खासमखास

जीवन के विविध पक्षों पर बतियाती कविताएं

” शब्द-शब्द ” (काव्य संग्रह) प्रकाशक- समदर्शी प्रकाशन रचनाकार–रामपाल श्रीवास्तव ‘अनथक ‘ रामपाल श्रीवास्तव लंबे अर्से से पत्रकारिता के क्षेत्र में जुड़े रहे हैं।उनका व्यापक अध्ययन चाहे इतिहास से संबंधित हो या राजनीति से, भारतीय संस्कृति -परंपरा से हो,या फिर किसी भाषा से संबद्ध, उनके अनुभवों का यह विशाल दस्तावेज, Read more…

खासमखास

संघर्षों में जीवन रस की तलाश है ” सोख़्ता “

अनुभूतियों और संवेदनाओं के कुशल व ख़ूबसूरत चितेरे, हिन्दी के प्रतिष्ठित रचनाकार अख़लाक़ अहमद ज़ई का उपन्यास ” सोख़्ता ” कमाल का है | इसे लघु उपन्यास कहना बेमानी है | इसमें उपन्यास के सभी गुण मौजूद हैं , जो इसे प्रौढ़ता और दीर्घता की ओर ले जाते हैं | Read more…

सामाजिक सरोकार

गागर में सागर है ” शंख में समंदर ” 

वरीय उपन्यासकार डॉ. अजय शर्मा का सद्यः प्रकाशित उपन्यास ” शंख में समंदर ” दरअसल गागर में सागर है और मुझे पंजाब के अग्रणी हिंदी रचनाकार डॉ. ज्ञान सिंह मान की पुस्तक ” एक सागर अंजलि में ” [ काव्य संग्रह ] की इन पंक्तियों की याद दिला देता है Read more…

खासमखास

” जित देखूँ तित लाल ” – एक गंभीर वैचारिक स्वर

पुस्तक :जित देखूं तित लाल द्वारा : राम पाल श्रीवास्तव प्रकाशन: शुभदा बुक्स शीर्षक समीक्षा का शाब्दिक अर्थ है सम्यक् परीक्षा, अन्वेषण । पुस्तक समीक्षा में किसी पुस्तक की सम्यक् परीक्षा और विश्लेषण किया जाता है। इस परीक्षा और विश्लेषण से पाठक को पुस्तक विशेष के विभिन्न पहलुओं की जानकारी Read more…

खासमखास

” जित देखूँ तित लाल ” – 21 पुस्तकों की तथ्यपरक समीक्षा 

आज जब पुस्तकों की समीक्षाएं प्रायोजित होने लगी हैं। पत्र-पत्रिकाएँ पैसे लेकर पुस्तकों पर समीक्षाएं करने/कराने लगी हैं, ऐसे में जित देखूँ तित लाल का प्रकाशन सुखद ही कहा जा सकता है। इस पुस्तक में इक्कीस पुस्तकों पर अपने विचार व्यक्त किए हैं लेखक ने। रामपाल श्रीवास्तव वरिष्ठ पत्रकार हैं, Read more…

खासमखास

 ” तमाशाई ” उपन्यास जगत की बड़ी उपलब्धि 

” तमाशाई ” दरअसल व्यंग्यात्मक उपन्यास है | दीर्घकाय न हुआ , तो क्या हुआ दमदार है | 98 पृष्ठीय इस उपन्यास को छोटे – छोटे कथानकों का मजमूआ भी कह सकते हैं , जिनकी अदायगी जमूरा और मदारी [ उस्ताद ] करते रहते हैं | संवाद इतने प्रभावकारी और Read more…

सामाजिक सरोकार

सृजनशील पत्रिकाओं में शीर्ष पर ” पूर्वापर ” 

वरिष्ठ साहित्य सेवी लक्ष्मी नारायण अवस्थी जब पिछले दिनों मेरे आवास पर पधारे , तो ” पूर्वापर ५९ ” [ त्रैमासिक ] का अंक मुझे अवलोकनार्थ इनायत किया | इसका प्रकाशन गोंडा से होता है | अच्छा लगा इसे सरसरी तौर पर देखकर , इसलिए भी कि गोंडा जैसे आंचलिक Read more…

