सुन शब्द !
तुम मेरे हो
मेरे साथ हो
जबसे मैंने जन्म लिया
तुम मेरे साथ हो
साथ रहोगे
जैसा वादा करते रहे हो
अपना वचन निभाओगे ?
सदा के लिए वियुक्त हो जाओगे ?
मगर क्या ?
मैं जब कवि बनूँगा
तब भी मेरा साथ दोगे ?
अपना वचन निभाओगे ?
ऋग्वेद का ” कवि ” बनने दोगे ?
अग्नि, सोम बनाकर
मेधावी बनाओगे ?
वेदज्ञ, अनूचान बनाओगे ?
क्रांतदर्शी बनाओगे ?
मैं तो गायक भी बनूँगा
वेद मंत्रों का
स्तोता, होता,अघ्वर्यु –
सब बनूँगा
ब्रह्म भी ख़ुद बनूँगा
और स्तुति गायक भी ! *
….
सुन शब्द !
जब इंसानियत ठिठुरेगी
तुम ख़ाब जगाना
जीने के
नेकी के
जीवन- रहस्य को समझाना
साथ ही–
मुझे साक्षात सूर्य बनाना
ताकि मैं जूझ सकूँ
जटिलताओं से
भस्म कर सकूँ
बाधाओं को
अपनी गायों को वापस ला सकूँ
वह दिव्य कवि बन सकूँ
दहकते अंगार उत्पन्न कर सकूँ
पैशाचिक प्रवृत्ति का दलन कर डालूँ
उन सभी का शमन कर सकूँ
जो साज- सभ्भार में बाधक बनें
सभी का अंत कर डालूँ
सभी का जीवन बना डालूँ !
….
सुन शब्द !
वह अग्नि तो चमत्कार थी
मगर तुम मुझे चमत्कार दिखलाने दोगे ? आंगिरस गोत्र के कवि की भाँति
तुम खोजे हुए तत्व बन जाओगे ?
यही मैं चाहता हूँ
तुम मेरे पास ही रहो
सदैव
सदा के लिए
मेरे रहो
मैं तुम्हें न खोजूँ।
……
सुन शब्द !
तू मेरे हृदय का प्रतिबिंब है
कीर्ति – प्रीति का स्रोत है
मेरी आलोचन, व्याख्या है
अन्तःकरण की वृत्तियों का चित्रण
धूमिल की लोहे की आवाज़
या मिट्टी में गिरे ख़ून का रंग
मेटिन जेंगिज़ ** के शब्द- युद्ध
शब्द- रक्त
आत्म चैतन्य को प्रबुद्ध बनाने की औषधि
असंभव को संभव करने का मंत्र
शांति और प्रेम का तंत्र
जीवन की महौषधि
आनंद की समाधि
उत्तरोत्तर उन्नति की दिव्य शक्ति
अलौकिकता देने
ख़ुद को परवान चढ़ाने की ज्योति
निर्गुण – निराकार से
सगुण – साकार है तू
अब हम दो हैं
मुझ पर अवतरण है तेरा
धन्य है तू !
तेरा जगत !!
……
* ऋग्वेद की कवि कथा |
** तुर्की कवि मेटिन जेंगिज़ की काव्य – कल्पना |
– राम पाल श्रीवास्तव ” अनथक “