादाद लगभग 2.70 करोड़ है | तकनीकी शिक्षा हासिल करने वाले 16 फीसदी युवा भी बेरोजगारों की कतार में हैं | इससे साफ है कि देश के तकनीकी संस्थानों और उद्योग जगत में और बेहतर तालमेल जरूरी है | पिछले कुछ वर्षों में इंजीनियरिंग के डिग्रीधारी युवा बेरोज़गारी की ओर अग्रसर हैं | यह भी एक चिंताजनक स्थिति है |अर्थशास्त्रियों का कहना है कि बेरोजगार युवाओं की तेजी से बढ़ती तादाद देश के लिए खतरे की घंटी है | अतः सरकार को इस समस्या की ओर तुरंत ध्यान देना चाहिए |
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर द स्टडी आफ रीजनल डेवलपमेंट के अमिताभ कुंडू कहते हैं, “यह खतरे की स्थिति है | केंद्र सरकार भारी तादाद में रोजगार देने वाले उद्योग नई नौकरियां पैदा करने में नाकाम रही है | इसी से यह हालत पैदा हुई है | ” एक अन्य अर्थशास्त्री प्रोफेसर डी के भट्टाचार्य कहते हैं, “बेरोजगारों को नई सरकार से काफी उम्मीदें है | इस समस्या के समाधान के लिए कौशल विकास और लघु उद्योगों को बढ़ावा देना जरूरी है |” वे कहते हैं कि युवाओं को नौकरी के लायक बनाने के लिए वोकेशनल ट्रेनिंग के जरिये कौशल विकास बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए |
– Dr RP Srivastava