क्या कभी किसी ने कल्पना तक की थी कि कोई परिचय – पत्र ज़िन्दगी और मौत की कहानी लिखेगा | आज आधारकार्ड को यह श्रेय मिला हुआ है | आज की सरकारें ‘ हंटरवाली ; बन कर उभरी हैं | फ़रमान जारी कर दिया , फिर कुछ भी हो उसके अच्छे – बुरे नतीजों को कोई देखनेवाला नहीं | कहते हैं , अगर राशनकार्ड आधार कार्ड से जुड़ा होता , 10 साल की संतोषी आज ज़िंदा होती , लेकिन लगातार भूखे रहने के कारण उसकी मौत हो गई | संतोषी अपने परिवार के साथ झारखंड के सिमडेगा ज़िले के कारीमाटी गाँव में रहती थी | संतोषी पिछड़े समुदाय की थी | इसलिए भी उसके परिवार को सुगमता से काम नहीं मिल पाता था | चूँकि सरकार नियमानुसार उसके परिवार का राशनकार्ड आधार नंबर से जुड़ा न होने के कारण रद्द हो चुका था , जो बार – बार के प्रयास के बावजूद जारी नहीं किया गया | बताते हैं कि कोटेदार ने पिछले आठ महीने से संतोषी के परिवार को राशन देना बंद कर दिया था | पिता के बीमार रहने के कारण घर चलाने की जिम्मेवारी उसकी मां कोयली देवी और बड़ी बहन पर थी | कभी दातून बेचने , तो कभी किसी के घर काम कर लेने से उसके परिवार का पेट नहीं भरता था | कई – कई रातें भूख में गुज़र जातीं | कोयली देवी ने बताया, “विगत 28 सितंबर की दोपहर संतोषी ने पेट दर्द होने की शिकायत की थी | गांव के वैद्य ने कहा कि इसको भूख लगी है | खाना खिला दो | ठीक हो जाएगी | मेरे घर में चावल का एक दाना नहीं था | इधर संतोषी भी भात-भात कहकर रोने लगी थी | उसका हाथ-पैर अकड़ने लगा | शाम हुई तो मैंने घर में रखी चायपत्ती और नमक मिलाकर चाय बनायी. संतोषी को पिलाने की कोशिश की. लेकिन, वह भूख से छटपटा रही थी | देखते ही देखते उसने दम तोड़ दिया | उस समय रात के लगभग दस बज रहे थे | ” सिमडेगा के उपायुक्त मंजूनाथ भजंत्रि भूख से हुई मौत का इन्कार करते हुए दावा करते हैं कि उसकी मौत मलेरिया बुखार से हुई | उपायुक्त यह भी फ़रमाते हैं कि संतोषी के परिवार की गरीबी को देखते हुए उसके पिता के नामअंत्योदय कार्ड जारी कर दिया है | संतोषी की मौत की जांच के लिए गठित तीन सदस्यीय कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक संतोषी की मौत की वजह मलेरिया है | इस कमेटी ने उस डाक्टर से बातचीत की थी , जिसने संतोषी का इलाज किया था | उपायुक्त के इस बयान पर सवालिया निशान लगाए जा रहे हैं | उन पर तथ्यों को छिपाने का आरोप है | सामाजिक कार्यकत्री तारामणि साहू के अनुसार , एएनएम माला देवी ने 27 सितंबर को संतोषी को देखा, तब उसे बुखार नहीं था | ऐसे में मलेरिया कैसे हो गया और जिस डाक्टर ने डीसी को यह बात बतायी, उसकी योग्यता क्या है |

तारामणि साहू ने बताती हैं कि “कोयल देवी का राशन कार्ड रद्द होने के बाद मैंने उपायुक्त के जनता दरबार मे 21 अगस्त को इसकी शिकायत की | 25 सितंबर के जनता दरबार में मैंने दोबारा यही शिकायत कर राशन कार्ड बहाल करने की मांग की | तब संतोषी जिंदा थी, लेकिन उसके घऱ की हालत बेहद खराब हो चुकी थी, लेकिन मेरी बात पर ध्यान नही दिया गया और इसके महज एक महीने के बाद संतोषी की मौत हो गई | ” जाँच टीम में शामिल धीरज कुमार कहते हैं, “कोयल देवी ने उन्हें बताया है कि संतोषी की मौत सिर्फ और सिर्फ भूख के कारण हुई है | ” सरकारी लीपापोती पर अवाम में गमोगुस्सा है |

