इस देश में सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का काम आज से नहीं बल्कि मुग़ल काल से चला आ रहा है और समय – समय तमाम ऐसे सूफी संत – महात्मा इस धरती पर अवतरित हुए हैं जो इंसानियत का पैग़ाम देकर साम्प्रदायिकता की आग को बुझाते रहे हैं। आज जबकि देश साम्प्रदायिक आग में झुलसकर राष्ट्रीय कौमी एकता के लिए खतरा बनती जा रही है और तरह – तरह के मुद्दे हमारी कौमी एकता अखंडता के लिए खतरा बनते जा रहे हैं। आज अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर पूरे देश में तनाव फैला हुआ है और लाखों लोगों की भीड़ विश्व हिंदू परिषद के आह्वान पर आयोजित धर्मसभा में शामिल होने अयोध्या जी पहुंच चुकी है। यह धर्मसभा राम मंदिर निर्माण के लिये सरकार को अंतिम चेतावनी देने के लिए बुलाई गयी है और धर्मसभा के चलते पूरी अयोध्या को छावनी मेंं तब्दील कर दिया गया है और चप्पे – चप्पे पर सुरक्षा बलों को तैनात किया गया है जिससे लोगों को सुरक्षा का कम दहशत का ज्यादा अहसास हो रहा है। कुछ इसी तरह के साम्प्रदायिक हालात में समर्थ स्वामी जगजीवन दास जी पैदा हुए थे और हिन्दू मुस्लिम में वैमनस्यता तेजी से फैलने लगी थी। तभी तो स्वामी समर्थ जगजीवन साहब ने उस समय कहा था कि जो इंसानियत छोड़ साम्प्रदायिक बातें करता है, उसे ईश्वर के यहाँ भी जगह नहीं मिलती है और हाजी वारिस अली शाह ने कहा कि जो रब है वहीं राम है। समर्थ स्वामी जगजीवन दास जी का जन्म 1671 ईसवी को उस समय भारत देश की माटी पर हुआ था, जबकि मुगल बादशाह औरंगजेब का शासनकाल (1658 से 1707 ई०) था। जो इस देश के हिंदू धर्मावलंबियों पर अत्याचार कर जबरिया इस्लाम धर्म स्वीकार करने को बाध्य कर रहा था। इतना ही नहीं बल्कि हिंदुओं के पूजा स्थल एवं मंदिरों में स्थापित देवी देवताओं की मूर्तियों को नष्ट करके वहां लूटपाट मारपीट करना तथा हिंदू धर्म उपदेशक साधु-संतों एवं महात्माओं को मरवा डालना उनका धर्म बन गया था। जो हिंदू इस्लाम धर्म स्वीकार नहीं करता था उसे प्रताड़ित कर मरवा देता था या उससे जिज़्या कर वसूल करता था।शायद यहीं कारण था ऐसे नाज़ुक हालत में संभवतः इन अत्याचारों से त्रस्त जनता की करुण पुकार को सुनकर ईश्वर ने स्वामी जी को इस धरती पर अवतरित किया था। यहीं कारण है कि स्वामी जगजीवन दास को विष्णु भगवान का अवतार माना जाता है। कहते हैं कि औरंगजेब ने एक कट्टर मुसलमान कामिल फ़क़ीर मलामत शाह को ईरान से हिंदुस्तान बुलवाया था, जो हिंदू साधू संतो की परीक्षा शाही दरबार में लेता था।कहते हैं कि इसके लिए वह एक रेशमी चादर हवा में स्थिर कर वह स्वयं उस पर बैठ जाता था और कहता था कि पहले मेरे बराबर आकर बैठो तो मैं तुम्हारे धर्म की चर्चा करूं। जो इतना नहीं कर पाता था उससे कहता कि तुम्हारा धर्म झूठा है और उस व्यक्ति का सिर कटवा देता था। जब उसे स्वामी जी की प्रसिद्धि की सूचना मिली तो उसने स्वामी जी को दिल्ली दरबार में हाज़िर होने का हुक्म दिया। स्वामी जी खुद तो उसके बुलाने पर नहीं गये, लेकिन अपने भतीजे अहलाद दास जी को जो स्वामी जी के शिष्य भी थे, उन्हें