सामाजिक सरोकार

मेरे शब्द जब सुनना …

मेरे शब्द जब सुनना … …………………….. एक निवेदन… एक आग्रह… मेरे शब्द जब सुनना तो ज़रूर आना कविता बनके आएं या नज्म गीत बनके आएं या ग़ज़ल कहानी बनके आएं या उपन्यास ख़बर बनके आएं या फीचर पत्र बनके आएं या अग्रलेख मधुरस घोलें या गरल बिखेरें उस हाल में Read more…

सामाजिक सरोकार

ज्ञान छिपाने की “कला” कल्याणमय नहीं !

2008 के शुरू में ( संभवतः फरवरी में, तिथि याद नहीं ) ” क़ौमी आवाज़ ” ( उर्दू दैनिक ) के देहली संस्करण में अंतिम पृष्ठ पर एक ख़बर छपी थी , जिसमें लखनऊ के एक शोहरतयाफ़्ता हकीम साहब की रहलत यानी मृत्यु की सूचना दी गई थी। साथ में Read more…

सामाजिक सरोकार

शब्द भर जीवन

शब्द भर जीवन ………………….. ये शब्द… चलते हैं मेरे जीवन के साथ – साथ जीवन भर निरंतर इक आशा लिए ! रीतने की प्रक्रिया में स्थानापन्न बनते हुए ये शब्द… खो जाते किसी अदृश्य जगत में अपने ” जोम ” में नैमित्तिक वास स्थान की ओर अपनी दुनिया में … Read more…

सामाजिक सरोकार

मैं तो था ही !

मैं तो था ही ! ……………….. अब लोग पूछते हैं क्या कुछ पढ़ा – लिखा है ? क्या बताऊं, मैं उन्हें जो पढ़ा वह लिखा नहीं जो लिखा वह पढ़ा नहीं ! अब कुछ नहीं है मेरे पास सिवाय यादों, वादों और बातों के – संग हैं जीवन के इंद्रधनुषी Read more…

सामाजिक सरोकार

कुंठित मानसिकता के पैरोकार !

जो लोग विष्णु प्रभाकर जी पर पानी पी – पीकर यह आरोप लगाते हैं कि वे दूसरों की कद्र नहीं करते थे और अपनी सफलता तले सबको रौंदते थे, वे सभी आरोपी कुंठित हैं और हीन भावना के शिकार हैं। मैं उनको बहुत क़रीब से जानता – समझता हूं। उनको Read more…

धर्म

मैं कभी नहीं लिख पाऊंगा वह कविता…!

……………….. मैं सोचता हूं – मैं कभी नहीं लिख पाऊंगा वह कविता जो वृक्ष के सदृश है जिसके भूखे अधर लपलपा रहे धरा – स्वेदन – पान को आतुर वह वृक्ष जो दिन और रात देखता है ईश्वर को ! गिराता है अपने शस्त्र – रूप पत्ते इबादत के निमित्त Read more…

सामाजिक सरोकार

“उग्र” और “चंद्र” की याद दिला ” नीम अब सूख रहा है “…

” नीम अब सूख रहा है ” क्योंकि उसकी छांह के नीचे उसी की छांह को खरीदने – बेचने का जो सिलसिला चल रहा था, उसका आख़िरी नतीजा आ चुका है। पतन के दौर में जिस आदर्श और मूल्य की तलाश कभी हरफ़नमौला रचनाकार राही मासूम रज़ा ने पूरे मन Read more…

खबरनामा

अशफ़ाक़ुल्लाह खां, जिन्होंने शहादत का जाम हंस के पिया

ज़बाने हाल से अशफ़ाक की तुर्बत ये कहती है, मुहिब्बाने वतन ने क्यों हमें दिल से भुलाया है? बहुत अफ़सोस होता है बड़ी तकलीफ़ होती है, शहीद अशफ़ाक की तुर्बत है और धूपों का साया है। शहीद अशफ़ाक उल्लाह खां ने अपनी इस रचना के द्वारा अपनी शहादत का ऐलान Read more…

खासमखास

खुशक़िस्मत दुलरू

ये हैं दुलरू … अब साढ़े तीन साल के हो गए हैं। अब रह रहे हैं भारत – नेपाल सीमा के पास हिमालय की शैवालिक पर्वत मालाओं के लगभग अथ स्थान पर , उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में खैरमान डैम के पास। इनकी दास्तान बड़ी हृदय विदारक है! लेकिन हैं Read more…

देवीपाटन मंडल

” मेरा बलरामपुर ” – हम सबका बलरामपुर

बलरामपुर की है अपनी निराली पहचान, कोई शख़्स नहीं इसकी अज़मत से अनजान, कितनी तारीफ़ करूं मैं इस महबूबतरीन की, उर्फ़ – ए आम पर छाई है जिसकी अमिट दास्तान। – अनथक अपने आबाई शहर बलरामपुर को और क़रीब से जानने के लिए एमेजॉन से मंगाई पुस्तक ” मेरा बलरामपुर” Read more…

खासमखास

कितना सार्थक सुरंजन का सुचिंतन ?

भाई डॉक्टर राम शरण गौड़ अग्रणी लेखक होने के साथ व्यवहार – कुशलता के भी अग्रदूत सदृश हैं। वे जब हिंदी अकादमी दिल्ली के सचिव थे , मुझे अकादमी के आयोजनों में याद किया करते थे। साथ ही स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले में आयोजित होनेवाले कवि सम्मेलन Read more…

खासमखास

श्रेष्ठ कर्मों में स्पर्धा की भावना 

बौद्धिकता का ‘ दावा ‘ हर किसी का है। बौद्धिक नहीं भी हैं, फिर भी प्रत्यक्ष या परोक्ष या दोनों स्तरों पर दावा और किसी न किसी हद तक गुमान है। लेकिन हम वास्तव में कितने बौद्धिक हैं, यह हमारे चिंतन की प्रखरता और उत्कृष्टता पर निर्भर करता है। इसका Read more…

खासमखास

आज देश ने मिलकर यही पुकारा है

आज देश ने मिलकर यही पुकारा है – जय जवान, जय हिन्द एक ही नारा है! तिल भर भूमि बचाने को जो खून बहाते, पांडु पुत्र की भांति बर्फ़ में गलने जाते। जो स्वदेश पर जीवन-सुख न्योछावर करते, जिनसे आंख मिलाने में हमलावर डरते! हर जवान हमको प्राणों से प्यारा Read more…

खासमखास

प्रेमचंद क्या थे सचमुच ?

31 जुलाई 1880 ई. को महान साहित्यकार प्रेमचंद का जन्म वाराणसी के निकट लमही नामक ग्राम में हुआ था। उनकी साहित्य सेवा अद्वितीय है और उनकी भारतीयता कालजयी ! कुछ लोग उन्हें अपने कृत्रिम ख़ानों में फिट करने की कोशिश करते हैं , जो बेमानी है। उनका साहित्य विराट है। Read more…

खासमखास

प्रतिबद्ध राष्ट्र निर्माता चाणक्य 

चाणक्य को कौन नहीं जानता? सही अर्थों में ये विश्व के पहले अर्थशास्त्री थे। उनकी पुस्तक ” अर्थशास्त्र ” में सिर्फ़ अर्थशास्त्र नहीं। राजकाज को सही ढंग से कैसे चलाया जाए, इसका पूरा ब्योरा है। इन्हीं के बताए रास्ते पर आज दुनिया के सभी देश चल रहे हैं। अंधाधुंध करारोपण Read more…