देश-देशांतर

ओ, ताना रिक्शा ! तू गया, सामंतवाद क्यों नहीं ले गया… अलविदा

लगभग 35 वर्ष पहले जब मैं कोलकाता गया था बीबीसी के एक चुनावी कवरेज ( सर्वे ) का हिस्सा बनने, तब तक यह महाशहर अपने असली वजूद में था। उस वक्त कहा जाता था कि जिसने हाथ रिक्शा नहीं देखा और उस पर सवारी नहीं की, उसने कोलकाता का असली Read more…

देश-देशांतर

गीत जो मर्सिया बन जाता है !

चीन में जब से गिद्ध आए कबूतर नहीं उड़े ! मगर क्यों ? सबकी आंखें बंद हैं सबकी हरकतें बंद हैं उन्हें नहीं सुनाई पड़ती सिसकती आवाज़ें नहीं महसूस होती क्रूर पीड़ा निचुड़ती उम्मीदें बिछड़ती सांसें ! कोई जीवंतता नहीं मगर चंगेज़ ज़िंदा है भेड़ियों के भेष में दाल – Read more…

देश-देशांतर

हाशिमपुरा – जो लाश गिरी वो मेरी ही तो थी …

दंगे में जो लाश गिरी वो मेरी ही तो थी, हम हिंदू मुस्लिम का बहाना कब तलक बनाते ? – अनथक पूर्व पुलिस अफसर और हिंदी साहित्यकार विभूति नारायण राय की पुस्तक ” हाशिमपुरा 22 मई ” पढ़ने को मिली। इस पुस्तक पर सबसे ऊपर लगभग 36 प्वाइंट में यह Read more…

धर्म

शब्द श्री 

शब्द श्री ने दर्शन दिए मेरी श्रद्धा – भक्ति से प्रसन्न हुए कहा – मैं चाहता हूं कुछ बताऊं तुमको मैं कौन हूं ? क्या हूं ? जानोगे ? मैं थोड़ा विस्मय में पड़ गया सोचने लगा – भगवान, इस तरह, इस विशेष अंदाज़ में जो कह रहे हैं अवश्य Read more…

सामाजिक सरोकार

” हम एक हैं ” और रहेंगे

आज देश के पहले दलित आई ए एस डॉक्टर माता प्रसाद का जन्मदिन है … शत शत नमन।11 अक्तूबर 1925 को उनका जन्म जौनपुर, उत्तर प्रदेश में जगत रूप राम के यहां हुआ। कुछ संदर्भों में उनका 1924 में पैदा होना बताया गया है, जो गलत है।  दलित साहित्य के Read more…

सामाजिक सरोकार

दो कविताएं —

( 1 ) वर्षा का गांव …………… जैसलमेर से आगे मरुस्थल का गांव तपती दुपहरी ठहरते नहीं पांव दूरस्थ दिशा में रेतीले खंडहर में गहराता पतझड़ स्थल मरुस्थल वर्षा का गांव। ….. वाईपेन से आगे जलनिधि की छांव उगते पहाड़ गिरती बर्फ प्रचंड ग्रीष्म नौका का पिघलना तुषार – कण Read more…

धर्म

पिताश्री का गुलाब

अब भी खूब खिलता है मेरे आंगन का लाल गुलाब याद दिलाता है पिताश्री का जो इसके बानी थे और मेरे भी… उस समय मैं नहीं था जब उन्होंने लगाई थी दशकों पहले इसकी कलम गुलाब था आज भी है सदा सर्वदा रहेगा क्योंकि गुलाब के बिना जीवन नहीं यह Read more…

धर्म

हे राम !

