हम रोज़ाना ही देश के विकास के दावे जब सुनते और अख़बारों में पढ़ते हैं , तब – तब ऐसा लगता है कि हक़ीक़त की दुनिया को छोड़कर हम किसी और दुनिया में आ गए | मगर जब हक़ीक़त का पता चलता है और खाने के आश्वासनों के लालीपाप खाते – खाते खाने के लाले पड़ जाते हैं , तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और रही – सही पास रही ज़िन्दगी भी बहुत दूर निकल चुकी होती है | विगत तीन और चार जून 2018 को उत्तराखंड और झारखंड में भूख से पांच लोगों की दर्दनाक मौत हो गई | अख़बारों में छपी रिपोर्टों के अनुसार , उत्तराखंड के ऊधमसिंह नगर ज़िले में एक बेरोज़गार व्यक्ति ने अपनी पत्नी और दो बेटियों को ज़हर देकर हत्या करने के बाद अपनी भी जान दे दी | कुंडा क्षेत्र में हुई इस दिल दहला देने वाली घटना में हालांकि 33 साल के अंशुमान सिंह के दो अन्य बच्चे बच गए हैं।
औद्योगिक शहर काशीपुर से सटे कुंडा के थानाध्यक्ष सुधीर कुमार ने बताया कि बेरोजगारी के कारण कर्जदारों के तकाज़ों से परेशान हो गया था। बताया जाता है अंशुमान सिंह के घर में कुछ खाने को नहीं था , जिसके बाद वह बाहर से कुछ पैसे की व्यवस्था करने की बात कहकर निकला। दोपहर को वापस आने के बाद उसने अपनी पत्नी सरिता (30 वर्ष), बडी बेटी दिव्यांशी (15 वर्ष) मंझली बेटी हिमांशी (14वर्ष), छोटी बेटी आर्या (10 वर्ष) और इकलौते बेटे रूद्रप्रताप (13 वर्ष) को जबरन जहर खिलाने के बाद खुद भी खा लिया। आर्या और रूद्रप्रताप ने जहर थूक दिया और बाहर भाग निकले। बाहर जाकर उन्होंने इसकी जानकारी अपने मकान मालिक को दे दी। मकान मालिक के मौके पर पहुंचने तक अंशुमान सिंह और दिव्यांशी की मौत हो चुकी थी। सरिता तथा हिमांशी की हालत खराब थी। सरिता और हिमांशी को मकान मालिक ने सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया जहां उपचार के दौरान तीन जून कि सुबह उनकी भी मौत हो गयी| भुखमरी की एक अन्य घटना
झारखंड के गिरिडीह ज़िले में हुई , जहाँ एक 58 वर्षीया सावित्री नामक महिला की मौत भूख से हो गई | कहा जा रहा है कि न तो उनका राशन कार्ड बना था और न ही उन्हें विधवा पेंशन मिल रहा था | डुमरी के मधुवन थाना क्षेत्र के मंगरगड्डी गांव की निवासी मृतका सावित्री देवी के यहाँ तीन दिन से चूल्हा तक नहीं जला था | परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी | रोजगार की तलाश में उनके दोनों बेटे उत्तर प्रदेश के रामपुर और महाराष्ट्र के भुसावल में मजदूरी करते थे , लेकिन पिछले कुछ दिनों से वे घर पैसे नहीं भेज पा रहे थे | महिला की छोटी बहू भी गर्भवती थी | ग्रामीण बताते हैं कि छह माह से महिला के परिवार की स्थिति मांगकर खाने की हो गई थी | दूसरी तरफ़ गिरिडीह के प्रभारी उपायुक्त मुकंद दास ने कहा कि महिला की भूख से मौत नहीं हुई है | वह लकवाग्रस्त थी | जबकि चैनपुर पंचायत के मुखिया रामप्रसाद महतो और प्रखंड आपूर्ति पदाधिकारी शीतल प्रसाद काशी भी भूख को ही मौत की वजह ठहरा रहे हैं | शीतल प्रसाद ने कहा, ‘जिम्मेदार अधिकारियों की अनदेखी के चलते सावित्री का राशन कार्ड नहीं बन सका. जिसके चलते उन्हें राशन नहीं मिल पा रहा था | दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी |’ सावित्री के परिवार के किसी भी सदस्य का राशन कार्ड तक नहीं है. उन्हें विधवा या वृद्धावस्था पेंशन भी नहीं भी नहीं मिलता था | वह अपनी दो बहू और चार पोते-पोतियों के साथ गांव में रहती थीं | मृतका की बहू पूर्णिमा ने बताया कि ‘घर की हालत काफी दयनीय है | छह महीने से इधर-उधर से मांगकर पेट भर रही थी | दस दिन पहले एक स्वयं सहायता समूह से 3 किलो चावल मिला था | वह खत्म हो गया , तो घर में चूल्हा ही नहीं जला |’ 2011 की आर्थिक जनगणना के डाटा