“बचे हुए पृष्ठ ”
द्वारा : राम पाल श्रीवास्तव
विधा : आलेख
शुभदा बुक्स द्वारा प्रकाशित
पृष्ठ संख्या : 181
मूल्य : 320.00
समीक्षा क्रमांक :112
समीक्षा का ब्लॉग लिंक :
समय समय पर उपजी भिन्न भिन्न राजनीतिक परिस्थितियों एवं उनसे संबद्ध ज़ुदा जुदा परिवेशों पर एवं विभिन्न ज्वलंत मुद्दों तथा ऐसी घटनाओं पर जिन्हें हम जान बूझ कर अनदेखा करते हुए आगे बढ़ जाते हैं, लिखित 51 आलेखों का संग्रह है, “बचे हुए पृष्ट”, जो वरिष्ट साहित्यकार राम पाल जी के पत्रकारिता के क्षेत्र में एवं बतौर साहित्यकार उनके दीर्घकालीन अनुभव एवं गंभीर विचारण के द्योतक हैं। पुस्तक की विषय वस्तु के विषय में कुछ कहा जाए उसके पूर्व एक विशिष्ठता की ओर ध्यानकर्षित कर दूँ की पुस्तक में कहीं किसी विशेष धारा की ओर झुकाव अथवा पक्षपात परिलक्षित नहीं होता। राम पाल जी जिस किसी भी विषय या घटना को केन्द्रित कर लिखते हैं उस वख्त मन में उपजे विचार एवं भावों को शब्द रूप में प्रकट कर देना उनकी सहज शैली है जो सरल एवं सुगम्य होते हुए भी विशिष्ट बन जाती है। सहज रूप मे भाव अथवा विचार उन्हें मन के भावों से प्राप्त होते हैं, एवं वे उन्हें शब्दों में पिरो कर लेख बद्ध कर देते हैं। रचना के शब्दों में निहित भावार्थ अत्यंत गूढ़ एवं विशाल अर्थ समेटे हुए होते हैं जिस के लिए गंभीर वैचारिक पाठन अनिवार्य है। प्रस्तुत पुस्तक में प्रत्येक आलेख विशिष्ठ भाव पर केन्द्रित है अतः सम्पूर्ण एकाग्रता तथा गंभीर विचारण एवं मनन के संग पाठन ही विषय वस्तु एवं आलेख को पूर्ण रूप से समझने हेतु आवश्यक है।
रामपाल श्रीवास्तव जी लंबे समय तक पत्रकारिता से जुड़े रहे हैं एवं नवभारत टाइम्स, नवजीवन, स्वतन्त्र भारत, आज, साकेत शोभा, द पायोनियर जैसे मशहूर अखबारों को उन्होंने अपनी सेवाएं दी हैं। “बचे हुए पृष्ठ” में संकलित अमूमन समस्त आलेख तत्कालीन ज्वलंत समस्याओं को रेखांकित करते हैं।
पुस्तक में अव्यवस्था को लक्ष करते हुए लेख हैं जो पूर्णतः निष्पक्ष भाव से कमियों को इंगित करते हैं। अपने आलेखों में पूंजीवाद, साम्राज्यवाद और राजनैतिक संरक्षण एवं अव्यवस्था पर अत्यंत सधे हुए अंदाज में गंभीर विचारण एवं चिंतन प्रकट किया है। प्रस्तुत पुस्तक में राजनीति, भ्रष्टाचार, नारीदशा, प्रशासन एवं पुलिस के द्वारा अपने सत्तानशी आकाओं को प्रसन्न करने एवं चाटुकारिता के द्वारा अपने निहित स्वार्थ साधने, शिक्षा की दुर्दशा, दहेज सम्प्रदायिक विवाद, राजनीति का अपराधीकरण, अपराधियों को उनके राजनैतिक प्रश्रयदाताओं द्वारा संरक्षण जैसे तमाम ज्वलंत विषयों को अपने लेखों में महत्वपूर्ण स्थान देते हुए उन से जुड़े तमाम विषयों को भी प्रमुखता से उठाया है। संकलित लेख गंभीर, सारगर्भित, तार्किक एवं विषयों पर लेखक की मजबूत पकड़ एवं उनके गहन अध्ययन के परिचायक हैं। बहुत से लेखों को पढ़ते वख्त यूं महसूस हुआ मानो किसी प्रतिष्ठित समाचारपत्र के विद्वान संपादक द्वारा लिखित संपादकीय लेख पढ़ रहे हों। पुस्तक “बचे हुए पृष्ठ” का प्रारंभ ‘सिद्ध शक्तिपीठ देवी पाटन’ आलेख से हुआ है। यह बलरामपुर जिले में स्थित एक धार्मिक स्थल है एवं हिन्दू धर्म के अनुयायियों हेतु यह धार्मिक स्थल अत्यंत महत्वपूर्ण है।
वहीं ‘बेहतर जीवन कुछ विचार’ में वे अमीरी गरीबी की बढ़ती खाई से व्यथित होते हुए जहां इस आर्थिक असमानता के विषय पर तार्किक एवं युक्तियुक्त विचरण करते हैं वहीं इस से निबटने हेतु अपने कुछ विचार भी समस्या के निवारण हेतु प्रस्तुत करते हैं।
