खबरनामा

पुस्तक कुछ कहती है 

कहानियों का कारवाँ (उर्दू एवं अरबी की चयनित कहानियाँ) अनुवाद एवं संपादन – राम पाल श्रीवास्तव प्रकाशक – समदर्शी प्रकाशन, साहिबाबाद प्रथम संस्करण – 2024 मूल्य – 200 रुपए ….. उर्दू “कहानियों का कारवाँ” वजही (1635) की प्रतीकात्मक कथा “सबरस” से शुरू होकर सैयद सज्जाद हैदर की कहानी “नाश्ते की Read more…

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मन-मस्तिष्क को झिंझोड़ते हुए

“बचे हुए पृष्ठ ” द्वारा : राम पाल श्रीवास्तव विधा : आलेख शुभदा बुक्स द्वारा प्रकाशित पृष्ठ संख्या : 181 मूल्य : 320.00 समीक्षा क्रमांक :112 समीक्षा का ब्लॉग लिंक : https://atulyakhare.blogspot.com/…/Bache-Huye-Prisht-By… समय समय पर उपजी भिन्न भिन्न राजनीतिक परिस्थितियों एवं उनसे संबद्ध ज़ुदा जुदा परिवेशों पर एवं विभिन्न ज्वलंत Read more…

अतिथि लेखक/पत्रकार

हम मरि जाब, हमरे लिये कोऊ कुछू नाही करत हय !

एक दिन अवधी महारानी ने शोकाकुल होकर मुझसे कहा, ” तू लोग काहे हमार दुरगत करत जात हव ? हमरे लिये कोऊ कुछू नाही करत हय … ऐसन मा हमरे मरैम केत्ती देर हय।” मैंने कहा कि आपने अच्छा किया। हमें ध्यान दिलाया। आप ठीक कहती हैं। हम लोगों ने Read more…

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बलरामपुर को ” पांचों पांडवों ” की याद कब आएगी ?

अमृत महोत्सव चल रहा था , चल रहा है । आमजन में देश की स्वाधीनता के लिए जी तोड़ कोशिश करनेवाले अमर सेनानियों के प्रति बढ़चढ़ कर कृतज्ञता का भाव पाया जाना स्वाभाविक है। अफ़सोस की बात है कि बलरामपुर के अमर शहीदों को सही अर्थों में सम्मान दिया जाना Read more…

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अशफ़ाक़ुल्लाह खां, जिन्होंने शहादत का जाम हंस के पिया

ज़बाने हाल से अशफ़ाक की तुर्बत ये कहती है, मुहिब्बाने वतन ने क्यों हमें दिल से भुलाया है? बहुत अफ़सोस होता है बड़ी तकलीफ़ होती है, शहीद अशफ़ाक की तुर्बत है और धूपों का साया है। शहीद अशफ़ाक उल्लाह खां ने अपनी इस रचना के द्वारा अपनी शहादत का ऐलान Read more…

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जनता की ख़ातिर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्र सरकार की ओर से पेट्रोल-डीज़ल पर एक्साइज ड्यूटी में कटौती को विभिन्न क्षेत्रों पर सकारात्मक प्रभाव डालने वाला बताया। ‘ It is always people first for us !’ प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे लिए हमेशा से लोग पहले होते हैं। उन्होंने कहा कि इसका विभिन्न Read more…

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देश में अम्न व इन्सानियत का संदेश – वक़्त की बड़ी ज़रूरत

देश के शुभचिंतकों , हितैषियों और विवेकशील लोगों को इस बात का शिद्दत से अहसास है कि हमारा देश इस समय सांप्रदायिकता की आग में तेज़ी से जलने लगा है | उन्हें इस बात की काफ़ी चिंता भी है कि अगर इस नकारात्मक प्रवृत्ति पर फ़ौरन रोक नहीं लगाई गयी , तो स्थिति काफ़ी गंभीर हो सकती Read more…

