भारतीय राजनेताओं का अपराध से गहरा सरोकार होना देश के लोकतंत्र को कलंकित बनाता है | मगर अफ़सोस की बात है कि हमारे यहाँ राजनेताओं की आपराधिक प्रवृत्ति बढ़ी है , बल्कि यह कहें तो अधिक सही होगा कि अपराधी राजनीति में अधिक आ रहे हैं | सुप्रीम कोर्ट का मानना था कि जब मतदाताओं को इनकी आपराधिक करतूतों का पता चलेगा , तो वे उनके पक्ष में मत – प्रयोग नहीं करेंगे | लेकिन व्यवहार में ऐसा नहीं दिखा | नेशनल इलेक्शन वॉच और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) ने पिछले दिनों एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें देश के जनप्रतिनिधियों के आपराधिक रिकार्ड को एक बार फिर चिह्नित किया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि देश के मौजूदा 4856 विधायकों और सांसदों में 21 प्रतिशत यानी 1024 पर गंभीर अपराधिक मामले दर्ज हैं। चिंता और आश्चर्य की बात यह है कि 1024 में से छह फीसदी यानी 64 जन प्रतिनिधियों के खिलाफ अपहरण के मामले दर्ज हैं। इनमें 56 विधायक और आठ सांसद शामिल हैं। यहाँ यह सच्चाई भी सामने रहनी चाहिए कि हमारे देश में किसी सांसद या विधायक पर केस होना बड़ी टेढ़ी खीर है | ताज़ा रिपोर्ट में एक तथ्य यह भी उल्लेखनीय और चकित करनेवाला है कि इन सांसदों और विधायकों में सबसे अधिक संख्या भारतीय जनता पार्टी के जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों की है। प्रतिनिधियों द्वारा इलेक्शन कमीशन को दी गई जानकारी के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की गई है। एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार और उत्तर प्रदेश के विधायकों पर सबसे ज्यादा अपहरण के मुकदमें चल रहे हैं। इन दोनों राज्यों के 9-9 विधायकों के ऊपर अपहरण करने का मामला दर्ज किया गया है। दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र है, जिसके 8 विधायकों के खिलाफ अपहरण के केस चल रहे हैं। इसके बाद पश्चिम बंगाल, ओडिशा, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, केरल, पंजाब और तेलंगाना का नंबर है। एडीआर और एनईडब्ल्यू की रिपोर्ट में लोकसभा के पांच और राज्यसभा के तीन सांसदों ने अपने खिलाफ दर्ज अपहरण के मामले घोषित किए हैं। वास्तव में हमारे देश की चुनाव प्रणाली अपराधमय होती जा रही है | देखा गया है कि जो उम्मीदवार जितना अधिक खूंख्वार है , माना जाता है कि उसमें चुनाव जीतने का माद्दा उतना ही अधिक है | यह बात राजनीतिक दल सौ फ़ीसद स्वीकार करते हैं और कट्टे से कट्टे अपराधी को टिकट देने में तरजीह देते हैं | एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफ़ॉर्म [ ए डी आर ] और नेशनल वाच की रिपोर्टों के अनुसार , इस मामले में किसी भी दल ने संकोच से काम नहीं लेते | स्पष्ट है , यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक स्थिति है | दूसरी ओर सुप्रीमकोर्ट का राजनीति से अपराधी तत्वों को बाहर रखने का निर्देश बार – बार आता है | उल्लेखनीय है कि इस पर रोक का अध्यादेश कांग्रेसी नेता राहुल गाँधी के हस्तक्षेप के बाद वापस ले लिया गया था | सुप्रीमकोर्ट में दायर स्वयंसेवी संगठन ‘ लोक प्रहरी ‘ की याचिका में कहा गया था कि जब संविधान में किसी भी अपराधी के मतदाता के रूप में पंजीकृत होने या उसके सांसद या विधायक बनने पर पाबंदी है, तो फिर किसी निर्वाचित प्रतिनिधि का दोषी ठहराए जाने के बावजूद पद पर बने रहना कैसे क़ानून के अनुरूप हो सकता है | याचिका के अनुसार , इस तरह की छूट देने संबंधी प्रावधान पक्षपातपूर्ण है और इससे राजनीति अपराधीकरण को बढ़ावा मिलता है |
