इस समय देश में धर्म पर बात करना जोखिम भरा काम है। अध्यात्म की बातें करना उस समय और भी दुरूह हो जाता है जब सहमति – असहमति के बीच हो रही हो। धर्म अनपढ़ अथवा कम पढ़े – लिखे लोगों के दरम्यान अंधविश्वासों के बीच झूल रहा है, तो पढ़े-लिखों के बीच ‘लकीर का फकीर’ वाली कहावत को चरितार्थ कर रहा है। ऐसे में डॉ. रामपाल श्रीवास्तव ने अवतारवादः एक नई दृष्टि पुस्तक लिखकर सराहनीय और महत्वपूर्ण कार्य किया है। इस कार्य की जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है।
धर्म जैसे वैश्विक परिदृश्य वाले विषय की पुस्तक पर कलम चलाना मुझ जैसे कल्पनाजीवी व्यक्ति के लिए मुश्किल ही नहीं, बल्कि मेरे अधिकार क्षेत्र में ही नहीं आता है। फिर भी यही कहूंगा कि आज मैं ऐसे लेखक की पुस्तक पर लिखने की जुर्रत कर रहा हूँ जो खुद में हिन्दी – अंग्रेजी – उर्दू – अरबी भाषा का शब्दकोष है। उस व्यक्ति की पुस्तक पर लिखने की हिमाक़त कर रहा हूँ जिसने अपनी पूरी ज़िन्दगी अध्ययन और पत्रकारिता को समर्पित कर दिया। मुझे खुशी है कि राम पाल श्रीवास्तव जी के ज्ञानार्जन का परिणाम अब पुस्तक के रूप में आना शुरू हो चुका है।
धर्म विवाद का विषय नहीं है। यह एक साधना है। मानवता और सद्व्य्वहार के पक्ष में। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि इसे बहुत कम लोग साध पाते हैं। हाँ, धर्म लचीला ज़रूर है तभी तो हर व्यक्ति अपने-अपने हित में इस्तेमाल कर रहा है। एक अपने तर्क से उसी बात को सही साबित कर रहा होता है जिसे दूसरा उसी को ग़लत साबित करने की कोशिश कर रहा होता है जैसे इतिहास की घटनाओं के बल पर हम सच का झूठ गढ़ने में पारंगत हैं उसी तरह भाषा की अज्ञानता के कारण अर्थ का अनर्थ गढ़ते रहते हैं। पर वास्तव में धर्म गूढ़ है जिस पर सतही व्याख्या की गुंजाइश ही नहीं है। इसे व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखने की ज़रूरत है। इसी ज़रूरत को राम पाल श्रीवास्तव ने अवतारवादः एक नई दृष्टि को लिखकर पूरा किया है।
ख़ुदा को किसी ने नहीं देखा पर उसके द्वारा भेजे गये संदेशवाहकों / अवतारों के ज़रिए हमने ईश्वर- ख़ुदा – गाॅड को जाना और समझा है। मैं यदि इस्लाम धर्म की बात करूं तो इस्लाम एकेश्वरवाद पर पूरी तरह मुश्तमिल है और अब तक जितने भी महान आत्माएं अवतरित हुई हैं, उन्हें संदेशवाहक के रूप में ही जाना समझा और पहचाना गया है। कुरआन में एक आदेश अंकित है–”और आप कह दीजिए कि मैं एक बशर हूँ और नबी भी” ( सूरह बनी इस्राइल आयत 93) यह आदेश उस महान आत्मा के लिए था जिसे इस्लाम में सभी पैग़म्बरों का इमाम (अगुवा) कहा जाता है। इस्लाम में ज़मीन पर एक लाख या दो लाख चौबीस हज़ार कमोबेश पैग़म्बरों (संदेशवाहकों) के भेजे जाने की मान्यता है जिसमें सभी धर्मों के संवाहक शामिल हैं। यही मान्यता यहूदी और ईसाई धर्म के अनुयायियों के बीच है।
