सन 1911 में गायत्री समाज के संस्थापक आचार्य श्रीराम शर्मा का जन्म सनाढ्य ब्राह्मण परिवार में हुआ था। पं॰ मदन मोहन मालवीय ने उनका यज्ञोपवीत संस्कार किया और मंत्र – दीक्षा दी । शर्मा जी देश के स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान कई बार जेल गये । उन्होंने जिस सुधार आन्दोलन की शुरुआत की थी, वह स्वतंत्राता प्राप्ति के बाद ही अपना आधार मज़बूत कर सका, ख़ासकर 1958 में मथुरा में गायत्राी यज्ञ के ज़रिये इसका उल्लेखनीय प्रसार हुआ । इस यज्ञ में कहते हैं कि चार लाख लोगों ने भाग लिया । हिन्दू धर्म की उदार एवं वैज्ञानिक व्याख्या की कोशिश ने उन वर्णों व जातियों को भी गायत्री समाज के क़रीब किया, जो सदियों से उपेक्षा और शोषण के  शिकार रहे थे । इससे भी गायत्री समाज के प्रति जन-सहयोग एवं उसका प्रभाव क्षेत्र बढ़ता चला गया ।

गायत्री समाज का दर्शन

गायत्री समाज ऋग्वेद [ 3-6-10 ] के  गायत्री मंत्र को अपना मूलदर्शन मानता है । यह मंत्र अन्य वेदों सामवेद, उत्तरार्चिक [13-33 ] , यजुर्वेद [ 3 – 35, 30 – 2 और 36-3 ] में भी आया है । इसमें कुल 24 अक्षर हैं, लेकिन गायत्री समाज व्याहृति प्रयोग करते हुए 27-28 अक्षरवाला मंत्र बना देता है । अतः ‘‘ ॐ भूः भुवः स्वः’’ की वृद्धि  कर देता है। कहते हैं कि यह मंत्र क़ुरआन की सूरह फातिहा के भावार्थ से मिलता-जुलता है । जनाब साबिर अबोहरी उर्दू पत्रिका ‘‘हमारी ज़ुबान’’ [ 8 मई 1994, पृ॰ 6 ] में कुछ ऐसा ही ख़याल ज़ाहिर करते हैं । डॉ. मुहम्मद हनीफ़ शास्त्री ‘‘महामंत्र गायत्राी एवं सूरह फ़ातिहा’’ विषय पर रचे हुए अपने शोध्-प्रबंध में इस मंत्र को सूरह फातिहा के निकट भावार्थ वाला बताया है । यह भी कहा जाता है कि डा . सर मुहम्मद  इक़बाल की ‘‘आफताब’’ शीर्षक नज़्म गायत्री मंत्र के भावार्थ से मेल खाती है । पाठकों की जानकारी के लिए यह नज़्म अधोलिखित है –

ऐ आफ़ताब रूह ख़ाने जहां है तू,

शीराज़ा बन्द दफ्तरे कौनोमकां है तू ।

बाइस है तू जूदो अदम की नमूद का,

है सब्ज़ तेरे दम से चमन हस्तोबूद का ।

क़ायम यह उन्सुरो का तमाशा तुझी से है,

हर शै में जि़न्दगी का तक़ाज़ा तुझी से है ।

हर शै को तेरी जलवागरी से सबात है,

तेरा यह सोज़ोसाज़ सरापा हयात है ।

वो आफ़ताब जिससे ज़माने में नूर है,

दिल है, खि़रद है, रूहे रवा है, शऊर है ।

ऐ आफताब ! हमको जि़या-ए-शऊर दे,

चश्म-ए ख़िरद को अपनी तजल्ली से नूर दे ।

है महफिले वजूद का सामां तराज़ तू,

यज़दाने साकिनाने नशेबोफराज़ ।

तेरा कमाले हस्ती हर जानदार में,

तेरी नमूद सिलसिला-ए कोहसार में ।

हर चीज़ की हयात का परवरदिगार तू,

जाइदगाने नूर का है ताजदार तू ।

न इब्तिदा कोई, न कोई इंतिहा तेरी,

आज़ाद क़ैदे अव्वलो आखि़र ज़िया तेरी ।

अर्थात, ऐ सविता [ परमसत्ता ] , तू ही जीवन के स्पंदन का मूल है । तू ही इस संसार को संचालित करने वाला है, लोक-परलोक का विधाता, पंच-तत्वों में प्राण डालने वाला है । प्रत्येक वस्तु तेरे प्रकाश से प्रकाशित और गतिवान है । तू ही वह दैदीप्यमान सूर्य है, जिसका प्रकाश सबमें व्याप्त है चाहे बुद्धि हो या हृदय हो । ऐ सूर्य ! हमको सद्बुद्धि और अपने प्रकाश [ नूर ] की आभा का ज्ञान प्रदान कर । तू ही सृष्टि के मूल का कारण है और यहां रहने वालों की स्थिति का पूर्ण ज्ञाता भी। पर्वत में, हर जानदार में, सृष्टि के कण-कण में तू ही व्याप्त है । तू सबका पालनहार है । सब तेरे ही प्रकाश से प्रकाशित है । तू आदि-अंत के बंधन परे, सदा से प्रकाशित है ।

17 दिसम्बर 1997 को कड़ाके की ठंड में हम ‘‘शांतिकुंज ’’ पहुंचे, तो आशा के अनुरूप गायत्री समाज को बनाने-संवारने में लगे महानुभावों ने अपने उदार एवं उदात्त व्यक्तित्व का परिचय देकर ठंड के एहसास को दरकिनार करने के लिए विवश कर दिया । बातचीत में गायत्री समाज की रूपरेखा और स्पष्ट हुई ।

इसके तत्कालीन प्रमुख विचारक पं॰ वीरेश्वर उपाध्याय ने गायत्री समाज का परिचय कराया और हमारे प्रश्नों के उत्तर भी दिये । उपाध्यायजी ने कहा कि ईश्वर की शिक्षाएं एक हैं, लेकिन उन्हें बरतने के मार्ग अलग-अलग हैं । उन्होंने  धर्म के स्थान पर आध्यात्मिकता पर अधिक ज़ोर दिया |

किसी भी विचारधारा का सही परिचय उसके साहित्य से प्राप्त किया जा सकता है । जहां तक गायत्री समाज का संबंध है, तो यह बात स्पष्ट रूप से कही जा सकती है कि वह एक सुधार आन्दोलन है, इस प्रकार का कि देखने में तो मालूम होता है कि वहां सभी धर्मों के प्रति सहिष्णु एवं तितिक्षा-भाव है, जैसी कि प्राचीन हिन्दू संस्कृति की ख़ास विशेषता है |  यही देश की अस्ली मुख्यधारा है |

– Dr RP Srivastava , Editor- in Chief , ‘ Bharatiya Sanvad ‘

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