यह इन्तिहाई अफ़सोसनाक बात है कि दलित – भेदभाव का सवाल देश की शीर्ष न्यायपालिका तक में अब उठने लगा है | कलकत्ता हाई कोर्ट के जस्टिस सीएस करणन ने सुप्रीम कोर्ट से अवमानना नोटिस जारी होने के बाद इस कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को खत लिखा है। इस खत में कहा गया है कि हाई कोर्ट के सिटिंग जस्टिस के खिलाफ कार्रवाई सुनवाई योग्य नहीं है। जस्टिस करणन ने यह भी कहा, ‘मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस के रिटायरमेंट के बाद होनी चाहिए। अगर बहुत जल्दी हो तो मामले को संसद रेफर किया जाना चाहिए। इस दौरान मेरे जूडिशल और एडमिनिस्ट्रेटिव वर्क मुझे वापस दिए जाने चाहिए।‘ चीफ जस्टिस जगदीश सिंह खेहर की अगुआई वाले 7 जजों की बेंच पर सवाल उठाते हुए करनन ने उस पर दलित-विरोधी होने का आरोप लगाया और कहा बेंच का झुकाव सवर्णों की ओर है। दलित समुदाय से ताल्लुक रखनेवाले जस्टिस करणन ने अप्रत्यक्ष रूप से सुप्रीम कोर्ट पर दलित-विरोधी होने का आरोप लगाते हुए उनके केस को संसद भेजने के लिए कहा |
उल्लेखनीय है कि कोलकाता हाई कोर्ट के जज सी. एस. करणन ने 23 जनवरी को प्रधानमंत्री को एक खुला खत लिखा था , जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री से न्यायपालिका में “हाई करप्शन” की शिकायत की थी. साथ में भ्रष्ट जजों की एक लिस्ट भी दी थी | लिस्ट के 20 नामों में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट दोनों के जज थे | भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है जब हाई कोर्ट के सिटिंग जज को सुप्रीम कोर्ट के 7 जजों की बेंच ने अवमानना नोटिस जारी किया है। पहली बार ऐसा होगा जब हाई कोर्ट के सिटिंग जज सुप्रीम कोर्ट के जजों के सामने अवमानना के मामले में पेश होंगे। जस्टिस करणन ने पहले भी सुखियों में रहने का काम किया है | नवंबर 2011 में जस्टिस करणन ने अपने चेंबर से एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दलित – सम्मान के सवाल को उठाते हुए सनसनीखेज़ आरोप लगाए थे | उन्होंने कहा कि उनके साथी जज उन्हें नीचा दिखाते हैं क्योंकि वो दलित हैं | उन्होंने कहा था कि वे दो साल से इस तरह का अपमान सह रहे हैं | जनवरी 2014 में ही जस्टिस करणन ने नेशनल कमीशन फॉर एस.सी./एस.टी. में मद्रास हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस आर.के. अग्रवाल के खिलाफ जाति आधारित भेद-भाव का आरोप लगाया था | जस्टिस अग्रवाल तब सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश बना दिए गए थे |करणन ने इसके अलावा शिकायत का एक खत राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, कानून मंत्री, गृह मंत्री के अलावा मायावती और राम विलास पासवान को भी भेजा था | जस्टिस अग्रवाल ने भी एक खत करणन के अभद्र बर्ताव के खिलाफ तब के चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को लिख दिया था | फरवरी 2016 में जस्टिस करणन चर्चा में रहे जब उन्होंने अपने ट्रांसफर के खिलाफ खुद ही स्टे दे दिया | जस्टिस करणन ने जो स्टे ऑर्डर किया था, वह चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया का था | करणन का तबादला मद्रास हाई कोर्ट से कलकत्ता हाई कोर्ट होना था | वे बहुत मुश्किल से कोलकाता गए थे | जून 2013 में जस्टिस करणन ने यह फैसला दे दिया था कि एक औरत और पुरुष यदि एक दूसरे से सेक्शुअल प्लेज़र के लिए संबंध बनाते हैं तो उन्हें कानूनन पति-पत्नी माना जा सकता है | इसके बाद इस फैसले और इसके नतीजों पर बहस छिड़ गई थी | वास्तव में दलित दमन और सम्मान का सवाल पुराना है | कभी यह भावना जस्टिस करणन की कोशिशों में दिखती है , तो कभी अन्य रूप में | पंडित नेहरू ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘भारत की खोज ‘ में दलित जाति और अछूतों पर सवाल उठाकर खुद ही जवाब दिया है | वे कहते हैं कि दलित जाति का न्य नामकरण है और एक अस्पष्ट ढंग से समाज के बिलकुल नीचे के तल की कुछ जातियों पर लागू होता है , लेकिन इनके और औरों के बीच कोई निश्चित विभाजक रेखा नहीं है | ‘ दलित ‘ शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत के धातु ‘ दल ‘ से हुई है , जिसका अर्थ तोड़ना , हिस्से करना , कुचलना है | – ” ANATHAK ”