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मीडिया बोले तो…. सारे अपराध करो , फिर भी बचे रहो 

क्या आज की मीडिया ग़ैर ज़िम्मेदार हो गई है या ग़ैर ज़िम्मेदार होकर ग़ुलाम बन चुकी है ? दोनों बातें सच हैं ! देश के लोकतंत्र के लिए घातक हैं !! और इसका वर्तमान रूप में बना रहना बड़ी सांसत !!! प्रेस परिषद के पूर्व अध्यक्ष जस्टिस चन्द्रमौलि कुमार प्रसाद का एक Read more…

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आर टी ई फीस प्रतिपूर्ति मामले में सरकार की फ़ज़ीहत

आर टी ई फीस प्रतिभूति मामले में सरकार को झटका लगा है | हाईकोर्ट ने एक फ़ैसले में मामले की सुनवाई एक अक्टूबर 2019 को मुक़र्रर की है | 

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सेन्ट्रल बैंक में जबरन लिए जा रहे आधार और थंब प्रिंट 

सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बावजूद कि बैंक एकाउंट और मोबाइल सिम के लिए आधार आवश्यक नहीं है, सेन्ट्रल बैंक आफ इण्डिया की नई दिल्ली स्थित सुखदेव विहार शाखा में जबरन आधार संख्या ही नहीं आधार आधारित ‘थंब प्रिंट’ लिए जा रहे हैं | यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश Read more…

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 लुटे उपभोक्ताओं को सुप्रीम कोर्ट ने दी बड़ी राहत 

 इस देश का दुर्भाग्य है कि यहाँ पर अक्सर हर स्तर पर उपभोक्ताओं का शोषण दोहन ही नहीं उनके साथ छलकपट धोखाधड़ी की जाती है। उपभोक्ता चाहे जिस क्षेत्र से जुड़ा हो उसे बलि का बकरा बनाने का दौर शुरू हो गया है और विभिन्न कम्पनियों की उपभोक्ताओं के साथ Read more…

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जेनेरिक दवाओं की उपलब्धता कब ?

कहावत है कि आज कुछ बदलते दौर में जो कोर्ट – कचहरी और बीमारी से बच जाए उससे बड़ा कोई सौभाग्यशाली कोई नहीं होता है, क्योंकि दोनों जगहों पर खर्चे की कोई सीमा निर्धारित नहीं है। कोर्ट – कचहरी में जिस तरह खर्च कोई सीमा नहीं होती है, उसी तरह Read more…

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बुलंदशहर – सरग़नाओं की गिरफ़्त बेहद ज़रूरी  

कहावत है कि -“खेत खाय गदहा मार खाय जुलाहा ” |  कुछ इसी तरह की घटना विगत दिनों   बुलंदशहर के एक गाँव में पुलिस के साथ हुई है, जिसमें गुनाह किसी ने किया और सजा दूसरे को मिल गयी। इस घिनौनी घटना में एक बेगुनाह पुलिस अधिकारी एवं एक नागरिक Read more…

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लोकपाल पर अन्ना की नई हुंकार

इस देश के राजनीतिं की यह खास बात है कि जिस मुद्दे को लेकर जनमत लामबंद हो जाता है राजनैतिक मतलबी झटपट अपना रूप स्वरूप बदलकर उस मुद्दे के पक्ष में आकर मुद्दा उठाने वाले को अपना अगुआ मान लेते हैं चाहे बाबा टिकैत की किसान यूनियन रही हो चाहे Read more…

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किसानों को गुमराह करने की साज़िश? 

राजधानी की सड़कें एक बार फिर देशभर से आए किसानों के नारों से गूंजती रहीं। लेकिन प्रश्न यह है कि विभिन्न राजनीतिक दलों, कृषक समूहों और समाजसेवी संगठनों की पहल पर दिल्ली आए किसानों को एकत्र करने का मकसद अपनी राजनीति चमकाना है या ईमानदारी से किसानों के दर्द को Read more…