मोदी सरकार आज अपनी आर्थिक नीतियों को लेकर कठिन परीक्षा के दौर से गुज़र रही है | 2014 में सत्तासीन हुई मोदी सरकार की आर्थिक नीतियां आज सवालों के घेरे में हैं | सवाल सिर्फ़ प्रतिपक्ष या अन्य तटस्थ देशी – विदेशी संस्थाएं ही नहीं उठा रही हैं , अपितु भाजपा के अंदर से भी सवाल उठ रहे हैं | पूर्व वित्त मंत्री एवं भाजपा के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा ने तो अर्थव्यवस्था की खस्ताहाली पर ‘ द इंडियन एक्सप्रेस ‘ के गत 27 सितंबर के अंक में ” आई नीड टू स्पीक अप नाऊ ‘ [ मुझे अब बोलना ही पड़ेगा ] शीर्षक से एक लेख ही लिख डाला है , जिसमें उन्होंने सरकार की आर्थिक नीतियों पर कड़े प्रहार किए हैं |
उन्होंने वित्त मंत्री अरुण जेटली पर तीखा प्रहार करते हुए कहा कि मोदी ने तो करीब से गरीबी देखी है लेकिन लगता है कि जेटली पूरे देश को बेहद करीब से गरीबी दिखा देंगे | लेख में उन्होंने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था गर्त की ओर जा रही है | भाजपा में कई लोग ये बात जानते हैं, लेकिन डर की वजह से कुछ कहेंगे नहीं | नोटबंदी और जीएसटी की आलोचना कर सिन्हा ने निशाना तो जेटली पर साधा पर उनका इशारा प्रधानमंत्री की तरफ भी रहा | लेख छपने के बाद लाइम लाइट में आए यशवंत सिन्हा अगले दिन मीडिया से मुखातिब हुए | उन्होंने मीडिया से कहा कि पिछले डेढ़ साल से अर्थव्यस्था में लगातार गिरावट का दौर जारी है और इसके लिए पिछली सरकारों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। उन्होंने कहा कि 40 महीने सरकार में रहने के बाद हम पिछली सरकारों पर दोष नहीं डाल सकते।
न्यूज चैनल एन एन आई से बातचीत में यशवंत सिन्हा ने कहा, ‘मैंने सालभर पहले प्रधानमंत्री मोदी से मिलने के लिए समय मांगा था। वे मुझसे नहीं मिले। क्या मुझे उनके घर के आगे धरना देना चाहिए… सरकार और पार्टी में हमारी बात सुनने के लिए कोई तैयार नहीं है।’यूपीए के वक्त पॉलिसी पैरालिसिस था और उम्मीद थी कि मोदी सरकार के आने के बाद यह खत्म होगी। उन्होंने कहा कि हम कुछ आगे बढ़े लेकिन वह गति नहीं दिखी जो होनी चाहिए थी। अर्थव्यवस्था में गिरावट से बेरोजगारी भी बढ़ी है। बैंकों के फंसे कर्जों पर चिंता जताते हुए सिन्हा ने कहा कि बैंकों के 8 लाख करोड़ रुपये फंसे हुए हैं। एनपीए की वजह से बैंकों ने ऋण देना बंद कर दिया, जिससे प्राइवेट इन्वेस्टमेंट नहीं हो रहा।
सिन्हा ने कहा, ‘एनपीए को काबू किये जाने की जरूरत है लेकिन अभी तक सरकार ने इस दिशा में कुछ खास नहीं किया है। 40 बड़ी कंपनियों के खिलाफ दिवालियापन की प्रक्रिया चल रही है। बैंकों की हालत में सुधार का इन्तिज़ार था जिसका अब भी इन्तिज़ार है।’ सिन्हा ने नोटबंदी और जीएसटी की टाइमिंग पर सवाल उठाते हुए कहा कि लोग अभी एक झटके से उबरे भी नहीं थे कि दूसरा झटका दे दिया गया। सिन्हा ने कहा, ‘डेढ़ साल से अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी है…पिछली छह तिमाहियों से अर्थव्यवस्था में लगातार गिरावट आ रही है…नोटबंदी बीच में आई है…उसे ऐसे वक्त में नहीं लाया जाना चाहिए था जब अर्थव्यवस्था चरमराई हुई थी…नवंबर में लाया गया…उससे अभी उबरे भी नहीं थे कि जुलाई में जीएसटी ला दिया…हो सकता है नोटबंदी से आगे चलकर अच्छे परिणाम निकले….लेकिन सरकार को उसके तात्कालिक असर का अध्ययन करना चाहिए।’