सामाजिक कार्यकर्त्ता बलराम यह सवाल उठाते हैं कि ” यदि किसी को कई दिनों से खाना नहीं मिल रहा हो और इस कारण उसकी मौत हो जाए, तो इसे क्या कहेंगे ? सरकार को चाहिए कि वह या तो विश्व स्वास्थ्य संगठन की परिभाषा को मान ले या फिर भूख से मौत को खुद परिभाषित कर दे ? हर मौत को यह कहकर टाल देना कि यह भूख से नही हुई है, दरअसल अपनी जिम्मेवारियों से भागना है | ” झारखंड के मुख्यमंत्री रघुबर दास ने संतोषी के परिजनों को पचास हज़ार रुपए की सहायता के साथ ही उपायुक्त को पूरे मामले कि जाँच का निर्देश दिया है , लेकिन उपायुक्त का बयान बताता है कि वे ख़ुद पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं , अतः सत्य – तथ्य के प्रकाश में आने की संभावना कंम ही है |

अफ़सोस की बात यह है कि अन्य समस्याओं के साथ ही बच्चों समेत आमजन को पोषण की गंभीर दशा का सामना करना पड़ रहा है | हमारे यहाँ गरीबी उन्मूलन एवं खाद्य सहायता कार्यकमों पर हर साल करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं , फिर भी कुपोषण की भयावह समस्या कम होने का नाम तक नहीं ले रही है | विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है कि भारत की कुल आबादी का 30 प्रतिशत गरीबी रेखा के नीचे ज़िन्दगी गुज़ारती है |

पूरी दुनिया में 76 करोड़ लोग गरीब हैं , जिनमें से 22 करोड़ भारत में रहते हैं | दूसरी ओर हमारे देश में हर साल हज़ारों टन अनाज गोदामों में सड़ जाता है | अगर सुप्रबंध हो , तो निश्चिय ही इसे भूखे लोगों तक पहुँचाकर इस समस्या पर कुछ काबू ज़रूर पाया जा सकता है | उल्लेखनीय है कि भारत में कुपोषण की व्यापकता बताने वाले कई अध्ययन सामने आ चुके हैं। इन सबमें यह बात है कि देश के चालीस से पैंतालीस फीसद बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से ताल्लुक रखने वाली अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ‘लांसेट’ ने विश्व भर में कुपोषण की स्थिति पर कुछ समय पहले विस्तृत जानकारी प्रकाशित की है। यह अध्ययन बताता है कि भारत में पंद्रह साल से कम उम्र के अड़तीस फीसद बच्चों का कद उम्र के मुताबिक विकसित नहीं हो पाता, लेकिन कुपोषण के कारण शारीरिक और मानसिक विकास अवरुद्ध होने का यह सिर्फ एक पहलू है। हकीक़त यह है कि जिन बच्चों को ठीक-ठाक खाना नहीं मिलता, उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी हो जाती है | वे आसानी से बीमारियों के शिकार हो जाते हैं।

इससे भी गंभीर स्थिति गर्भवती स्त्रियों, नवजात शिशुओं और पांच साल से कम आयु के बच्चों के मामले में हैं। संपन्न तबके को छोड़ दें, तो उन्हें जरूरी पोषाहार नहीं मिल पाता। गर्भावस्था के दौरान पोषक आहार न मिलने का अत्यधिक असर पेट में पल रहे बच्चे पर भी पड़ता है। कुपोषण के शिकार बच्चों का मानसिक विकास इस तौर पर भी बाधित होता है कि उनका पढ़ाई-लिखाई में बहुत कम मन लगता है। कुछ दिन पहले ‘लांसेट’ ने यह तथ्य भी उजागर किया था कि पांच साल से कम आयु में होने वाली पैंतालीस फीसद मौतें कुपोषण की वजह से होती हैं। इस समस्या के हल हेतु केंद्र और राज्य स्तर पर कई योजनाएं क्रियान्वित की जा रही हैं , पर उनका सुपरिणाम नहीं दिखाई पड़ रहा है | सरकार को इन योजनाओं की समीक्षा करनी चाहिए और भ्रष्टाचार समेत सभी अनियमितताओं को दूर करना चाहिए | साथ ही आधार कार्ड को जीवनदायी बनाया जाए | – Dr RP Srivastava

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