”त्राहिमाम युगे युगे ” अपने बलरामपुर के बहुआयामी लेखक राम पाल श्रीवास्तव का एक ऐसा उपन्यास है जिसमें नई ज़मीन तोड़ी गई है। इस उपन्यास का लेखक बहुपठित और पंडित व्यक्तित्व का स्वामी है और उत्तरप्रदेश के अन्य कायस्थ समाज के शायर और अदीबों की तरह गंगाजमुनी तहज़ीब की वकालत करता है।
यह अपने बीसियों प्रकाशित कृतियों में विधाओं से भी ऊपर उठता है। यह उसकी चरम गुणवत्ता भी है और सीमा भी। पत्रकार होने के कारण वह बहुत जल्दी किसी भी विधा की किताब को तैयार कर देता है।
इस कृति को यदि आंचलिक उपन्यास माना
जाय तो तो पत्रकारों के कवरेज की तरह जपन्यास थोड़ा प्रोजी ( Prosy ) लगता है, लेकिन प्रोजी का मतलब गद्यात्मक कतई नहीं। यदि रिपोर्ट टाइप की सामग्री कम कर दिया जाता, उपन्यास में पठनीयता और ज़्यादा होती।
इस जपन्यास को लिखने के लिए राम पाल जी ने बहुत श्रम किया होगा। यह एक Sociological Novel ( सामाजिक उपन्यास )
है, जिस पर PHD किया जा सकता है।
भाषा किसी भी रचना का शरीर भी हो सकता है और प्राण भी।
यहां श्रीवास्तव जी अवधी के कई शब्दों को पुनर्जन्म देते हैं जिसे यह पीढ़ी भूल चुकी है। जैसे लावरा,निचियाना,मौदी चौ आदि।
Ben Johnson की तरह इन्होंने खेल तमाशाओं से संबंधित एकदम नए शब्दों को रचा है या मरने से बचाया है। लेखक को इतना सशक्त उपन्यास लिखने की बधाई।अभी इतना ही।
– उदयभानु पांडेय
दिफू, असम
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“त्राहिमाम युगे युगे” – एक सशक्त उपन्यास
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