दिन-प्रतिदिन अपराध और अपराधियों की संख्या में वृद्धि हो रही है। भारत में प्रतिवर्ष भारतीय दण्ड संहिता के अन्तर्गत लगभग 14.5 लाख संज्ञेय अपराध होते हैं और लगभग 37.7 लाख अपराध स्थानीय एवं विशेष कानूनों के तहत होते हैं। हमारे समाज में अपराध को समाप्त करने एवं अपराधियों को दण्डित करने अथवा उपचार हेतु कारावास एवं परिवीक्षा कारावास की व्यवस्था की गई है । साठ के दशक में पूरे देश में अपराधों का आंकड़ा छह लाख से अधिक नहीं होता था | हमारे देश में अनेक आपराधिक मामलों को पुलिस या तो दर्ज ही नहीं करती है या फिर लोग दबाव में या कानूनी पचड़े के डर से पुलिस के पास गुहार लगाने नहीं जाते हैं | राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो द्वारा कुछ समय पहले जारी 2015 के आंकड़े बेहद चिंताजनक हैं |

 

शहरीकरण और शहरों की आर्थिक समृद्धि बढ़ने के साथ अपराध भी तेज़ी के साथ बढ़ रहे हैं. दस लाख की आबादी से अधिक के 53 बड़े शहरों में घटित अपराधों की बात करें, तो अकेले देश की राजधानी दिल्ली में 25 फीसदी अपराध दर्ज हुए | यह संख्या 1.73 लाख है | इसके बाद मुंबई (42,940), बेंगलुरु (35,576), कोलकाता (23,990) तथा हैदराबाद (16,965) का स्थान है | चेन्नई महानगरों में सबसे सुरक्षित है, जहां 13,422 घटनाएं संज्ञान में आयी थीं | उल्लेखनीय है कि ये आंकड़े दर्ज मामलों के हैं | ये आंकड़े भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत दर्ज किये गये मामलों के हैं और अगर इनमें विशेष स्थानीय कानूनों के तहत पंजीकृत मामलों को जोड़ दें, तो यह संख्या और बढ़ जाती है | सबसे असुरक्षित शहरों की सूची में बिहार का पटना, राजस्थान का जोधपुर और केरल का कोल्लम भी शामिल है | हत्या के मामलों में दिल्ली (464), पटना (232) और बेंगलुरु (188) आगे हैं | हमारे देश में किशोरों द्वारा अपराध एक कड़वी वास्तविकता है। वर्तमान समय में किशोर बहुत से खतरनाक अपराधों में शामिल पाये जाते हैं जैसे हत्या, सामूहिक दुष्कर्म आदि। यह एक बड़ी चिन्ता का विषय है और पूरा समाज बच्चों द्वारा किये जाने वाले इस तरह के अपराधिक कृत्यों से दुखी है। बहुत से विशेषज्ञों का मानना है कि वर्तमान कानून स्थिति को नियंत्रित करने के लिये अपर्याप्त है और हमें इसमें बदलाव लाने की जरुरत है ताकि खतरनाक अपराधों के लिये किशोरों को भी वयस्कों की तरह दंडित किया जाये। किशोर न्याय (देखभाल और सुरक्षा) अधिनियम 2000 के अनुसार एक किशोर यदि वह किसी भी आपराधिक गतिविधि में शामिल है तो कानूनी सुनवाई और सजा के लिए उसके साथ एक वयस्क की तरह व्यवहार नहीं किया जायेगा। भारत में सामान्य रुप में छोटे अपराध और विशेषरुप में जघन्य अपराध बच्चों द्वारा नियमित रुप से किये जा रहे हैं। चोरी, सेंधमारी, झटके से छीनने व टप्पेबाजी जैसे अपराध जिनकी प्रकृति बहुत गंभीर नहीं है या डकैती, लूटमार, हत्या और दुष्कर्म आदि जैसे अपराध जो गंभीर प्रकृति से संबंधित हैं पूरे देश में उत्थान पर हैं |

दुर्भाग्य की बात यह भी है कि इस तरह के सभी अपराध 18 साल की आयु से कम के बच्चों द्वारा किये जा रहे हैं। राष्ट्रीय अपराध रिपार्ट ब्यूरो के अनुसार, 2013 के आंकड़े दिखाते हैं कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत नाबालिगों के खिलाफ 43,506 और विशेष स्थानीय कानून के तहत किशोरो द्वारा जिनकी आयु 16 से 18 वर्ष के बीच है के खिलाफ 28,830 अपराधिक मामले दर्ज हैं। आंकड़े दिखाते हैं कि 2013 में 2012 की तुलना में, किशोर मामलो में आई.पी.सी. और एस.एल.एल. में क्रमशः 13.6 और 2.5 की वृद्धि हुई है। भारत में बच्चों के मामले में पहला क़ानून – प्रशिक्षु अधिनियम 1850 था। इसमें प्रावधान था कि 15 से कम आयु का बच्चा यदि छोटे अपराधों को करते हुये पाया गया तो एक प्रशिक्षु के रुप में बंधक बनाया जायेगा। इसके बाद सुधार विद्यालय अधिनियम 1897 प्रभाव में आया, जिसने यह प्रावधान किया गया कि 15 वर्ष से अधिक आयु वाले बच्चों को दंड देकर सुधार घर में भेजा जायेगा। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अपराधी किशोरों के पुनर्वास प्रदान करने के लिए संसद ने किशोर न्याय अधिनियम 1986 को लागू किया गया। यह सच है कि 16 से 18 साल की आयु समूह वाले बच्चों की संख्या जघन्य अपराधों में बढ़ रही है , लेकिन यह भारत में हरेक साल होने वाले अपराधों का एक छोटा सा प्रतिशत है। दहेज विरोधी कानून के तहत सबसे अधिक मामले बेंगलुरु, जमशेदपुर और पटना में दर्ज हुए. ब्यूरो की रिपोर्ट यह भी बताती है कि महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अपराध, घरेलू हिंसा और सड़क पर मारपीट के मामले बढ़ रहे हैं | पुलिस प्रशासन का दावा अपनी जगह सही हो सकता है कि शहरों में अपराध के मामलों को दर्ज करने की सक्षमता के कारण संख्याएं अधिक हैं, पर ये आंकड़े प्रशासनिक कमजोरी और सामाजिक अव्यवस्था की ओर भी संकेत करते हैं | शहरों का लगातार असुरक्षित होते जाना इस बात को भी रेखांकित करता है कि नागरिकों को भयमुक्त वातावरण देने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे | पुलिस व्यवस्था में सुधार की सिफ़ारिशों के प्रभावी क्रियान्वयन के साथ ही पुलिसकर्मियों की संख्या बढ़ाना और उन्हें समुचित प्रशिक्षण एवं संसाधन देना, अपराधों की जांच एवं कानून-व्यवस्था कायम रखने की जिम्मेवारी को अलग-अलग करना, समाज में जागरूकता , दायित्वबोध और आपसी सहयोग का माहौल बनाना जैसी पहलों पर ध्यान दिये बगैर अपराधों पर अंकुश लगा पाना संभव नहीं है | अपराधों की समयबद्ध जांच और मुकदमों का त्वरित निबटारा भी बहुत जरूरी है | प्रशासनिक भ्रष्टाचार और अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण भी बड़े अवरोध हैं , जिन्हें दूर किया जाना चाहिए | – Dr RP Srivastava

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