भाजपा के ही शत्रुघ्न सिन्हा ने भी यशवंत सिन्हा के सुझावों का समर्थन करते हुए कहा है कि सिन्हा सफल वित्तमंत्री रहे हैं | उनके सुझावों को ऐसे ही नहीं ठुकरा देना चाहिए | यशवंत सिन्हा की इस प्रतिक्रिया के बाद मोदी सरकार के विरोध में जो स्वर उठे , उसे नज़रअंदाज़ करना उचित नहीं होगा | शिवसेना के मुखपत्र ‘ सामना ‘ में लिखा गया, ”गुजरात के विकास का क्या हुआ? इस सवाल पर गुजरात के लोग कह रहे हैं कि विकास पागल हो गया है. सिर्फ गुजरात ही क्यों पूरे देश में विकास पागल हो गया है | ऐसी तस्वीर भाजपा के बड़े नेता सामने ला रहे हैं |” शिवसेना ने सामना में लिखा है, ”राहुल गांधी ने भी कहा है कि विकास को लेकर बड़ी-बड़ी बातें की गई इसलिए विकास पागल हो गया है. अर्थव्यवस्था के बड़े जानकार मनमोहन सिंह और चिदंबरम जैसे लोगों ने जब ऐसा कहने की कोशिश की तो उन्हें ही पागल करार देने की कोशिश की गई लेकिन अब भाजपा के ही पूर्व वित्त मंत्री ऐसा कह रहे हैं | अब यशवंत सिन्हा बेईमान या राष्ट्रद्रोही ठहराए जा सकते हैं |” शिवसेना में आगे लिखा है, ”इन दिनों कई मामलों में सरकारी योजनाओं की धज्जियां उड़ रही हैं फिर भी विज्ञापनबाजी का डोज देकर सफलता का ढोल बजाया जा रहा है | यशवंत सिन्हा गलत हैं तो सिद्ध करो कि उनके आरोप झूठे हैं |” वास्तव में सिन्हा का बयान भाजपा के लिए गले की हड्डी बन गया है | अब पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी ने केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है | वे भाजपा की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में विनिवेश मंत्री थे | इनके कार्यकाल में सरकार की प्रतिष्ठित कंपनियों बाल्को , माडर्न फ़ूड इण्डस्ट्री आदि को बेचा गया था | उस वक्त इस क़दम की ख़ूब आलोचना हुई थी और सरकार को संसद में कई बार सफ़ाई देनी पड़ी थी |
एक टी वी चैनल को दिए इंटरव्यू में अरुण शौरी ने नोटबंदी और जीएसटी को लेकर मोदी सरकार की आलोचना की है और इन्हें भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए आत्मघाती क़रार दिया है | उन्होंने नोटबंदी को मनी लॉन्ड्रिंग स्कीम बता डाला | उन्होंने आरोप लगाया कि नोटबंदी के जरिए बड़े पैमाने पर काले धन को सफेद करना का काम किया गया | उन्होंने ऐसा कहते हुए आरबीआई की उस जानकारी को भी साझा किया जिसमें नोटबंदी के बाद 99 फीसदी पुराने नोट बैंकों में जमा होने की बात कही गई थी |
अरुण शौरी ने सिर्फ नोटबंदी को लेकर ही केंद्र सरकार पर टिप्पणी नहीं की, बल्कि जीएसटी पर भी सरकार के कदम को गलत ठहराया. | उन्होंने कहा, ‘इस वक्त देश आर्थिक संकट से जूझ रहा है और यह संकट जीएसटी की वजह से पैदा हुआ है |’ पूर्व मंत्री ने जीएसटी लागू करने को नासमझी में लिया गया फैसला करार देते हुए कहा कि जीएसटी में बड़ी खामियां हैं | यही वजह है कि सरकार को कई बार इसके नियमों में बदलाव करने पड़ रहे हैं | जीएसटी से कारोबार पर बड़ा संकट आया है और लोगों की आमदनी घटी है |
