मेरे शब्द जब सुनना …
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एक निवेदन…
एक आग्रह…
मेरे शब्द जब सुनना
तो ज़रूर आना
कविता बनके आएं
या
नज्म
गीत बनके आएं
या
ग़ज़ल
कहानी बनके आएं
या
उपन्यास
ख़बर बनके आएं
या फीचर
पत्र बनके आएं
या
अग्रलेख
मधुरस घोलें
या गरल बिखेरें
उस हाल में
तो ज़रूर आना !
…
मैं नहीं चाहता
मैं जो लिखूं
तुम पढ़ न सको
लिखना और पढ़ना ही जीवन है –
कोई कर्म लिखता है अपने कर से
कोई मर्म लिखता है अपने कलम से
मैं मर्म लिखता हूं
जब महसूस करना
जब मुझे सुनना
तो ज़रूर आना
…
गूढ़ मैं लिखता नहीं
कि कुछ न बन पाऊं
आकार देता हूं
निराकार को !
और
यही शब्द देता है
फिर निराकार – निराकार लिखते
साकार पुस्तक बन जाती है ! –
इसकी धमक जब सुनना
तो ज़रूर आना
…
मुझे पढ़ने का वक्त निकालना
इसीलिए
हर पन्ने खोल रखे हैं मैंने –
इस आस में कि
यह पुस्तक तुम पढ़ लोगी
उस दिन मैं धन्य हो जाऊंगा
अपने आप से
अपने प्रयास से !
जानता हूं
पुस्तक पढ़ते ही इन्सान
खो देता है अपने को
पुस्तक बनकर
उसके शब्दों में !!
कोई नहीं आता… !!!
तो ज़रूर आना।
– राम पाल श्रीवास्तव ‘ अनथक ‘
( तीन अक्तूबर, 2022 )