कहा जाता है कि हमारे देश में विकसित देशों का हर उत्सर्जित माल बिक जाता है , चाहे वह स्वास्थ्य के लिए कितना ही खतरनाक और जानलेवा हो ! फिर लगता है कि किसी सरकार में इतनी हिम्मत नहीं कि पूंजीपतियों का लोहा ले सके और अपनी जनता को हानिकारक पदार्थों के सेवन से बचा सके | लेकिन इस दिशा में नाकाम कोशिशें होती रही हैं | दूसरी ओर
सर्वोच्च न्यायालय भी लगातार यह व्यवस्था देता रहा है कि खाने-पीने का अधिकार संव‍िधान के तहत जीने के मूलभूत अधिकार के अंतर्गत आता है और सरकार का यह सर्वोच्च कर्तव्य है कि वह लोगों के जीवन की रक्षा करे।
सब्जियों, फलों और खाने-पीने की अन्य चीजों में कीटनाशकों के खतरनाक स्तर पर मानवाधिकार आयोग अर्थात एनएचआरसी ने भी चिंता प्रकट की है। सरकार द्वारा विभिन्न खुदरा और थोक बिक्री दुकानों से इकट्ठा की गईं सब्जियों, फलों, दूध और अन्य खाद्य उत्पादों के नमूनों में कीटनाशक के जो अंश पाए गए हैं, वे जनजीवन के लिए बेहद खतरनाक हैं। कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के हवाले से आई इन खबरों में कहा गया है कि सब्जी, फल, मांस, मसालों में कीटनाशकों की मात्रा पिछले 6 बरस में तय मानक से दोगुनी हो गई है।

हमारे देश में कीटनाशक नियंत्रण के लिए ये तीन सरकारी संस्थान कार्यरत हैं –
सेंट्रल इंसेक्टिसाइडस बोर्ड एंड रजिस्ट्रेशन कमेटी , फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया और एग्रीकल्चरल एंड प्रोसेस्ड फूड प्रॉडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉ‍रिटी। ये तीनों संस्थान कृषि, स्वास्थ्य और वाणिज्य मंत्रालय के मातहत काम करते हैं, लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत यही है कि इनके कामकाज में आपसी तालमेल की बहुत कमी है। इस वजह से नतीजा साफ है कि प्रतिबंधित कीटनाशकों की बिक्री खुले बाजार में खुलेआम हो रही है।
इनकी बिक्री के लिए लाइसेंस देने की प्रक्रिया भी सख्‍त न होकर बेहद लचर ही है। सरकारी लचरता के ढीलेपन का आलम ये है कि कीटनाशक प्रबंधन विधेयक 2008 अभी.तक पारित ही नहीं हो पाया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट में इस बात पर गहरी चिंता और नाराजगी व्यक्त की गई है कि जहां एशिया के प्रमुख देशों में मोनोक्रोटोफॉस जैसे कीटनाशकों को सिरे से ही प्रतिबं‍धित कर दिया गया है, वहीं भारत में इनका उत्पादन, इस्तेमाल और दूसरे देशों को निर्यात का सिलसिला अब भी सतत जारी है।
कुछ समय पहले बिहार में एक स्कूल के मिड-डे मीलों में कैसे यही खतरनाक और प्रतिबंधित.कीटनाशक मोनोक्रोटोफॉस मिला हुआ पाया गया था ,जिसके परिणामस्वरूप 20 बच्चों की म्रत्यु हो गई थी? कई सर्वेक्षणों से यह बात सामने आई है कि प्रतिबंधित कीटनाशकों के इस्तेमाल की वजह से देश में.कैंसर के अलावा किडनी और लिवर तक निष्क्रिय हो जाने के मामलों में इजाफा हुआ है। कुछेक ऐसे ही कीटनाशकों के कारण कई जगहों पर भू-जल का जहरीला हो जाना भी पाया गया है।

