क्या हमारे देश के जनप्रतिनिधि शक्ति संपन्न हैं कि जब चाहा अपना वेतन बढ़ा लिया और जब चाहा विशेषाधिकार की दुहाई देकर अपने को जनता से अलग बताने लगे ? फिर जनता के पास उन्हें चुनकर भेजने के बाद किंचित भी अधिकार नहीं बचता | उसके अधिकार की बहाली में पूरे पांच साल लगते हैं ! यह भी सच है कि कभी जनता विवश होकर अपराधी तत्व को ही अपने जन प्रतिनिधि के तौर पर आगे भेजती है , क्योंकि उसके पास बेदाग को चुनने का विकल्प ही नहीं बचता | चुनकर भेज भी दिया , तो उसे वापस बुलाने का मतदाता के पास अधिकार ही नहीं होता , जबकि स्वस्थ लोकतंत्र में मतदाताओं को ऐसा अधिकार ज़रूर मिलना चाहिए |  यह स्वागतयोग्य बात है कि संसद और चुनाव आयोग अपराधी तत्वों को छांटने के लिए आमादा दिखते रहे हैं , लेकिन इन्हें इस दिशा में अभी तक अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी है |

इसकी एक बड़ी वजह क़ानूनी रुकावट भी रही है , जिसे दूर करने हेतु सुप्रीमकोर्ट प्रयासरत है | अभी पिछले दिनों सजायाफ्ता जनप्रतिनिधियों के छह साल तक चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाने के प्रावधान की समीक्षा के लिए दायर याचिका पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट ने इन्कार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश जे एस खेहर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि हमने कानून नहीं बनाया तो दखल क्यों दें ?

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि यह कानून संसद ने बनाया है। न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र से यह मामला बाहर है। पीठ ने यहां तक पूछा कि क्या ऐसी कोई व्यवस्था बन सकती है जिसमें ऐसे नेताओं के बारे में जनता को जागरूक किया जा सके। हालांकि बेंच ने भाजपा नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय की लंबित याचिका की समीक्षा के लिए नई याचिका दायर करने की अनुमति दे दी।

इसमें अपील है कि दागी नेताओं के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगना चाहिए। न्यायिक परिसर व अन्य महत्वपूर्ण जगहों पर इन लोगों के प्रवेश पर भी प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। संसद ने कानून बनाया था कि जिन जनप्रतिनिधियों को दो साल या अधिक की सजा हो जाती है वे छह साल तक कोई भी चुनाव नहीं लड़ सकते। याचिकाकर्ता ने पीठ के समक्ष अपील की थी कि जब अयोग्यता सजा के दिन से शुरू हो जाती है तो इसे लेकर बने कानून में भी बदलाव होना चाहिए। उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पहले ही दो मामलों को लेकर जवाब – तलब कर रखा है। इसमें एक सवाल चुनाव लड़ने की अधिकतम आयु तय करने का है तो दूसरा न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता से जुड़ा है। ज़ाहिर है , ये दोनों सवाल बड़े महत्वपूर्ण हैं | वास्तव में देश के लोकतंत्र को स्वस्थ और सबल बनाने में मतदाताओं की भूमिका अति महत्वपूर्ण है | अतः इन्हें जागरूक किया जाना चाहिए , छल – फ़रेब करनेवाले , आपराधिक पृष्ठभूमि वाले संस्कारहीन , असहिष्णु जनों को सत्ता कदापि न मिले | – Dr RP Srivastava

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