शत्रु संपत्ति संशोधन विधेयक 2016 पास हो चुका है, जिसमें युद्ध के बाद चीन और पाकिस्तान पलायन कर गए लोगों द्वारा छोड़ी गई संपत्ति के उत्तराधिकार या हस्तांतरण के दावों को खारिज करने का प्रावधान है । 10 मार्च 2017 को इस विधेयक को राज्यसभा ने भी विपक्ष के बहिष्कार के बीच पारित कर दिया | इस विधेयक द्वारा शत्रु संपत्ति क़ानून 1968 में बड़ा संशोधन यह किया गया है कि जिन्हें वैध वारिस माना गया था , वे अवैध माने जाएंगे और मिल्कियत सरकार के हाथ में चली जाएगी | यह बड़ा दूरदर्शितापूर्ण फैसला है | इस विधेयक के क़ानून बनने के बाद पटौदी परिवार की लगभग 5000 करोड़ की प्रॉपर्टी केंद्र सरकार ज़ब्त कर सकती है और अन्य बहुत सारी संपत्तियां उसके क़ब्ज़े में आ जाएँगी | 49 वर्ष पुराने शत्रु संपत्ति अधिनियम 1968 के संशोधन विधेयक 2016 के तहत वह संपत्ति आती हैं, जिसका रखरखाव या जिसके मालिक या फिर जिसकी देखरेख कोई दुश्मन देश का नागरिक करता हो। 1962 का भारत-चीन युद्ध, 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद जो नागरिक दूसरे देशों में जाकर बस गए और उनकी भारत में प्रॉपर्टी रह गई और वे दूसरे देश में रहकर इन संपत्तियों की देखरेख कर रहे हैं, तो ऐसी संपत्ति शत्रु संपत्ति कहलाती हैं। केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा को बताया कि देशभर में 16000 संपत्तियां शत्रु संपत्ति कहलाती हैं।

इनकी कीमत लगभग एक लाख करोड़ रुपए है। इनमें पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री मुहम्मद अली जिनाह , भोपाल के नवाब की संपत्ति, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की रियासतों की संपत्तियां भी शामिल हैं । भोपाल में ऐसी करीब डेढ़ सौ शत्रु सम्पत्तियों पर कारवाई लंबित पड़ी हुई है | गृह मंत्रालय के दस्तावेज बताते हैं कि देश में एक लाख करोड़ रुपये से अधिक मूल्य की अचल शत्रु सम्पत्ति है | लगभग तीन हजार करोड़ रुपये की चल सम्पत्ति के होने का अब तक प्रमाण मिला है | इसकी पड़ताल का काम चल रहा है और आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है | शुरुआत में 2186 शत्रु सम्पत्ति का ही पता लगा था, जो अब 16 हजार का आंकड़ा पार कर रहा है | 1968 में सरकार शत्रु संपत्ति अधिनियम लाई। इस कानून के 47 साल बाद पिछले साल कस्टोडियन ऑफ इनेमी प्रॉपर्टी ऑफिस ने नवाब की संपत्तियों को शत्रु संपत्ति घोषित किया था। भोपाल के लगभग 20 इलाकों में करीब 47 संपत्तियां ऐसी हैं, जो शत्रु संपत्ति के दायरे में आती हैं। इनमें दो नानी की कोठी और मैपल हाउस को शत्रु संपत्ति घोषित किया जा चुका है, जबकि 45 प्रॉपर्टी पर अभी सर्वे चल रहा है। अगर क़ानून पास होने के बाद उनकी संपत्ति को शत्रु संपत्ति मानकर सीईपी अपने अधिकार में लेती है, तो भोपाल में लाखों की ऐसी आबादी के प्रभावित होने की संभावना है, जो नवाब से खरीदी संपत्ति पर दशकों से रह रही है। इसमें कई आवासीय परिसर, व्यावसायिक प्रतिष्ठान, होटल और नगर निगम की जमीन शामिल है। भोपाल रियासत के अंतिम नवाब हमीदुल्लाह खान की बड़ी बेटी आबिदा को उनका उत्तराधिकारी माना गया था। आबिदा 1950 में पाकिस्तान चली गईं, पर हमीदुल्लाह और उनका बाकी परिवार भोपाल में ही रहा। 1960 में नवाब के निधन के बाद छोटी बेटी साजिदा को ये प्रॉपर्टी मिली। 