जब सोवियत संघ विश्व की एक बड़ी महाशक्ति हुआ करता था | साम्यवाद और अनीश्वरवाद का वर्चस्व था | जोसेफ़ स्टालिन सत्तासीन थे | उस दौर में भी भगवान राम का गहरा प्रभाव अलेक्सेई पैत्रोविच वरान्निकोव पर पड़ा | वे प्रोफ़ेसर थे | हिंदी के माहिर थे | रूसी और हिंदी दोनों भाषाओँ पर उनका समान अधिकार था | वे तुलसीदास जी के ” राम चरित मानस” से इतना प्रभावित हुए कि उसका रुसी भाषा में अनुवाद करना शुरू कर दिया ! अलेक्सेई पैत्रोविच वरान्निकोव ने लगभग साढ़े दस वर्षों में ”राम चरित मानस” का रूसी में पद्यानुवाद किया | इस पुस्तक की भूमिका में उन्होंने तुलसीदास जी के व्यक्तित्व और कृतित्व को बख़ूबी उजागर किया | साथ ही भारत के मध्यकाल के सामाजिक परिवेश का भी चित्रण किया |
अलेक्सेई पैत्रोविच वरान्निकोव ने अपनी वसीयत में लिखा कि ” मेरी मृत्यु के बाद मेरी क़ब्र पर मेरा प्रिय दोहा रूसी भाषा के साथ देवनागरी हिंदी में भी अंकित किया जाए |” उनकी समाधि आज भी उनके गांव कापोरोव, जो कि सेंट पीटर्सबर्ग के उत्तर मेंलेनिनग्राद के निकट स्थित है। उनकी समाधि पर ‘रामचरितमानस’ का निम्न दोहा रूसी और हिंदी लिपियों में अंकित हैं-
‘भलो भलाई पै लहहिं, लहै निचाई नीच।
सुधा सराही अमरता, गरल सराही मीच॥’
अलेक्सेई पैत्रोविच वरान्निकोव को इस अमर रचना के लिए सोवियत संघ के सर्वोच्च सम्मान ” आर्डर आफ लेनिन ” से सम्मानित किया गया | जी हाँ , एक नास्तिक देश में यह भी संभव हुआ, जिसे भगवान राम का प्रताप और चमत्कार ही माना जाएगा |
– Dr RP Srivastava, Editor-in-Chief,”Bharatiya Sanvad”