प्रभु स्मरण से ही जीवन सुखमय और शांतिमय हो सकता है | यही सभी दुखों एवं कष्टों का निवारक है | मुसीबतों से छुटकारा दिलानेवाला है | ऋषियों,मुनियों और मनीषियों ने दुःखों से छुटकारा पाने और सच्ची सुख – शांति की प्राप्ति के उपक्रमों पर गहन विचार एवं चिन्तन किया , तो सब एक ही परिणाम पर पहुँचे कि बिना हरिभजन के सुख–शान्ति नहीं मिल सकती । सब अपने–अपने अनुभव के आधार पर मानव के क्लेश एवं तनावों को मिटाने के उपाय बताए । भगवान शिवजी से उमा जी से कहा– उमा कहऊँ मैं अनुभव अपना ।सत हरि भजन जगत सब सपना ।। उत्तरकाण्ड में काकभुशुण्डि जी भी अपना अनुभव बता रहे हैं–

निज अनुभव अब कहुउँ, खगोसा । बिनु हरि भजन न जाहि कलेसा [ राम चरित मानस , उत्तर कांड 7 – 8 – 5 ] | अतः कष्टों – क्लेशों से मुक्ति एवं सच्ची सुख शान्ति हरिभजन के अतिरिक्त किसी प्रकार नहीं मिल सकती , लेकिन हरिभजन अर्थात् हरिभक्ति तभी सुख–शान्ति प्रदान करती है, जब सच्चे मन और हृदय से उसे अंजाम दिया जाए |

वेद में एकेश्वरवाद की शिक्षा बहुत उभरी हुई है | कहा गया है ” एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति ‘ अर्थात परमात्मा एक है , अद्वितीय है , दूसरा कुछ भी नहीं है | [ GOD is One Otherwise None ] शतपथ ब्राह्मण [ 14 / 4 / 2 / 22 ] का कथन है कि जो एक परमात्मा को छोड़कर अन्य की भक्ति करता है , वह विद्वानों में पशु के समान है | इस्लाम का सूक्त वाक्यांश है – ” अश्हदु अल्ला इला – ह इल्लल्लाह ” अर्थात , ‘मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई उपास्य नहीं | ‘

पवित्र कुरआन में है – ” क़ुल हुवल्लाहु अहद | अल्लाहुस-समद | लम यलिद व लम यूलद | व लम यकुल्लहू कुफ़ुवन अहद | [ 112 : 1 – 4 ] ” | हिंदी में इसका अनुवाद है – ” कहो , वह अल्लाह है यकता | अल्लाह सबसे निरपेक्ष है और सब उसके मुहताज हैं | न उसकी कोई सन्तान है और न वह किसी की सन्तान | और कोई उसका समकक्ष नहीं है | ”

मौलाना रूम कहते हैं –

दुई रा चूं बदर करदम यके दीदम दो आलम रा ,

यके बीनम, यके जोयम, यके ख़ानम, यके दानम |

अर्थात , जब मैंने अपने मन से परायेपन को निकाल बाहर कर दिया , तब दोनों लोकों को एक देखा . अब उसे एक ही देखता हूँ , एक ही ढूंढता हूँ , एक को ही भजता हूँ और एक को ही जानता हूँ |

सिख धर्म की मौलिक शिक्षा एकेश्वरवाद है | गुरु ग्रंथ साहिब का मूल मंत्र है – ”इक्क ओन्कार सत नाम करता पुरख निरभऊ निरवैरअकाल मूरत अजूनी सैभं गुर प्रसाद ” अर्थात , एक परमात्मा, जिसका नाम सत्य है , कृति करने वाला पुरुष , निर्भय, द्वेष-रहित ,अकाल मूर्ति (सनातन छवि) , अजन्मा स्वयंभु (स्वयं से उत्पन्न हुआ) , गुरु-कृपा से प्राप्त |” गुरु नानक जी का उपदेश है , ” अव्वल अल्लाह नूर उपाया, कुदरत दे सब बंदे एक नूर ते सब जग उपज्या, कौन भले कौ मंदे | ”

तुलसीदास जी ‘ रामचरित मानस ‘ में लिखते हैं कि शंकर जी ने पार्वती जी से कहा –

उमा जे चरन रत बिगत काम मद क्रोध ,

निज प्रभुमय देखहिं जगत केहि सन करहिं बिरोध | [ उत्तर कांड 112 ख ] अर्थात .भक्त किसी ने द्वेष नहीं करता या किसी पर क्रोध नहीं करता | किससे करे ? किस पर करे ? सारा जगत तो उसे स्वामी का स्वरूप दीखता है |

इसी भाव को गुरु नानक जी ने इन शब्दों में प्रकट किया है –

मन ते बिनसै सगला भरमु ,

करि पूजै सगल पार ब्रह्मु |

[ अष्टपदी 9 सबद 3- 2 ]

अर्थात , भक्त अपने मन से [ परायेपन के ] सारे भ्रमों को त्याग देता है तथा सम्पूर्ण ब्रह्मांड को [ विभिन्न नामों और रूपों में ] पारब्रह्म [ का स्वरूप ] समझ कर उससे प्रेम करता है |

