राजनीति में लगता है कि सेवाभाव समाप्त होता जा रहा है और अपनी सेवाओं से मतदाताओं का मन लुभाने की जगह देवी देवताओं के नाम पर मतदाताओं को लुभाने की परम्परा शुरू हो गई है। वर्षीं से भगवान राम के नाम राजनैतिक रोटियां सेकीं जा रही थी , अब महाबली हनुमान जी को भी इसमें शामिल कर लिया गया है |

यह सही है कि भगवान राम सकल समाज के अगुआ थे और उन्होंने वनवास के दौरान अनुसूचित जनजातियों को कौन कहे बंदर ,भालुओं आदि तक को एक सूत्र में पिरोने का कार्य किया और उन्हीं के सहारे लंका पर विजय प्राप्त करने में सफल हो सके। यही कारण है कि आजकल सकल समाज उनका अनुयायी हैं और कई युग बीत जाने के बाद भी उनकी प्रासंगिकता पूर्ववत बनी हुई है और लोग उनके नाम पर अपनी जान तक न्यौछावर करने के लिए तत्पर हैं।अगर धार्मिक मान्यताओं पर विश्वास किया जाए , तो भगवान विष्णु ने अपने द्वारा अलग -अलग दिये गये वचनों को पूरा करने के लिए राम के रूप में अयोध्या में अवतरित हुए थे और उनके सान्निध्य में रहकर उनकी सुरक्षा का दायित्व निभाने के लिए भगवान भोलेनाथ ने अपने वचन के अनुरूप बंदर का रूप धारण करके भगवान शिव के ग्यारहवें रूद्र के रूप में उनके साथ ही इस धराधाम पर केसरीनन्दन बनकर अवतरित हुए थे।हनुमानजी जी के बाल स्वरूप को ही बालाजी महाराज कहा जाता है और हनुमानजी को कष्टनिवारक अष्टसिद्धि के दाता एवं अतुलित बलधाम के साथ भक्त शिरोमणि भी कहा जाता है।जैसा कि सभी जानते हैं कि पहले मनुष्य भी बंदरों की तरह नंगे जंगलों में रहते और पेड़ों पर रहते थे शायद यही कारण है कि मनुष्य को बंदरों का खानदानी एवं बंदरों को आदिमानव माना जाता है।यह सही है कि हनुमानजी राजा केसरी एवं रानी अंजना के पुत्र थे और राजा की कोई जाति बिरादरी नहीं होती है और उसे भगवान का प्रत्यक्ष रूप माना जाता है। लोकतांत्रिक प्रणाली में आजकल मतदाताओं को रिझाने के लिए कोई इस्लाम को खतरे में बताकर बाबर को अपना आराध्य मान रहा है तो कोई भगवान राम के नाम पर खून बहाने की बात कर रहा है जबकि सभी जानते हैं कि भगवान और इस्लाम दोनों का राजनीति से कोई वास्ता सरोकार नहीं है। राजनीति में धर्म का सहारा वहीं लोग लेते हैं जिनके पास जनसेवा का अभाव होता है और अपनी सेवाओं के बल पर मतदाताओं के बीच जाने से कतराते रहते हैं। जनसेवा की जगह धार्मिक भावनाओं को कुरेदना आजकल की राजनीति का एक फैशन बन गया है और इसी फैशन के चलते हमारी कौमी राष्ट्रीय एकता प्रभावित हो रही है।अभी कुछ दिनों पहले भगवान राम के साथ ही महाबली अंजनी कुमार मारूति नंदन को राजनैतिक बिसात पर दाँव लगा दिया गया है। प्रदेश के मुख्यमंत्री योगीजी ने राजस्थान की एक चुनावी सभा के दौरान हनुमानजी को जंगली निर्वासित दलित खानदान से जोड़ दिया गया और दावा किया गया कि वह दलित समाज से जुड़े हुए थे।योगीजी के इस बयान के बाद राजनैतिक गलियारे में एक भी कानाफूसी शुरू हो गई और दूसरे दिन ही अनुसूचित जनजाति आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष नंदकुमार साय ने उनके बयान का खंडन करते हुए हनुमानजी को अपना खानदानी बता दिया। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने हनुमान जी को किस संदर्भ में दलित कहा है इसे वह नहीं जानते हैं लेकिन इतना जरूर जानते हैं कि हमारी जनजातियों में वानर गोत्र होती है। हनुमानजी के भगवान राम के अनन्य भक्त एवं करीबी थे इसलिये उनके नाम पर जनजातियों के गोत्र होते हैं। शायद यही कारण है कि आज भी जनजातियों में उनका सम्मान एवं श्रद्धा भक्ति के साथ स्मरण किया जाता है।लगता है कि जैसे राम के इर्द गिर्द घूम रही राजनीति में उनके परमप्रिय भक्त हनुमानजी को भी शामिल करने की योजना बनाई जा रही है। हनुमानजी को दलित अथवा अनुसूचित जनजाति से जोड़ना एक नये राजनैतिक परिदृश्य को पैदा करने वाला लगता है क्योंकि दलित एवं अनुसूचित जनजातियों के मतदाताओं की संख्या अब एक करोड़ के आसपास हो गयी है।लगता है कि राजनैतिक पिपासा की पूर्ति करने के लिए हनुमानजी को दलित या अनुसूचित जनजाति बनाया जा रहा है जो स्वस्थ लोकतांत्रिक प्रणाली के भविष्य के लिए कतई उचित नहीं कहा जा सकता है।हनुमानजी जंगलों एवं दलित बस्तियों में रहने वाले नहीं बल्कि एक वह एक राजा के पुत्र थे और महलों में रहते थे इसलिए उन्हें दलित या अनुसूचित जनजाति नहीं माना जा सकता है। वैसे भी बंदर भालू रीछ हमेशा जंगलों कंदराओं गुफाओं में रहते थे और वही हाल आज भी है। हनुमानजी ऐसे खानदान के थे जो बंदर होने के बावजूद अपनी इच्छानुसार मनुष्य का स्वरूप धारण कर सकते थे और उनका खानदान कभी जंगलों में नहीं रहा है।

   – भोलानाथ मिश्र

वरिष्ठ पत्रकार/समाजसेवी

रामसनेहीघाट, बाराबंकी, यूपी

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