“ई.वी.एम. खुलासा : हमाम में सभी नंगे” एक ऐसा आलेख जो निश्चय ही बहुतों को पसंद नहीं आएगा। तथ्यों के संग यह बात सामने रख दी है की अमूमन सभी राजनैतिक दल इस का फायदा अपने हितों को साधने में कर रहे हैं। राजनीतिक पार्टियों द्वारा की जा रही चिंता, दिखावा है एवं यह देश की चुनाव व्यवस्था को ठेंगा दिखा रही है। यह कथन साइबर एक्सपर्ट के द्वारा प्रस्तुत प्रमाणों से भी सत्यापित हो जाता है। इन मशीनों में सुधार हेतु प्रयास तो अवश्य किये जा रहे हैं किन्तु उनके परिणाम प्राप्त होने तक एवं संभवतः उसके पश्चात भी क्या निष्पक्ष चुनाव की उम्मीद की जा सकती है।
इसी तारतम्य में “जुर्म के पादाश में” आलेख भी राजनीति से सम्बद्ध है जहां आपराधिक पृष्टभूमि वाले नेताओं को निर्वाचन प्रक्रिया में शामिल ही न होने दिया जाए इस विषय पर चर्चा है।
“ढांचे के गुनहगार” बाबरी मस्ज़िद विध्वंस पर केंद्रित है। बाबरी मस्ज़िद विध्वंस की जिम्मेवारियाँ प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से किस किस पर रहीं यह तो विदित ही है किन्तु भाजपा और विश्व हिन्दू परिषद जहां इसका श्रेय लेते हुए सामने आ खड़े ज़रूर थे किन्तु कहीं न कहीं यह तत्कालीन प्रधानमंत्री राव साहब की असक्रियता के बिना संभव नहीं था।
अपने लेख “पत्रकारों का दमन बनाम लोकतंत्र की मौत” के जरिए वे वर्तमान गंभीर स्थिति पर चिंता प्रकट करते हैं तथा सवाल उठाते हैं। आज अधिकतर पत्रकारिता या तो बिक चुकी है (वही सुखी भी है) अन्यथा उत्पीड़न एवं दमन झेल रही है। विरुद्ध जाते मीडिया चैनल को खरीद कर लेना, अथवा पत्रकारों की सत्ताधीशों के मन माफिक रिपोर्टिंग, बेहद आम हो चला है। वे अत्यंत मुखरता से कहते हैं कि पत्रकारों का दमन नही हो एवं उन्हें अभिव्यक्ति की आजादी हो। किन्तु फिलहाल तो हालत ये है की जो तुमको हो पसंद वाले फॉर्मूले पर रिपोर्टिंग करे बस वही सुख शांति से बसर कर सकेगा, सत्ता धीशों के विरुद्ध कहा गया एक शब्द पत्रकार को क्या कुछ भोगने पर विवश कर दे पुलिस और प्रशासन से बेहतर शायद ही कोई बतला सके। सत्ता किसी की भी हो नीचे के अधिकारी अपना रवैया नहीं बदलेंगे तब तक सुधार कदापि संभव नही है।
एक आलेख दहेज हत्या के कारणों का विस्तृत अध्ययन करते हुए जन जागरण, युवाओं में दहेज जैसी कुप्रथा को त्यागने के दृढ़ संकल्प को अनिवार्य बतलाता है तथा दहेज को ही नारी भ्रूण हत्या से सम्बद्ध करते हुए दोनों बुराइयों को हैं आपस में संबंधित ही दर्शाया गया है।
पुस्तक में अमूमन प्रत्येक ज्वलंत विषय को अपने विचारण के अधीन लाया गया है। पुस्तक में विषयों की विविधता है यथा, मोबाइल क्रांति के पश्चात पॉर्न साइट्स की युवाओं तथा बच्चे बच्चे तक बढ़ती पहुच एवं लत, महिलाओं की सुरक्षा, समलैंगिक विवाह जैसे विषयों पर भी मुखरता से भाव प्रगत किये हैं।
आलेख “स्वेच्छाचारी के बुरे नतीजे” में समलैंगिकता के मुद्दे पर चर्चा की गई है। वहीं पुस्तक “बचे हुए पृष्ठ” में साहित्य, मीडिया, पत्रकारिता, धर्म, समाज, राजनीति, सांप्रदायिकता, बलात्कार, आजादी के इतने वर्षों बाद भी समाज देश एवं कानून व्यवस्था की पटरी से उतार चुकी गाड़ी पर तीखे प्रहार किये गए हैं तो प्रशासनिक अव्यवस्था लाचार नीतियों से संबंधित तथ्यपूर्ण आलेख दिये हैं जो उनके जुझारू पत्रकारिता का प्रतीक है।
गंभीर विचारण को प्रेरित करते तथा मस्तिष्क को झिंझोड़ते हुए लेख हैं।
रामपाल जी को उनके इस गंभीर एवं विचारों के झंझावात को सहज ही उद्वेलित कर देने वाले आलेखों हेतु अनंत साधुवाद एवं शुभकामनाए।
#अतुल्य खरे
[ उज्जैन, मध्य प्रदेश ]