ईसाई धर्म को मानने वाले ईसा मसीह को परमेश्वर का पुत्र मानते हैं लेकिन कुरआन में ख़ुदा ने ख़ुद इस बात का खंडन किया है और कहा है कि – ” आप कह दीजिए कि अल्लाह एक है। अल्लाह बेनियाज़ है। वो ना किसी का बाप है। और ना किसी का बेटा और न कोई उसके बराबर है।” (सूरह इख़्लास)
कुरआन में ही यहूदी धर्म के प्रवर्तक का किस्सा विस्तार से आया है। हज़रत मूसा अ. कोहेतूर की पहाड़ी पर ख़ुदा से गुफ़्तगू करने जाया करते थे। एक बार उन्होंने ख़ुदा को देखने की ख़्वाहिश ज़ाहिर की। उनके इसरार पर ख़ुदा ने
अपनी तजल्ली दिखाई तो उस ईश्वरीय प्रकाश को देखते ही हज़रत मूसा अ. गिर कर बेहोश हो गए और पहाड़ पर मौजूद सभी पेड़-पौधे जलकर राख हो गये। इस घटना से यही नतीजा निकलता है कि ईश्वर कोई और है और अवतार लेने वाला केवल महामानव है।
–”जिस दिन हम हर जमाअत को उसके इमाम के साथ बुलाएंगे (बनी इस्राइल, आयत 71)
यहाँ ईश्वर ने प्रलय के दिन की बात की है। इस आयत में जमाअत से ताल्लुक दुनिया के तमाम क़ौमों से है और इमाम का ताल्लुक उस क़ौम में भेजे गये दिव्य आत्माओं से है न कि ईश्वर से।
–” ऐ ईमान वालों अल्लाह का हुक्म मानो और रसूल का हुक्म मानो (सूरह मोहम्मद आयत 33)
यहाँ पूरी तरह स्थिति साफ हो जाती है कि ईश्वर और रसूल में ज़मीन आसमान का फ़र्क़ है। इन दिव्य आत्माओं का भी विधि विधान लिखने वाला कोई और है ना कि अवतार लेने वाला खुद।
सीता विवाह और राम राज्याभिषेक दोनों शुभ मुहूर्त में किए जाने के बावजूद ना तो वैवाहिक जीवन सफल हुआ और ना ही राज्याभिषेक। जब इस बाबत मुनि वशिष्ठ से पूछा गया तो उनका जवाब था–
सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखि कहेहुं
मुनिनाथ।
हानि लाभ, जीवन मरन जस अपजस
बिधिहाथ।।
फिर यह विधि लिखने वाला विधाता है कौन? बेशक यह वही है जो नश्वर है, अशरीर है और सम्पूर्ण ब्रह्मांड पर अपना अधिकार रखने वाला है।
अवतारवादः एक नई दृष्टि में लेखक ने पौराणिक कथाओं के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग कथाओं के प्रचलित होने की बात ही नहीं की है बल्कि अवतार के प्रचलित अर्थ से हटकर की गयी व्याख्या को वास्तविक परिप्रेक्ष्य में देखने और समझने की भी कोशिश की है। विश्व के लगभग सभी प्रमुख धर्मों के उध्दरण के साथ लेखक ने यह साबित किया है कि ईश्वर अवतार नहीं लेता है बल्कि वह अपने दूत / संदेशवाहक भेजता है। वे वही करते और कहते हैं जो उन्हें आदेश होता है | इस पुस्तक में 13 अध्याय हैं। विभिन्न धर्मों के पंथों और उनमें प्रचलित मान्यताओं की भी विस्तार से चर्चा की गयी है खासकर मुस्लिम धर्म के क़ादियानी, बहाई, महदवी, शर्क़ी फ़िरक़े की, जिनके बारे में आम मुसलमानों को भी नहीं मालूम होगा।
निश्चित तौर पर यह एक महत्वपूर्ण पुस्तक है जो शोधार्थियों को लाभान्वित करेगा। इस महत्ती कार्य के लिए राम पाल श्रीवास्तव जी बधाई के मुस्तहक़ हैं।
अख़लाक़ ज़ई
मुंब्रा, मुंबई

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