1961 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने साजिदा को भोपाल रियासत का उत्तराधिकारी नियुक्त किया। हालांकि आबिदा ने पाकिस्तान में रहते हुए भारतीय कोर्ट में साजिदा को उत्तराधिकारी बनाए जाने को चुनौती दी। फिलहाल यह मामला अभी कोर्ट में ही है। उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार शत्रु संपत्ति से संबंधित करीब 50 साल पुराने कानून में संशोधन से संबंधित अध्यादेश बार – बार जारी किया था , जिस पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 24 दिसंबर 16 को एक अध्यादेश पर लगातार पांचवी बार साइन करते हुए अपनी नाराज़गी ज़ाहिर की थी। अध्यादेश को अपनी स्वीकृति देने से पहले राष्ट्रपति ने इस बात पर अपनी निराशा प्रकट की थी कि अध्यादेश को पांचवीं बार लागू किया जा रहा है और यह सरकार की गलती है कि वह इस विधेयक को संसद में पारित नहीं कर पाई थी | राष्ट्रपति ने 7 जनवरी 17 को सरकार को सलाह दी थी कि केवल असाधारण परिस्थितियों में ही सरकार को अध्यादेश लाने चाहिए | इस क़ानून के तहत संपत्तियां जब्त या नीलाम की जाएंगी , जो देश विभाजन के समय पाकिस्तान चले गए लोगों की हैं | ऐसी सम्पत्तियों में कुछ पर माफिया तत्वों या संदिग्ध गतिविधियों में लगे लोगों का कब्जा पाया गया है | केंद्रीय खुफिया एजेंसी का मानना है कि कई ऐसी सम्पत्तियां हैं, जिन पर पाकिस्तान भाग गए माफिया सरगना दाऊद इब्राहीम के सम्बन्धियों या दाऊद से जुड़े लोगों का कब्जा पाया गया है | इसी तरह शत्रु सम्पत्ति के नाम पर ऐसी भी तमाम सम्पत्तियां मिली हैं, जिन पर दशकों से संदेहास्पद लोगों का कब्जा है, जिन्हें अब सरकार अपने कब्जे में लेकर या तो नीलाम करेगी या सरकारी इस्तेमाल में लाएगी | सभी सम्बद्ध राज्यों के जिलाधिकारियों को गृह मंत्रालय की ओर से निर्देश भेजा गया था कि वे अपने-अपने जिले की शत्रु सम्पत्तियों पर काबिज लोगों से कब्जे का कानूनी आधार हासिल करें. जो कब्जे कानून सम्मत पाए जाएंगे उनका किराया बाजार दर और निर्धारित सरकारी शर्तों पर लागू किया जाएगा और जिन कब्जों का कोई कानूनी आधार नहीं होगा, उन्हें जब्त कर लिया जाएगा | उत्तर प्रदेश में एक हजार 468 शत्रु सम्पत्तियों पर जो लोग काबिज हैं , उन्हें सरकारी नोटिस दी जा चुकी है | इनमें लखनऊ के हजरतगंज जैसे बेशकीमती इलाके में स्थित लारी बिल्डिंग, महमूदाबाद मेंशन, मौलवीगंज स्थित लाल कोठी, चारबाग गंगा प्रसाद रोड स्थित सिद्दीकी बिल्डिंग, गोलागंज इमामबाड़ा स्थित मलका जमानिया जैसी कुछ प्रमुख सम्पत्तियां भी शामिल हैं | इन संपत्तियों पर जिन लोगों का क़ब्ज़ा है , उनमें से बहुत से लोग किराया भी नहीं देते, जो देते हैं वे भी नियमित रूप से नहीं | पॉश इलाकों में स्थित इन सम्पत्तियों पर काबिज लोगों को कौड़ियों का किराया जमा करने में भी तकलीफ होती है | इनमें हजरतगंज के मशहूर कपूर होटल, प्रमुख व्यवसायिक प्रतिष्ठान हलवासिया, घनश्याम ऑप्टिकल्स, शर्मा एसोसिएट्स, मेसर्स ओरिएंट मोटरकार, कोहली ब्रदर्स जैसे प्रतिष्ठान शामिल हैं | इनमें से कई लोगों ने तो कभी किराया दिया ही नहीं | अब इन्हें बकाये का किराया भी जमा करना होगा और सरकार को यह भी बताना होगा कि शत्रु सम्पत्ति पर उनके कब्जे का कानूनी आधार क्या है ? लखनऊ जिला प्रशासन का कहना है कि राजधानी स्थित शत्रु सम्पत्तियों पर काबिज 35 प्रमुख डिफॉल्टर्स के खिलाफ पहली खेप की नोटिस जारी की गई है |