खासमखास

” नीरज बख़्शी की बतकहियाँ ” – व्यक्तित्व और कृतित्व का आईना  

” नीरज बख़्शी की बतकहियाँ ” पढ़कर भाई नीरज जी की याद बड़ी शिद्द्त के साथ आई | उनका पत्रकारिता से लगाव और जुड़ाव भी था | कवि थे ही | जब मैं तुलसीपुर होकर अपने गांव मैनडीह जाता , तो तुलसीपुर में उनसे अक्सर व बेशतर ही मुलाक़ात हो Read more…

खासमखास

” शब्द – शब्द ” – एक गंभीर वैचारिक काव्य – आंदोलन 

पुस्तक: शब्द-शब्द द्वारा : राम पाल श्रीवास्तव ” अनथक “ प्रकाशन: समदर्शी प्रकाशन “मेरी कविता आयास रचित नहीं अनुभूत होती है दुःख सुख ,वेदना ,और संवेदना की प्रसूत होती है” उक्त पंक्तियों से अपनी पुस्तक “शब्द-शब्द” का आरम्भ करने वाले, राम पाल श्रीवास्तव जी, साहित्य की विविध विधाओं में अपने Read more…

खासमखास

” उम्मीद की लौ ” – जीवन के चटक रंगों से सराबोर 

” उम्मीद की लौ ” मुझे काफ़ी समय पहले ही प्राप्त हो गई थी , लेकिन कुछ अपरिहार्य व्यस्तता के चलते इसे ठीक से न पढ़ सका और न ही इस बाबत सोच से बढ़कर कुछ अमली कोशिश ही कर सका | इधर के दिनों में इसको पढ़ लिया है Read more…

धर्म

सुन शब्द !

सुन शब्द ! तुम मेरे हो मेरे साथ हो जबसे मैंने जन्म लिया तुम मेरे साथ हो साथ रहोगे जैसा वादा करते रहे हो अपना वचन निभाओगे ? सदा के लिए वियुक्त हो जाओगे ? मगर क्या ? मैं जब कवि बनूँगा तब भी मेरा साथ दोगे ? अपना वचन निभाओगे ? Read more…

देश-देशांतर

शिनाख़्त का बहाना 

टेम्स का हरित वर्णी वेस्ट मिनिस्टर ब्रिज गवाह है सदियों का हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स की हरित सीटों की भाँति हमारे इनहितात का फिर भी सच है – लंदन में बसता है भारत पाकिस्तान, चीन बाँग्लादेश और जापान भी ‘ मिनी फॉर्म ‘ पेश करते इनके ग़ोशे इनके लघुरूप याद दिलाते Read more…

खासमखास

जो शेष बचेगा !

मैं ‘तुम ‘ हो और तुम ‘ मैं ‘ मैं शरीर, तुम आत्मा बस, यहाँ से जाने के बाद क्या होगा ? मुझे बताकर जाना मैं जानता हूँ कि किसी को पता नहीं फिर भी तुम कुछ न कुछ ज़रूर हो और मैं भी ! जब मेरा मन-मस्तिष्क दूर हो Read more…

सामाजिक सरोकार

हमें गण समाज चाहिए

आज गीत बिकते हैं उनका चीर – हरण होता है बेचे जाते हैं सरेराह लिखने से पहले बिक जाते हैं ! बिक जाते हैं गीतकार गीत लिखने से पहले पेशे का पेशा बदल गई दुनिया कहाँ से कहाँ आ गए हम ? तितलियाँ अब उड़ती नहीं बस, टाँकी जाती हैं Read more…

खासमखास

राम – प्रेम

हमारा राम – प्रेम अगाध प्रेम भक्ति हमारी शक्ति हमारी आसक्ति हमारी आप आदर्श हैं मर्यादा पुरुषोत्तम हैं करते हैं संहार असत का मिथ्या का तभी तो हुआ रावण – वध आपके कर – कमलों से आप ही का हम अनुसरण किए जाते हैं – मेघनाथ कुंभकर्ण और रावण का Read more…