बाबा नानक के जीवन में ऐसा उल्लेख है कि वे अपनी अनंत यात्राओं में विदेश यात्राएं भी कीं | मक्का में काबा तक भी गये | अरब वे एक ऐसे गांव के पास पहुंचे जो फकीरों की ही बस्ती थी। सूफियों का गांव था। और उन सूफी दरवेशों का जो प्रमुख था, उसे खबर मिली कि भारत से एक फकीर आया है, पहुंचा हुआ सिद्ध है, गांव के बाहर ठहरा हुआ है—गाव के बाहर ही सरहद पर, एक कुएं के पास, एक वृक्ष की छाया में।रात बाबा नानक ने और उनके शिष्य मरदाना ने विश्राम किया था। नानक चलते थे तो मरदाना सदा उनके साथ चलता था। मरदाना उनका एक मात्र संगी—साथी था।बाबा नानक गाते गीत, मरदाना धुन बजाता। नानक गुनगुनाते, मरदाना ताल देता। नानक प्रभु के गुणों के गीत उतारते, मरदाना स्वर साधता। मरदाना के बिना नानक अधूरे से थे। गीत तो उनके पास थे, मरदाना जैसे उनकी बांसुरी था।

सुबह—सुबह नानक गा रहे थे, सूरज उदित हो रहा था और मरदाना ताल दे रहा था। तभी उस फकीर का संदेशवाहक आया। उस फकीर ने सांकेतिक रूप से—सूफियों का ढंग, अलमस्तों का ढंग, अल्हड़ों का ढंग—एक स्वर्ण पात्र में दूध भरकर भेज दिया था। इतना भर दिया था दूध कि एक बूंद भी उसमें अब और न समा सके। जो लेकर आया था पात्र, उसे भी बड़ा संभालकर लाना पड़ा था , क्योंकि अब छलका तब छलका—इतना भरा था, बिलकुल लबालब था।
पात्र लाकर उसने नानक को भेंट दिया और कहां, मेरे सद्गुरु ने भेजा है; भेंट भेजी है।
बाबा नानक ने एक क्षण पात्र को देखा, मरदाना सुबह—सुबह ही नानक के चरणों पर लाकर कुछ फूल चढ़ाया था | उन्होंने एक फूल उठाया और दूध से भरे पात्र में तैरा दिया।
अब फूल का कोई वजन ही न था, वह तैर गया दूध पर। एक बूंद दूध भी बाहर न गिरा। और कहा नानक ने, ले जाओ वापस, मैंने भेंट में कुछ जोड़ दिया; तुम न समझ सकोगे, तुम्हारा गुरु समझ लेगा।
और गुरु समझा।
भागा हुआ आया,बाबा नानक के चरणों में गिरा और कहा कि आप मेहमान बनें। मैंने पात्र भेजा था भरकर यह कहने कि अब और फकीरों की इस बस्ती में जरूरत नहीं। यह बस्ती फकीरों से लबालब है। यह मस्तों की ही बस्ती है, अब आप यहां किसलिए आए हैं! लेकिन आपने गजब कर दिया।
आपने एक फूल तैरा दिया। यह तो मैंने सोचा भी न था, इसकी तो कल्पना भी न की थी, कि फूल तैर सकता है। क्योंकि फूल कुछ डूबेगा नहीं—ऊपर ऊपर ही रहा। रहा होगा
हलका—फुलका फूल—टेसू का फूल, कि चांदनी का फूल। डूबा ही नहीं तो पात्र से दूध के गिरने का सवाल ही न उठा। समझ गया आपका संदेश कि आप आए हैं बस्ती में, फूल की तरह समा जाएंगे। आएं, स्वागत है !
बस्ती में कितने ही फकीर हों, आपके लिए जगह है। फूल ने खबर दे दी।
प्रस्तुति – सागर गोस्वामी , अहमदाबाद , गुजरात

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