इनके कब्जे के कानूनी आधार की पड़ताल की जा रही है | पुख्ता कानूनी आधार पाए जाने पर उनका सारा लंबित किराया वसूल किया जाएगा अन्यथा सम्पत्ति जब्त करने की कार्रवाई की जाएगी | सिर्फ़ प्रशासन ही नहीं सेना ने भी शत्रु सम्पत्ति का ब्यौरा लेना शुरू किया है | मध्य कमान मुख्यालय खास तौर पर इस मामले में सक्रिय है, क्योंकि मध्य कमान के दायरे में आने वाले सात राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड और ओड़ीशा में से यूपी, एमपी और उत्तराखंड में सबसे अधिक शत्रु सम्पत्तियां हैं | सेना के मध्य कमान का मुख्यालय लखनऊ में है | उत्तर प्रदेश में लखनऊ, फैजाबाद, बरेली, सीतापुर, कानपुर, फतेहगढ़, रामपुर, कासगंज, मुरादाबाद, मेरठ, झांसी जैसे इलाकों, उत्तराखंड में देहरादून, नैनीताल, हल्द्वानी, मसूरी और मध्य प्रदेश में भोपाल, महू, जबलपुर, इंदौर जैसे इलाकों में शत्रु सम्पत्तियों का विवरण इकट्ठा करने में सेना जुटी हुई है | बताया जाता है कि शत्रु सम्पत्ति का पता लगाने में कई राज्यों ने केंद्र का सहयोग नहीं किया , जिनमें बंगाल का नाम सबसे पहले आता है | वहां पांच हजार से अधिक मामले फाइलों में बंद पड़े हुए हैं | बिहार की स्थिति भी ऐसी ही है | देश में कुल 2186 शत्रु संपत्तियों में 1468 अकेले उत्तर प्रदेश में हैं। अन्य राज्यों में प. बंगाल में 351, दिल्ली में 66, गुजरात में 63, बिहार में 40, गोवा में 35, महाराष्ट्र में 25, केरल में 24 व बाकी अन्य राज्यों में हैं, लेकिन बाद में गहनता से कराई गई छानबीन में शत्रु सम्पत्तियों की संख्या 16 हजार के पार चली गई हैं | गृह मंत्रालय के दस्तावेजों के अनुसार, देश की 31 शत्रु सम्पत्तियों का इस्तेमाल केंद्रीय सुरक्षा बल कर रहे हैं | इनमें से 12 का इस्तेमाल केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ), सात का इस्तेमाल नेशनल सिक्युरिटी गार्ड (एनएसजी), छह का इस्तेमाल केंद्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स (सीआरपीएफ), चार का इस्तेमाल सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) और दो शत्रु सम्पत्तियों का इस्तेमाल नेशनल डिजास्टर रेस्पॉन्स फोर्स (एनडीआरएफ) कर रहा है | आतंकी दाऊद इबराहीम की भारत में अवैध सम्पत्ति को भी शत्रु सम्पत्ति के दायरे में रखा गया है | वर्ष 2015 के दिसम्बर महीने में ही सरकार ने मुम्बई के नागपाड़ा में दाऊद के एक होटल ‘दिल्ली जायका’ को जब्त कर उसे नीलाम कर दिया था | दिल्ली के सदर बाजार स्थित बेलीराम मार्केट की लगभग 200 दुकानों को लेकर भी शत्रु सम्पत्ति का विवाद चल रहा है | यहाँ के बल्लीमारान स्थित मुस्लिम मुसाफिरखाना भी लंबे अर्से तक शत्रु सम्पत्ति विवाद में फंसा रहा था | उत्तर प्रदेश के ‘राजा’ महमूदाबाद उर्फ़ मुहम्मद आमिर मुहम्मद ख़ान की लखनऊ समेत उत्तर प्रदेश के कुछ अन्य जिलों और उत्तराखंड राज्य में स्थित अकूत सम्पत्ति शत्रु सम्पत्ति के रूप में घोषित है | राजा महमूदाबाद (लखनऊ के नज़दीक सीतापुर जिले की तहसील का नाम है महमूदाबाद ) की ऐसी सम्पत्तियों की कुल संख्या 936 है | यह सम्पत्ति लखनऊ, सीतापुर और नैनीताल में है | लखनऊ में राजा महमूदाबाद की सम्पत्तियों में मशहूर बटलर पैलेस, महमूदाबाद हाउस और हज़रतगंज की आलीशान दुकानें और होटल्स हैं | सीतापुर के जिलाधिकारी, एसएसपी और सीएमओ के आवास भी राजा महमूदाबाद की सम्पत्तियों का ही हिस्सा हैं | तत्कालीन राजा महमूदाबाद के भारत-पाकिस्तान दोनों ही देशों में अच्छे राजनीतिक