में उनका नाम न होने के चलते उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ भी नहीं मिल पाया था | झारखंड मुक्ति मोर्चा के स्थानीय विधायक जगरनाथ महतो ने राज्य की रघुबर दास सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा, ‘मैं विधानसभा में मामले को प्रमुखता से उठाऊंगा और गुनाहगारों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करूंगा |’ उल्लेखनीय है कि कुछ ही समय पहले सिमडेगा जिले के करीमती गांव में पिछले साल सितंबर में 11 वर्षीय संतोषी की भी कथित तौर पर भूख से मौत हो गई थी |
हमारे देश में मुहताजों और अभावग्रस्त लोगों की मदद के लिए कोई कारगर प्रबंध नहीं है | सरकारी तंत्र भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा है , गैर सरकारी तौर पर मिलनेवाली पारस्परिक एवं स्वयं सेवी संस्थाओं की सहायता पर ‘ ग्रहण ‘ लगा हुआ है | ब्याजमुक्त क़र्ज़ एक सपने की तरह है | हम आयेदिन ब्याज से विभिन्न प्रकार की हानियों को देख रहे हैं | ब्याज ने हमारे देश समेत दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं को आहत कर रखा है , फिर भी इसके विरुद्ध कारगर आवाज़ का न उठ पाना बेहद अफ़सोसनाक है | इस्लाम में ब्याज की सभी सूरतें वर्जित हैं | यह बड़े गुनाह का काम है | यह माँ के साथ व्यभिचार के सदृश है | अतः इससे बचने के सभी प्रयास किये जाने चाहिए | मानसिक तनाव और दबाव आत्महत्या के प्रमुख कारण हैं। सत्य है कि किसान अक्सर बैंकों से ऋण लेते हैं और उसकी अदायगी नहीं कर पाते , चक्र वृद्धि व्याज इसमें अति घातक भूमिका निभाता है | उनके लिए सरकार की भी ‘ कल्याणकारी राज्य ‘ की परिकल्पना साकार नहीं हो पाती | सरकार का अनुदारवादी चेहरा ही उन्हें अक्सर देखना पड़ता है | वे इस विषम परिस्थिति का मुक़ाबला नहीं कर पाते और कायरतापूर्ण क़दम उठा लेते हैं | निःसंदेह आज चहुंओर विकट स्थिति है | इतनी विकट कि कहा जाता है कि आज के दौर में शायद दुनिया में कोई ऐसा आदमी न होगा , जिसने अपने जीवन में कभी आत्महत्या करने के बारे मे न सोचा हो।
ऐसा भी होता है कि अनायास या सप्रयास वह बुरा वक्त गुजर जाता है और जिन्दगी फिर अपनी रप्तार से चल पड़ती है । सच यही है कि यदि वह समय गुजर जाये जिस समय व्यक्ति आत्मघात की ओर प्रवृत्त होता है , तो फिर वह आत्महत्या नहीं करेगा | कुछ कहते हैं कि आत्महती लम्बे समय से तनाव में था। महीने? दो महीने? छः महीने? मगर यह मुद्दत तो गुज़ारी जा सकती है | क्या बरसात के बाद सर्दी और सर्दी के बाद गर्मी की ऋतु नहीं आती ? क्या पतझड़ के बाद वसंत नहीं आता ? फिर जिन्दगी में हॅंसी – खुशी के दिन क्यो नहीं आ सकते हैं ? जिन्दगी हजार नेमत है |
वास्तव में जिन्दगी को जीना चाहिए | उसे जीना इन शब्दों में चाहिए कि उसे स्वाभाविक ज़िन्दगी मिले | ज़िन्दगी को निराशा से परे रखना चाहिए |. ठहरा हुआ तो पानी भी सड़ जाता है | अतः ज़िन्दगी में ठहराव अर्थात स्वांत नहीं आना चाहिए . ज़िन्दगी तो है ही चलने का नाम | ये जो गमो की स्याह रात है कितनी भी लम्बी हो कट ही जायेगी . फिर सुबह होगी, सूरज निकलेगा,फूल खिलेंगें, भौंरे गुनगुनायेंगें, पंछी चहचहायेंगें. फिर ज़िन्दगी में ही कैसे अन्धकार कैसे कायम रह सकता है ? हमेशा सुबह की आशा रखनी चाहिए | लेकिन फिर सवाल यह आएगा कि यह संभव कैसे होगा , तो इसके लिए धार्मिकता को अपनाना ज़रूरी है | वह भी सच्ची धार्मिकता | जब कार्य ईश्वर के इच्छानुसार किये जाएंगे और उसे ही कार्यसाधक भी माना जाएगा , तो ज़िन्दगी में निराशा , चिंता . कुंठा और हतोत्साह का आना असंभव है | दिल में सरलता और निर्मलता आ जाएगी . चिन्तन सकारात्मक होगा | – Dr RP Srivastava , Editor- in – Chief , ” Bharatiya Sanvad””