जनता पार्टी के केन्द्रीय सत्ताकाल में जब जार्ज फर्नान्डीज उद्योग मंत्री थे , तब उन्होंने दो अमेरिकी कंपनियों – कोकाकोला और आई . बी . एम . पर गिरफ्त की थी , मगर इनका बाल बांका भी नहीं हुआ | कोकाकोला ने अपने पेयों का फार्मूला नहीं बताया और कैंसरजनित पेय हम भारतीयों को पिलाती रही , जबकि अमेरिका में इसे अपनी गुणवत्ता सुधारनी पड़ी | वास्तव में अमेरिका में खाद्य मानक संस्थाएँ और उनके नियम इतने कठोर हैं कि कोई कोई कम्पनी इस प्रकार की हरकत के बारे में सोच भी नहीं सकती |
हमारे देश में स्थिति दूसरी है | यहाँ विदेश से आने वाली कम्पनियाँ हों या भारतीय कम्पनियाँ, मानक-नियम-क़ानून-सुरक्षा आदि के बारे में रत्ती भर भी परवाह नहीं करतीं.| यूनियन कार्बाइड गैस रिसाव मामले में हम देख चुके हैं कि हजारों मौतों और लाखों को विकलांग बना देने के बावजूद कम्पनी के कर्ताधर्ता अब तक सुरक्षित हैं , क्योंकि हमारे यहाँ भ्रष्टाचार सिरमौर बना रहता है | भारत में जमकर रिश्वतखोरी होती है, और जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ जारी रहता है | कुछ महीने पहले नेस्ले इंडिया के उत्पाद ख़ासकर ‘ मैगी ‘ में मानक मात्रा से अधिक मिलावट पकड़ी गई | इसमें अधिक सीसा पाया गया |खून में सीसे की अधिक मात्रा में जमा होने से कैंसर, दिमागी बीमारी, मिर्गी या फिर किडनी ख़राब हो सकती है।
यह स्विट्ज़रलैंड की नेस्ले कंपनी की अनुषंगी है , जिसे 2014 में ब्रांड इक्विटी रिपोर्ट में भारत का पांचवां विश्वसनीय ब्रांड का दर्जा दिया गया था | यह बात भी सच है कि हमारे देश में ‘ अंतिम विजय ‘ पूंजीपतियों की ही होती है , फिर देश में मोदी सरकार भी मौजूद है , जो पूंजीपतियों की हर विघ्न – बाधा की निवारक है | ‘ मैगी ‘ फिर मार्केट में है ! यह बड़ी आवश्यकता है कि देश बिक रहे खाद्य सामग्रियों की ठीक से जाँच करवाई जाए और अपमिश्रण की स्थिति में बिना किसी बाह्य दबाव के उन पर रोक लगाई जाए |
कोका-कोला और पेप्सी में इस्तेमाल होने वाला तत्व की वजह से कैंसर तक हो सकता है। इन पर रोक लगाने की बार – बार मांग की गई है , किन्तु भारत सरकार कोई क़दम नहीं उठाती | अमेरिका में इन कंपनियों ने अपने पेयों को स्वास्थ्य – अनुकूल बना लिया है , पर हमारे देश में पुराना ढर्रा ही चल रहा है | ब्रिटिश टैब्लॉइड ‘ डेली मेल ‘ के मुताबिक, अनुसंधानकर्ताओं का मानना है कि कोल्ड ड्रिंक्स में भूरा रंग लाने के लिए इस्तेमाल होने वाले कलर एजेंट की वजह से हजारों लोगों को कैंसर हो सकता है।
वॉशिंगटन डीसी के सेंटर फॉर साइंस इन द पब्लिक इंटरेस्ट (सीएसपीआई) ने कहा, ‘कोका-कोला, पेप्सी और बाकी चीजों में इस्तेमाल किए जाने वाले दो केमिकल कैंसर पैदा कर सकते हैं और इन्हें बैन किया जाना चाहिए।’ ‘कोल्ड ड्रिंक्स और बाकी चीजों में भूरा रंग लाने के लिए चीनी को अमोनिया और सल्फाइट के साथ उच्च दबाव और तापमान पर मिलाया जाता है। इस केमिकल रिऐक्शन में दो तत्व 2-एमआई और 4-एमआई बनते हैं। सरकारी स्टडी यह बात पता चली है कि ये तत्व चूहों के फेफड़े, लीवर और थायरॉइड कैंसर का कारण बने हैं।’ अतः इन पेयों समेत ज़हर की मिलावट वाले सभी उत्पादों पर दुनियाभर में पाबंदी लगनी चाहिए |

 

 

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