मानव शरीर एक भौतिक वस्तु है | इसे आख़िरकार नष्ट ही हो जाना है | सभी लोग शुद्ध ह्रदय वाले हो जाएं अर्थात अपनी अंतरात्मा को साफ़ कर लें , नफ़्स का तज़किया कर लें , तो उनका कल्याण हो जाए | एक श्रेष्ठ समाज बन जाए | लोगों के बीच की दूरियां मिट जाएं —
जान अजान , मूरुख औ ज्ञानी / सबमा एकै जोति समानी | 
समर्थ स्वामी  जगजीवन दास जी की शिक्षा यह भी थी और है कि ऊंच – नीच , जाति – पात , छुआछूत आदि विकार अज्ञानता  कारण हैं , जिनको ज्ञान के द्वारा दूर किया जाना चाहिए | उन्होंने साधना की जगह सहज योग पर बल दिया और अपने सतनाम पंथ को प्रतिपादित और सिद्ध किया | 
स्वामी जी का जन्म 1671 ईसवी को उस समय हुआ था, जब मुगल सम्राट औरंगज़ेब का शासनकाल ( जुलाई 1658 से 3 मार्च 1707 ई०) था। सतनाम पंथ के साहित्य के अनुसार , औरंगज़ेब अपने शासनकाल में देश के हिंदू धर्मावलंबियों पर  अत्याचार कर इस्लाम धर्म स्वीकार करने को बाध्य कर रहा था। इतना ही नहीं बल्कि हिंदुओं के पूजा स्थल एवं मंदिरों में स्थापित देवी देवताओं की मूर्तियों को नष्ट करके वहां लूटपाट, मारपीट करना तथा हिंदू धर्म उपदेशकों , साधु-संतों एवं महात्माओं को मरवा डालना उनका धर्म बन गया था। जो हिंदू इस्लाम धर्म स्वीकार नहीं करता था ,उसे प्रताड़ित कर मरवा देता था या उससे जिज़्या कर वसूल करता था।
ऐसे नाज़ुक हालत में संभवतः इन अत्याचारों से त्रस्त जनता की करुण पुकार को सुनकर ईश्वर ने स्वामी जी को इस धरती पर अवतरित किया था। यही कारण है कि स्वामी जगजीवन दास को विष्णु भगवान का अवतार माना जाता है। कहते हैं कि औरंगज़ेब ने एक कट्टर मुसलमान कामिल फ़क़ीर मलामत शाह को ईरान से हिंदुस्तान बुलवाया था, जो हिंदू साधू -संतो की परीक्षा शाही दरबार में लेता था। कहते हैं कि इसके लिए वह एक रेशमी चादर हवा में स्थिर कर वह स्वयं उस पर बैठ जाता था और कहता था कि पहले मेरे बराबर आकर बैठो तो मैं तुम्हारे धर्म की चर्चा करूं। जो इतना नहीं कर पाता था उससे कहता कि तुम्हारा धर्म झूठा है और उस व्यक्ति का सिर कटवा देता था। जब उसे स्वामी जी की प्रसिद्धि की सूचना मिली तो उसने स्वामी जी को दिल्ली दरबार में हाज़िर होने का हुक्म दिया। स्वामी जी स्वयं तो उसके बुलाने पर नहीं गये, लेकिन अपने भतीजे अहलाद दास जी को जो स्वामी जी के शिष्य भी थे, दिल्ली दरबार में भेज दिया था। अहलाद दास को दरबार में हाज़िर किया गया तो वह फ़क़ीर मलामत शाह उस समय भी हवा में स्थित रेशमी चादर के ऊपर बैठा | 
उसने अहलाद दास जी से कहा कि “यदि तुम हमारे बराबर बैठ सको,तो तुम्हारे पंथ की सच्चाई और सिद्धता को मैं मानूंगा !” यदि तुम यह न कर पाए , तो तुम्हें और तुम्हारे पंथ को झूठा मानकर तुम्हारा सिर काट दिया जाएगा। यह सुनकर अहलाद दास जी ने स्वामी जी को याद करके उनसे सहायता करने की विनती करने लगे, तो उसी समय वह रेशमी चादर जल गई और मलामत शाह ऊपर से जमीन पर गिर पड़ा। मलामत शाह ने बार-बार हवा में चादर फेंकी और बार-बार वह चादर जल उठी, जिससे मलामत शाह परेशान हो गया और अहलाद दास जी से कहा तुम और तुम्हारा पंथ सच्चा है |  हम दोनों बराबर ज़मीन पर हैं। इसके बाद शाही फ़रमान जारी हो गया कि सतनाम पंथ को मानने वालों को कभी सताया नहीं जाएगा। 
यह सही है कि इस धरती पर ईश्वर मनुष्य को इंसान बनाकर भेजता है | वह कभी हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई बनाकर नहीं भेजता है | 
– Dr RP Srivastava, Editor-in-Chief, Bharatiya Sanvad

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