संपर्क थे. उनका दोनों ही देशों में आना-जाना लगा रहता था | भारत विभाजन के बाद से वे ईराक में रह रहे थे | 1957 में उन्होंने भारतीय नागरिकता छोड़कर पाकिस्तानी नागरिकता ले ली | भारत ने देश छोड़कर पाकिस्तान जा बसे लोगों की सम्पत्तियां ‘भारत के रक्षा नियम (डिफेंस ऑफ इंडिया रूल्स) 1962’ के तहत अपने संरक्षण में ले लीं | भारत सरकार ने यह कार्रवाई 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद की, जबकि पाकिस्तान यह काम पहले ही कर चुका था | 1973 में राजा महमूदाबाद की लंदन में मौत हो गई | उनके बेटे मुहम्मद आमिर मुहम्मद खान ने पिता की सम्पत्ति पर उत्तराधिकार का दावा पेश किया | ऐसी उनकी 936 संपत्तियां हैं | लखनऊ सिविल कोर्ट ने उन्हें सम्पत्ति का वारिस माना, लेकिन उन्हें कुछ हासिल नहीं हुआ | लंबी मुक़दमेबाज़ी के बाद 2005 में राजा महमूदाबाद सुप्रीम कोर्ट में अपनी और अन्य ऐसी संपत्तियों से ‘शत्रु’ शब्द हटवाने में सफल हुए जिसके बाद उनको उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के नैनीताल की अपनी संपत्ति पर मालिकाना हक़ मिला | 2001 में मुम्बई हाईकोर्ट ने भी महमूदाबाद के पक्ष में फैसला सुनाया | सरकार ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की | सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर महमूदाबाद वारिस को सम्पत्ति का अधिकार मिल गया | 2010 में कांग्रेस सरकार शत्रु सम्पत्ति अधिनियम में संशोधन का अध्यादेश लाई और सभी सम्पत्तियों को फिर से कब्जे में ले लिया | अब इसे स्थायी रूप से क़ानूनी बनाया जा रहा है | अब वारिस ऐसी संपत्ति को न तो बेच सकेंगे और न किसी को दे पाएंगे | साथ ही सरकार का मालिकाना हक़ 1968 से माना जाएगा, जब यह क़ानून बना था | शत्रु सम्पत्ति विवाद में प्रमुख रूप से महमूदाबाद रियासत, भोपाल नवाब, मुम्बई में मोहम्मद अली जिनाह का घर और लंदन के एक बैंक में जमा हैदराबाद फंड का मामला भी शामिल ह | ब्रिटेन के रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड (जो पहले नेशनल वेन्समिंस्टर बैंक के नाम से जाना जाता था) में तीन सौ करोड़ रुपये से अधिक की रकम 1948 से ही जमा है | इस पर पाकिस्तान भी दावा करता रहा है, लेकिन ब्रिटेन की अदालत ने पाकिस्तानी दावे को अनुचित करार दिया है | हैदराबाद के विलय के समय तत्कालीन निजाम के वित्त मंत्री ने ब्रिटेन के नेशनल वेस्टमिंस्टर बैंक में 1,007,940 पौंड और 9 शिलिंग तत्कालीन पाकिस्तानी उच्चायुक्त हबीब इबराहीम रहमतुल्लाह के खाते में जमा करवा दिए थे | इसकी सूचना मिलते ही निजाम ने बैंक को वह रकम वापस उनके खाते में ट्रांसफर करने का संदेश भेजा, लेकिन बैंक ने मना कर दिया | निजाम ने अदालत की शरण ली , तो पाकिस्तान ने भी अपना दावा पेश किया | फिर मामला इंग्लैंड के न्यायिक ट्रिब्यूनल में चला गया | भारत शुरू से ही इसका दावेदार था | अदालती कार्रवाई के कारण बैंक खाता फ्रीज कर दिया गया था | भारत की दलील है कि हैदराबाद फंड हैदराबाद की जनता का पैसा है और रियासत के भारत में विलय हो जाने के बाद पूरी रकम भारत को मिलनी चाहिए , लेकिन पाकिस्तान ने इसे देने से इन्कार कर दिया और 2013 में गुपचुप तरीके से फिर कानूनी पहल शुरू कर दी , लेकिन तब तक पाकिस्तान को हैदराबाद फंड की सुरक्षा के अधिकार से वंचित किया जा चुका था | – ” ANATHAK ”

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