इसमें कोई संदेह नहीं कि विगत कुछ वर्षों में देश के विभिन्न भागों में महिला विरोधी घटनाओं में तेज़ी आई है | साथ ही महिलाओं के प्रति मान – सम्मान के भावों को परवान चढाने की कोशिशों के बीच महिला विरोधी मानसिकता का भी विस्तार हुआ है | ये सभी चीज़ें बेहद चिंताजनक और अफ़सोसनाक हैं | ‘ बेटी पढाओ , बेटी बचाओ ‘ के सरकारी अभियान के बावजूद कन्या भ्रूणहत्या की ख़बरें थमी नहीं हैं | अभी पिछले दिनों दिसंबर 2017 माह में ही सागर [ मध्यप्रदेश ] के बस स्टैंड से जिला अस्पताल जाने वाली सड़क पर एक कुत्ते के मुंह में नवजात बच्ची का शव देखा गया। शव को कुत्तों ने क्षतविक्षत कर दिया। राहगीरों की सूचना पर गोपालगंज थाने की पुलिस ने शव बरामद कर पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेजा। अभी बच्ची के माता-पिता के संबंध में खुलासा नहीं हो सका है । पुलिस मामले की जांच कर रही है। जानकारी के अनुसार , सुबह करीब 11.30 बजे जिला अस्पताल जाने वाली सड़क पर राहगीरों ने एक नवजात बच्ची का शव आवारा कुत्ते के मुंह में दबा देखा।
लोगों ने कुत्ते का पीछा किया और गोपालगंज थाने की डायल 100 को इसकी सूचना दी। शव लेकर कुत्ता गोपालगंज मुक्तिधाम के पास स्थित झाड़ियाें में चला गया। यहां जब तक पीछा करते हुए राहगीर और पुलिस ने पहुंचकर कुत्तों को भगाया। पहले भी जिला अस्पताल और बीएमसी परिसर के आसपास कुत्ते मांस के लोथड़े और मृत नवजातों के शव मुंह में दबाए देखे गए हैं। इसके बाद जिला अस्पताल प्रबंधन ने अस्पताल के सभी चैनल गेटों पर जालीदार लोहे की जाली लगाई है , फिर भी ऐसी घटनाएं थम नहीं रही हैं | छह जनवरी 2014 को भी एक नवजात कन्या की लाश को नई दिल्ली स्थित माता चानन देवी चेरीटेबल हास्पिटल के कर्मचारियों ने कूड़े के ढेर में फेंक दिया , हालाँकि यह वैसी घटना नहीं है , जो कुछ वर्ष पूर्व हरियाणा के कुरुक्षेत्र में घटित हुई थी | वह 9 मार्च 2009 की सुबह थी , जब वह हृदयविदारक दृश्य एक छोटी – सी दूकान पर चाय पी रहे लोगों ने देखा , जिसने उन्हें स्तब्ध ही नहीं अंदर से हिला दिया था |
सहसा वे यक़ीन नहीं कर पा रहे थे कि कुत्ते के मुंह में जो कुछ है , वह एक नवजात बच्ची की लाश है | बच्ची होने के कारण उसे मृत्यु का दंश झेलना पड़ा | ऐसी घटनाएं रुक नहीं पा रही हैं ! माता – पिता का सन्तान के प्रति सहज – स्वाभाविक लगाव व वात्सल्य का जनाज़ा कौन निकाल रहा है ? कितना बर्बर हो गया है भौतिकवादी – अन्धताग्रस्त समाज ? हमारे सामने कन्या भ्रूणहत्या के बढ़ते आंकड़े बार – बार आते हैं , जो समाज की कटु सच्चाई और क्रूरता का बयान करते हैं | फिर भी स्थिति नहीं बदलती ! ऐसे भी मामले आते हैं , जो कुछ पिताओं और माताओं के स्वाभाविक कर्तव्यों पर भी सवालिया निशान लगाते हैं , मगर चिंता और आश्चर्य की बात यह है कि यह ज्वलंत , गंभीर और अति महत्व का विषय न तो मीडिया के विचार – विमर्श का केंद्र बनता है और न ही समाज के कर्णधार ही उद्वेलित होते हैं ! लगता है , सब निराश हो चुके है | देश की सर्वोच्च अदालत ने भी कई बार स्थिति की गंभीरता को उजागर किया है | जागरूकता – प्रयासों के बावजूद कन्या – भ्रूणहत्याओं में आशातीत कमी नहीं आई है | एक अनुसंधान में यह बात सामने आई कि भ्रूण हत्या को अधिकतर पढ़े – लिखे मध्यम वर्ग के लोग अंजाम देते हैं !
हरियाणा के एक गाँव में मुद्दतों बाद 2008 में एक ऐसी सौभाग्यशाली लड़की पैदा हुई थी, जो जीवित थी , अतः खबर बन गई थी | यह ऐसा गाँव रहा है जहाँ बच्ची को जीवित नहीं रहने दिया जाता था | लोग बच्ची रखना अपना और औने खानदान का अपमान समझते थे एवं किसी को दामाद बनाना इतना नागवार था मानो उनकी नाक कट गई हो | यह भी देखा गया है कि आजकल के डाक्टर इन हत्यारों के सक्रिय सहयोगी की बढ़ – चढकर भूमिका निभाते हैं | पुलिस मोटी रिश्वत खाकर डाक्टरों पर मेहरबान रहती है | मेडिकल कौंसिल तो हमेशा ख़ामोश तमाशाई बनी रहती है | सुप्रीम कोर्ट ने पहले अपनी एक टिप्पणी में लोगों को नसीहत की है और इस सिलसिले में वेद , उपनिषद और स्मृतियों के कई हवाले दिए हैं | कोर्ट ने राज्यों को इन हत्याओं पर रोक लगाने के लिए प्रभावी क़दम उठाने का निर्देश देते हुए कहा कि इस मामले में राज्यों ने जो आंकड़े दिए हैं , वे बेहद चिंताजनक हैं और ऐसा लगता है कि लोगों को क़ानून का डर नहीं है | लोग अपराध की संगीनी को नहीं समझ रहे हैं | कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि इस समस्या पर सिर्फ़ क़ानून के ज़रिये रोक नहीं लग सकती , बल्कि इसके लिए पर्याप्त जन – जागरूकता की आवश्यकता है | कोर्ट ने कहा कि धार्मिक
ग्रंथों , वेदों , स्मृतियों , उपनिषदों और लोकोक्तियों में महिलाओं का सम्मान करने और धार्मिक अनुष्ठानों में उनका स्थान नियत किया गया है | कोर्ट ने यह श्लोक कोट किया – ” यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:, यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रियाः ” | [ मनुस्मति 3 – 56 ] अर्थात , जहाँ स्त्रियों का आदर किया जाता है , वहन देवता रमण करते हैं , और जहाँ इनका निरादर होता है , वहाँ सब काम निष्फल होते हैं | इसी प्रकार उपनिषद के हवाले से एक श्लोक भी उद्धृत करते हुए उसका भावार्थ बताया कि ” महिला का पति , भाई , पिता , संबंधियों की तरह सम्मान करना चाहिए |. यह सम्मान करते हुए महिलाओं को आभूषण , वस्त्र आदि उपहार के तौर पर देने चाहिए . इन शिक्षाओं पर अमल न हो पाना एक बड़ी समस्या है | – Dr RP Srivastava