चुनावों में भी सांप्रदायिकता और फासीवाद का चलन बढ़ा है | होना तो यह चाहिए कि जो सांप्रदायिकता फैलाए , फासीवादी तरीक़ा अपनाए , न्याय और मानवाधिकार को पददलित करे , उसका किसी प्रकार समर्थन नहीं करना चाहिए | उसे किसी प्रकार के ‘ बल ‘ के प्रभाव में नहीं आना चाहिए | आखिर वह सपनों का भारत कब सामने आएगा , जिसके लिए देशवासियों ने बेमिसाल कुर्बानियां दी थीं ? यह कहने में संकोच नहीं कि हमारा देश नैतिक और अख्लाकी गिरावट का ज़बरदस्त शिकार है . कोई क्षेत्र ऐसा नहीं बचा है , जहाँ स्वस्थ मूल्य संचरित हों | भारतीय मीडिया का प्रभावशाली वर्ग भी एक तो ख़ुद भी ‘ पेड न्यूज़ ‘ के संगीन दौर से गुज़र रहा है , वहीं दूसरी ओर उसके द्वारा भी कुछ अच्छा करने की दूर – दूर तक आशा नहीं दिखाई पड़ती ! समाज का हर वर्ग अनवरत पतन का शिकार है . बड़े से छोटे तक सभी इसमें लिप्त हैं | देखा जाता है कि जन – जीवन के साथ खिलवाड़ करने एवं गंभीर अपराध करनेवाले अक्सर बच निकलते हैं | नक़ली दवाएं बनानेवाले , खाने – पीने की चीजों में मिलावट करनेवाले , नई नस्ल की नसों में जहर भरने वाले अपराधियों को कोई सजा नहीं होगी, क्योंकि वे नेताओं की गोद में जा बैठते हैं , और सुरक्षित , निरापद हो जाते हैं | अतः इसकी मांग जनता के बीच से उठनी चाहिए कि भ्रष्टाचारियों और मिलावटखोरों को भी राष्ट्रद्रोहियों और आतंकवादियों की श्रेणी में रखा जाए , और उन्हें भी फांसी या उम्रकैद की सजा मिले |
वास्तविकता यह है कि भष्टाचार के प्रति हम गंभीर नहीं हैं और ‘ दुर्लभ ‘ रवैया रखते हैं ! दुर्लभ इसलिए भ्रष्टाचारी भी कहता है कि भ्रष्टाचार मत करो , यह जघन्य अपराध है | भ्रष्टाचार पर बहस में न्यूज़ चैनलों पर जो चेहरे दिखाई देते हैं, उनके बारे में पता करिए, सब एक से बढ़ कर एक भ्रष्ट हैं, लेकिन देखिए भ्रष्टाचार के खिलाफ कितने बड़े सत्यवादी बन कर कैमरे के आगे बैठ जाते हैं | यह स्थिति ज़रूर बदलनी चाहिए | देश को विकास के पथ पर आगे ले जाना है तो दोहरा मापदंड त्यागकर सख्त सज़ा की ओर क़दम बढ़ाना होगा – सत्ता को भी और लोकसत्ता को भी | जिस समय ब्रिटिश उपनिवेशवाद से आजाद हुए थे , तकरीबन उसी समय चीन भी आज़ाद हुआ था | तब वह अपनी तमाम रूढिय़ों और व्याधियों से उबर रहा था , लेकिन आज चीन कहां है और हम कहां हैं ? चीन सुख-सम्पन्नता ,शक्ति , तरक्की और स्वावलम्बन की जिस ऊंचाई पर चढ़ गया, वह आज अमेरिका जैसे पूर्ण विकसित देश तक के लिए ईर्ष्या – स्पर्धा का विषय बन चुका है | आजादी के बाद से जिन नेताओं को देश के लिए कुछ करना चाहिए था, उन्होंने अपनी ऊर्जा अपनी जेबें भरने में लगा दीं | कौन नहीं जानता है कि आज के राजनेता बड़े धन्नासेठ बन चुके हैं | मगर उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं हो पाती | वे हरहाल में बचे ही रहते हैं ! उनके लिए हमारा देश स्वर्ग सदृश है ! – Dr RP Srivastava , Editor – in- Chief, ” Bharatiya Sanvad ”