हे राम ! सर्वशक्तिमान दयावान सर्वाधार निर्विकार अजर अमर जीवंत अनंत न्यायकारी सर्वसत्ताधारी सर्वव्यापक व्यथानाशक ” ऐसे घट – घट राम हैं दुनिया जानत नाहिं “ क्या कबीर ने जाना तुलसी का मर्म ? सच है – मेरे राम अवर्णनीय हैं असीम हैं आदि हैं अंत हैं अगणनीय इतने कि… Read more…

सामाजिक सरोकार

राष्ट्रपिता पर नई दृष्टि “कितने गांधी ?”

” मुझे दुनिया को कोई नई चीज़ नहीं सिखानी है। सत्य और अहिंसा अनादि काल से चले आए हैं। – मो. क. गांधी ” कितने गांधी ” को पढ़ते हुए गांधी का यह सत्य – वचन याद आया, जो उन्होंने An experiment with theTruth में प्रकट किया है। फिर यह Read more…

सामाजिक सरोकार

” स्पर्शी ” का स्नेहिल स्पर्श

.” स्पर्शी ” का दूसरा पुष्प हस्तगत हुआ। यह साहित्यिक पत्रिका है, जिसके संपादक हैं अतुल कुमार शर्मा और सह संपादक हैं दिलीप कुमार पांडेय। दोनों प्रतिभावान कवि भी हैं। पत्रिका उत्तर प्रदेश के संभल से प्रकाशित होती है। पत्रिका में इसकी अवधि का उल्लेख नहीं। संभवतः वार्षिक है, लेकिन Read more…

सामाजिक सरोकार

शब्द – शब्द

शब्द क्या है ? अंदर का बंधन अनहद नाद दिलों तक पहुंचने का तार रूह को तर – बतर का औज़ार झंकृत करता शब्दकार हक़ीक़त की परछाई बनाकर एक बहाना बनाकर कोई कितना भी ऊपर चढ़ जाए शब्द नहीं तो काठी नहीं जिस पर टिके जो बिन शब्दों के विचारों Read more…

अतिथि लेखक/पत्रकार

हम मरि जाब, हमरे लिये कोऊ कुछू नाही करत हय !

एक दिन अवधी महारानी ने शोकाकुल होकर मुझसे कहा, ” तू लोग काहे हमार दुरगत करत जात हव ? हमरे लिये कोऊ कुछू नाही करत हय … ऐसन मा हमरे मरैम केत्ती देर हय।” मैंने कहा कि आपने अच्छा किया। हमें ध्यान दिलाया। आप ठीक कहती हैं। हम लोगों ने Read more…

सामाजिक सरोकार

शब्द – परिधान

शब्द अपने भाव और अर्थ कैसे बदल लेते हैं ? कहां से चलकर कहां पहुंच जाते हैं ? इसी केंद्रीय विषय पर पेश हैं दो भिन्न शिल्प सौंदर्य में दो काव्य रचनाएं – ( 1 ) शब्द – परिधान ………………… कितना सुंदर मुखड़ा तेरा कितनी बेहतर भाषा है जैसा सोचो Read more…

सामाजिक सरोकार

मेरे शब्द जब सुनना …

मेरे शब्द जब सुनना … …………………….. एक निवेदन… एक आग्रह… मेरे शब्द जब सुनना तो ज़रूर आना कविता बनके आएं या नज्म गीत बनके आएं या ग़ज़ल कहानी बनके आएं या उपन्यास ख़बर बनके आएं या फीचर पत्र बनके आएं या अग्रलेख मधुरस घोलें या गरल बिखेरें उस हाल में Read more…

सामाजिक सरोकार

ज्ञान छिपाने की “कला” कल्याणमय नहीं !

2008 के शुरू में ( संभवतः फरवरी में, तिथि याद नहीं ) ” क़ौमी आवाज़ ” ( उर्दू दैनिक ) के देहली संस्करण में अंतिम पृष्ठ पर एक ख़बर छपी थी , जिसमें लखनऊ के एक शोहरतयाफ़्ता हकीम साहब की रहलत यानी मृत्यु की सूचना दी गई थी। साथ में Read more…