परायेपन के भाव से ही बहुत से झगड़े , बखेड़े और समस्याएं आती हैं , जैसाकि आज हम देख रहे हैं कि इस भाव के फैलाव से धरती की शांति छिनती जा रही है . लोग दूसरों को दुःख पहुंचा कर सुख का अनुभव करते हैं | यह इंसानियत के विरुद्ध है |

मौलाना रूम कहते हैं –

मयाज़ार कसे व हर चीज़ ख़ाही कुन ,

कि दर तरीकते मन ग़ैर अजीं गुनाहे नेस्त |

अर्थात , किसी को दुःख न दो | इसके अतिरिक्त और तेरे जी में जो कुछ भी आए ,कर , क्योंकि मेरे धर्म में इससे बढ़कर और कोई पाप ही नहीं |

महान इस्लामी विद्वान एवं फ़ारसी कवि

शेख़ सअदी ने अपने मशहूर काव्य – संकलन ” गुलिस्तां ” में कहा है –

बनी आदम आज़ाए – यक दीगरंद ,

कि दर आफरीनद ज़ि जौहर अंद |

अर्थात , आदि उत्पत्ति में क्योंकि एक ही माता – पिता से सभी मनुष्य उत्पन्न हुए हैं , इसलिए सब मनुष्य एक – दूसरे के अंग हैं | हज़रत मुहम्मद साहब ने फ़रमाया – ” अल् – खल्कु इयालुल्लाह, फअ ह्ब्बुल्खल्कि इलल्लाहि मन अहसन इला इयालिही |”

अर्थात , सब प्राणी परमात्मा के कुटुम्बी हैं | अल्लाह की दृष्टि में सबसे अधिक चहेता है , जो उसके कुटुंब से सद् व्यवहार करता है |

बृहदारण्यक उपनिषद् के एक श्लोक से प्रसूत एक सुभाषित है –

सर्वे भवन्तु सुखिनः। सर्वे सन्तु निरामयाः।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु। मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् |

अर्थात्‌ , संसार में सब सुखी रहें, सब नीरोग या स्वस्थ रहें, सबका कल्याण हो और विश्व में कोई दुःखी न हो

शेख सअदी कहते हैं –

गमे रोज़ी मख़ुर बरहम मजन ऊ रा कि दफ़्तर रा ,

कि पेश अज़ तिफ़्ल ईजद पुर कुनद पिस्ताने मादर रा |

– शेख़ सादी

व्याख्या – हे मनुष्य , तू अपनी आजीविका की चिंता न कर , इसके लिए भाग्य के पन्नों को उलट – पुलट कर परेशान न हो , क्योंकि इसकी चिंता स्वयं परमात्मा को है | इसका एक प्रमाण यह है कि बच्चे के जन्म से पूर्व ही परमात्मा बच्चे के लिए माँ के स्तनों में दूध भर देता है |

आज भौतिकता का युग है | मनुष्य की सारी चीजें धन – केन्द्रित हो गयी हैं , यहाँ तक कि निकटवर्ती सम्बंध धनाधारित हो गये हैं | सबको धन – आजीविका अर्जन में की ही चिंता है | इस चिंता के चक्कर में मनुष्य अपने जीवन का वास्तविक उद्देश्य भूल चुका है | वह परमात्मा पर विश्वास नहीं कर पा रहा है कि जो परमात्मा जन्म लेने से पूर्व ही मनुष्य के आहार का प्रबंध कर देता है , तो क्या उसके बड़ा होने पर उसकी आजीविका का ध्यान न रखेगा …… अवश्य रखेगा | किन्तु आम संसारी मनुष्य इस सच्ची बात पर विश्वास न करके हर समय धन – आजीविका की चिंता में अधीर – परेशान और चिंतित रहता है , यहाँ तक कि उसके जीवन का चैन , सुख – शांति … सब नष्ट हो जाता है | गोस्वामी तुलसीदासजी जी कहते हैं –

प्रारब्ध पहले बना , पाछै बन्यो सरीर ,

तुलसी यह आश्चरज है , मन नहिं बांधे धीर |

अर्थात , ” जीव का शरीर तो बाद में बनता है – उसका जन्म तो बाद में होता है , जबकि परमात्मा उसका प्रारब्ध पहले ही तैयार कर देता है | यह आश्चर्य का विषय है कि मनुष्य का मन इस बात पर विश्वास न करके हर समय आजीविका के लिए अधीर बना रहता है |”

वास्तव में यह व्यर्थ की चिंता है | मनुष्य को कर्म करते रहना चाहिए , चिंता नहीं ….. चिंता तो चिता समान है , जो मनुष्य की मानसिक – शारीरिक क्षमताओं को हर लेती है |

प्रभ का सिमरनु सभ ते ऊचा ,

प्रभ कै सिमरनु उधरे मूचा | [ सुखमणि ]

” प्रभु – स्मरण सबसे उच्च है , यह तमाम कष्टों से मनुष्यों को बचाता है | ”

– Dr RP Srivastava

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