हमारे यहाँ पर परमात्मा को ज्योति स्वरूप माना जाता है और जगतजननी आदिशक्ति परम शक्ति को उसका प्रत्यक्ष स्वरूप माना जाता है।उस नारी स्वरूपा महादेवी को ही ब्रह्मा , विष्णु , महेश का नियंत्रक एवं सृष्टि का चीफ डायरेक्टर माना जाता है और उस ईश्वर स्वरूपा महादेवी परमशक्ति के विभिन्न स्वरूप ही महालक्ष्मी सरस्वती एवं रूद्राणी ही नहीं बल्कि नारी जगत का स्वरूप माना जाता है। जगतजननी शक्तिस्वरूपा के बिना ब्रह्मा विष्णु महेश देवता दानव ही नहीं बल्कि साधारण मनुष्य भी शक्तिहीन होते हैं।यहीं कारण है कि सभी देवता दानव ही नहीं महादेव भी नारी स्वरूपा परमेश्वरी के सामने बच्चे की तरह नतमस्तक रहते हैं। देवताओं और मनुष्यों के साथ जब इस धराधाम पर अनाचार पापाचार व्यभिचार अन्याय बढ़ता है तब तब जगतजननी अपने विभिन्न स्वरूपों को धारण करके दानवों का विनाश करने आती हैं।जगतजननी ने धरती पर हो रहे अत्याचार अन्याय एवं धर्म के विनाश और दानवों के सर्वविनाश के लिये ही नवदुर्गा के रूप में अवतार लिया है जिनकी विशेष पूजा अर्चना के लिए साल में दो बार नवरात्रि आती है। नवरात्रि में जगतजननी के विभिन्न स्वरूपों की विशेष पूजा अर्चना अनुष्ठान व्रत करके विशेष उद्देश्यों की पूर्ति एवं सिद्धि हासिल की जा सकती है।शारदीय नवरात्रि की शुरुआत कल से जगतजननी के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री के रूप में हो चुकी है और आज परमशक्ति नवदुर्गा के दूसरे स्वरूप ब्रह्मचारिणी की पूजा घर घर हो रही है।नवरात्रि की मंगलमयी पावन वेला पर हम अपने सभी साथियों को शुभकामनाएं देते हुए आप सबकी कुशलता एवं प्रसन्नता के लिए जगतजननी नवदुर्गा से कामना करते हैं।नवरात्रि में जगत जननी के उन स्वरूपों की पूजा करते हैं जिन्हें उन्होंने समयकाल परिस्थितियों के अनुरूप जनकल्याण के लिये मायावी दानवों के विनाश के लिए धारण किये थे।जगतजननी परमेश्वरी के यह सभी नौ स्वरूप जनकल्याणकारी एवं भूत पिशाच एवं संसारिक भव बाधाओं से धर्म के पुजारियों को बचाने वाले हैं तथा हर स्वरूप की अलग अलग विशेषता है।माता की यह खूबी होती है कि वह अपने नालायक पुत्र का भी पेट भरती है और जल्दी किसी को दुखी देखना नहीं चाहती है। नवरात्रि का पर्व धार्मिक अध्यात्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इसकी शुरुआत मौसम एवं खानपान परिवर्तन के साथ होती है। मौसम एवं खानपान परिवर्तन के चलते तरह की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है इसीलिए नौ दिन अन्न त्याग कर दिया जाता है।नौ दिनों के बाद नये मौसम का नया अन्न ग्रहण किया जाता है और पेट साफ होकर उसी के अनुरूप हो जाता है। इसीलिए नवरात्रि को धार्मिक अनुष्ठानों का महापर्व एवं स्वास्थ्य के लिहाज से महत्वपूर्ण नेचुरोपैथी चिकित्सा का माध्यम भी माना जाता है।
- भोलानाथ मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार/समाजसेवी
रामसनेहीघाट, बाराबंकी [उत्तर प्रदेश ]