अरुण शौरी ने मोदी सरकार के कामकाज पर भी टिप्पणी की | उन्होंने कहा कि ” मौजूदा सरकार का फोकस सिर्फ इवेंट मैनेजमेंट पर है | सिर्फ ढाई लोग ही पूरी सरकार चला रहे हैं और यहां किसी को नहीं सुना जाता है | ” भाजपा में आरोप – प्रत्यारोप का दौर जारी है | इसमें एन डी ए के कुछ घटक दलों के साथ ही आर एस एस के कुछ अनुषंगी संगठन भी शामिल हो गए है |
चौतरफ़ा आलोचना और अपने ही लोगों के आरोपों से घिरी मोदी सरकार ने अर्थव्यवस्था की खस्ताहाली को ठीक करने के लिए उत्पाद शुल्क में दो रुपए की कटौती करके जनता को थोड़ी राहत दी है और जी एस टी के प्रावधानों में कुछ रियायत देकर आलोचकों का मुंह बंद करने की कोशिश की है , लेकिन सरकार के इन क़दमों को पर्याप्त नहीं माना जा सकता | मोदी सरकार की जो आलोचनाएं की जा रही हैं , उनमें पूंजीपतियों को प्रश्रय की बात अहम है | व्यापर पत्रिका ‘ फ़ोर्ब्स ‘ ने अपने ताज़ा अंक में लिखा है कि आर्थिक सुस्ती के बाद भी शीर्ष 100 अमीर लोगों की संपत्ति में 26 प्रतिशत की बृद्धि हुई है | फोर्ब्स का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आर्थिक प्रयोगों का भारत के अरबपतियों पर नाममात्र का असर पड़ा है | पिछले एक साल के दौरान मुकेश अंबानी की संपत्ति में 15.3 अरब डॉलर यानी 67 प्रतिशत का इजाफा हुआ है | इस तरह वह शीर्ष स्थान पर अपनी पकड़ मजबूत करने के साथ ही एशिया के शीर्ष पांच अमीरों में शामिल होने में सफल रहे | कुछ राजनीतिक प्रेक्षक इसे मोदी सरकार की पूजीवादी नीतियों का प्रमाण बता रहे हैं |
इन सारी हकीकतों के बावजूद क्या सरकार की ओर से क्या यही तोतारटन्त अब भी है कि ” भारत की अर्थव्यवस्था बहुत तेज़ी से बढ़ रही है और राष्ट्र चीन के मुक़ाबले में खड़ा होनेवाला है | ” सही स्थिति यह है कि नोटबंदी के आर्थिक वृद्धि के मामले में भारत चीन से पिछड़ गया है | निकट भविष्य में भी अभी सुधार की कोई आशा नहीं है , क्योकि जी एस टी की मार अलग से पड़ रही है | अतः सरकार को चाहिए कि ” नव प्रयोगों ” से बचे और चरमराती अर्थव्यवस्था को ठीक करने के लिए संजीदा हो | आर . बी . आई . के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ठीक ही कहते हैं कि ” सरकार को दुनिया में सबसे तेज़ी से बढनेवाली अर्थव्यवस्था को लेकर अपना सीना तब तक नहीं ठोंकना चाहिए , जब तक कि लगातार दस वर्ष तक मज़बूती के साथ जी डी पी वृद्धि हासिल नहीं कर ली जाती | ” सफ़ाई में जो बात वित्तमंत्री अरुण जेटली की तरफ से कही जा रही है , वह तथ्यपरक कदापि नहीं है | यशवंत सिन्हा ने जीडीपी की सही स्थिति 3 . 7 बताई है , जबकि सरकार 5 . 7 बता रही है | बहरहाल देश का जो आर्थिक परिदृश्य है उसे संतोषजनक नहीं कहा जा सकता | सरकार को इस ओर पर्याप्त ध्यान देना चाहिए | – Dr RP Srivastava