दिल्ली दरबार में भेज दिया था। अहलाद दास को दरबार में हाज़िर किया गया तो वह फ़क़ीर मलामत शाह उस समय भी हवा में स्थित रेशमी चादर के ऊपर बैठा | उसने अहलाद दास जी से कहा कि “यदि तुम हमारे बराबर बैठ सको,तो तुम्हारे पंथ की सच्चाई और सिद्धता को मैं मानूंगा !” यदि तुम ऐसा नही कर सके तो तुम्हें और तुम्हारे हिन्दू सतनामी पंथ को झूठा मानकर तुम्हारा सिर काट दिया जाएगा। यह सुनकर अहलाद दास जी ने स्वामी जी को याद करके उनसे सहायता करने की विनती करने लगे, तो उसी समय वह रेशमी चादर जल गई और मलामत शाह ऊपर से जमीन पर गिर पड़ा। मलामत शाह ने बार-बार हवा में चादर फेंकी और बार-बार वह चादर जल उठी, जिससे मलामत शाह परेशान हो गया और अहलाद दास जी से कहा तुम और तुम्हारा पंथ सच्चा है | हम दोनो बराबर ज़मीन पर हैं। इसके बाद शाही फ़रमान जारी हो गया कि सतनाम पंथ को मानने वालों को कभी सताया नहीं जाएगा। यह सही है कि इस धरती पर ईश्वर मनुष्य को इंसान बनाकर भेजता है | वह कभी हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई बनाकर नहीं भेजता है इसीलिए मनुष्य सबसे पहले मनुष्य होता है,, क्योंकि अगर वह हिन्दू मुस्लिम होता तो ईश्वर उनकी पहचान यानी बनावट बदल देता । जो एक जैसा खाता – पीता स्नान करता शौच जाता सोता हो, वह अलग यानी दूसरा कैसे हो सकता है ? अयोध्या में भव्य राममंदिर बनना चाहिए क्योंकि यह करोड़ों लोगों की आस्था एवं ऐतिहासिक महत्व से जुड़ा हुआ है, लेकिन इस मामले को कोई निपटा नहीं रहा है बल्कि सभी राजनैतिक स्वार्थवश एवं राजनैतिक उद्देश्यों की पूर्ति करने तथा धर्म के नाम दूकान चलाने के लिये इसे उलझा रहे थे। यह सही है कि सभी को विश्वास था कि इस बार पूर्णबहुमत मिलने के बाद राममंदिर बन जायेगा, लेकिन पांच बीतने वाले हैं लेकिन सरकार कुंभकर्णी नींद में सो रही है और उसे जगाने के लिए उसके अनुषांगिक सगठनों को अयोध्या में धर्मसभा के नाम पर शक्ति प्रदर्शन करके चेतावनी देनी पड़ रही हैं। जिस अध्यादेश लाने की बात आज की जा रही है, वह तो पहले भी सरकार ला सकती थी | अगर हो जाता तो जो कष्ट अयोध्या एवं फैजाबाद वासियों को आज उठाने पड़ रहे हैं, वे न उठाने पड़ते। आज अयोध्या में अफरा – तफरी का माहौल बना हुआ है और सभी हिन्दू मुस्लिम अपने को असुरक्षित महसूस कर साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने वाली राजनीति को कोस रहे हैं। गंदी राजनीति के चलते देश में हिन्दू मुसलमान एक दूसरे के खून का प्यासा होता जा रहा है और फिरकापरस्ती बढ़ती जा रही है। ऐसे समय में स्वामी समर्थ जगजीवन साहब, हाजी वारिस अली शाह के संदेशों एवं स्वामी जी की मलामतशाह की दोस्ती की प्रासंगिकता बढ़ गयी है जो शेर से चलते थे और पड़ोस बदोसराय में रहते थे। स्वामी जी की कार्यशैली हिन्दू मुसलमान वाली नहीं बल्कि इंसानियत वाली थी, तभी उनके शिष्यों में हिन्दू मुस्लिम दोनों शामिल थे और एक साथ रहते खाते – पीते और भजन करते थे।
– भोलानाथ मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार/समाजसेवी
रामसनेहीघाट, बाराबंकी, यूपी