जी एस टी कायदों में बार – बार बदलाव किया जा रहा है | गुजरात के विधानसभा चुनाव को देखते हुए जी एस टी कौंसिल की गुवाहाटी में पिछले दिनों संपन्न हुई 23 वीं बैठक में कुछ और रियायतें दी गई हैं | 177 चीज़ों पर से 28 फीसद की जी एस टी को घटाकर 18 फीसद कर दिया गया है | ऑफ्टर शेव, चॉकलेट्स, च्विंइग गम, डिओडरेंट, वॉशिंग पाउडर, डिटर्जेंट और मार्बल जैसे आइटम्स को 28% के दायरे से घटा कर 18% के दायरे में ला दिया है। विपक्ष ख़ासकर कांग्रेस इसे नाकाफ़ी बता रही है |

मार्बल को तो सस्ता कर दिया गया है , लेकिन आम जन से सीधे जुड़ी चीज़ सीमेंट पर 28 फीसद जी एस टी रहने दिया गया है | पेंट की भी यही स्थिति है , जबकि प्रधानमंत्री आवास योजना चल रही है और सभी आवासहीन लोगों को घर मुहैया कराना लक्षित है | कहा जा रहा है कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभाओं के चुनावों के मद्देनज़र इतनी रियायतें दी गई हैं | कांग्रेस बार – बार इस मुद्दे पर अपना विरोध जता रही है |

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी ने इसे गब्बर सिंह टैक्स करार दिया था | कौंसिल के गुवाहाटी फैसले के बाद भी कांग्रेस नेता रण दीप सिंह सुरजेवाला ने इसकी आलोचना की और कहा कि इसका गब्बर सिंह स्वरुप अभी समाप्त नहीं हुआ है | यह सच है कि जी एस टी का असर गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावों पर पड़ेगा |

अहमदाबाद के कारोबारियों से एक मीडिया प्रतिष्ठान ने जब इस विषय पर बात की , तो उन्होंने नाराज़गी जताई | एक कारोबारी जेसा राम ने तो यहाँ तक कह दिया कि कई बार लगता है कि दुकान बंद करके कुछ और शुरू करना होगा | जेसाराम का कहना है कि हम लोगों को जीएसटी की सही जानकारी नहीं है, ऐसे में परेशानी बहुत ज़्यादा है | अगर यह डायरेक्ट टैक्स होता और इतना पेपर वर्क न होता तो परेशानियां न होतीं | बाज़ार के लोगों में मीडिया को लेकर भी काफी नाराज़गी है | उनका कहना है कि मीडिया उनकी तकलीफ़ों पर बात ही नहीं करती | दुकानदारों का कहना है कि जब से जीएसटी लागू हुआ है बिज़नेस गिर गया है | पचास फ़ीसदी तक बाज़ार प्रभावित हुआ है |

वित्त मंत्री अरुण जेटली ट्वीट करके भी कोई घोषणा कर देते हैं और दूसरे दिन राजस्व सचिव अगली छूट का ऐलान कर देते हैं। इससे आम आदमी को तो यही संदेश जाता है कि अगर मंत्री या राजस्व सचिव चाहें तो कुछ भी कर सकते हैं। इससे अपेक्षाएं बढ़ती हैं और पूरी न होने पर नाराजगी भी। कायदे से होना यही चाहिए कि जीएसटी कौंसिल की बैठक में निर्णय लिए जाएं और उसके बाद ही कोई घोषणा हो। वह भी हर बार और हर महीने नहीं। वरना नियमों या दरों की कोई गंभीरता ही नहीं रहेगी।

अब तक देखा जा रहा है कि चार महीने तक पूरे देश को जीएसटी की प्रयोगशाला बना कर रखा गया और अब जब चुनाव भारी लग रहा है तो उसमें दिखावटी छूट देने की व्यवस्था हो रही है। इसका नुकसान देशवासियों को हो रहा है। देश की अर्थव्यवस्था को हो रहा है। इसलिए, जो कुछ भी किया जाना है जल्दी और सोच-समझ कर किया जाना चाहिए। सब कुछ व्यापारियों और कारोबारियों पर डालने की बजाय कुछ काम सरकार को अपने ऊपर या अपने अधिकारियों के ऊपर भी डालना चाहिए | – Dr RP Srivastava

 

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