हिंदी में लघुकथाकार के रूप में प्रतिष्ठित डॉ. जवाहर धीर का लघुकथा संग्रह ” अब हुई न बात ” पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ | डॉ. धीर पिछले कई दशकों से लेखन में सक्रिय हैं | इनकी कई रचनाएँ ख़ासकर लघुकथाओं को कई स्थापित पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ चुका हूँ, जो सभी अच्छी लगती रही हैं |
107 पृष्ठीय ” अब हुई न बात ” में रचनाकार के चार बड़े आकार के चित्रों को देखकर मन गदगद हो गया | ये चित्रावलियाँ अभिनव प्रयोग से कम नहीं !
मैं जब भी लघुकथा या लघुकथाएँ पढ़ता हूँ, तो सहज रूप से मुझे आजी [ दादी ] और अम्मा [ माता ] की याद आ जाती है, जो बचपन में मुझे सुलाने के लिए लोरी की जगह लघुकथाएँ सुनातीं और इसी बीच न जाने कब मैं सो जाता | ये कथाएँ लघुता रूप तो लिए ही होती थीं, साथ ही शिक्षाप्रद और प्रेरक होती थीं |
जब मेरी निगाह लघुकथा के उद्भव पर जाती है, तो इन्हीं पूर्वजों को इसका आद्यक पाता हूँ | इन्हीं के आधार पर अधिक परिमार्जन के साथ उपनिषद कथाएँ और पंचतंत्र आदि रचनाएँ लिखी गईं |
जीवन की सच्चाई को उजागर करती हुई ” अब हुई न बात ” की सभी 89 लघुकथाएँ पैनी, धारदार होने के साथ अपने निहित पैग़ाम को सफलतापूर्वक संप्रेषित करने में सक्षम हैं | कुछ लघुकथाओं का लब्बोलुबाब देखिए –
जीवहत्या पर रोक की प्रेरणा देती लघुकथा ‘ सुकून ‘ सुकून देती है और पल भर में ही अपने अन्तस् में झाँकने को प्रबोधित करती है | ‘ एक रात ‘ भी बेजोड़ है | लघुकथा के कहन को सार्थक करती है | जबकि ‘ बदलते शीर्षक ‘ एक कटु यथार्थ है | मानवीय रिश्तों में आ रही दूरियाँ अति शोचनीय और चिंतनीय है | ‘ भाग्य ‘ ग़ज़ब की है | धन केंद्रित समाज की सच्चाई है |
‘ आगे पीछे ‘ परोपकार की मुसीबत का सटीक बयान है | ‘ ओवरलोड ‘ दास्तान है पुलिसिया भ्रष्टाचार की | दो मुर्ग़ों ने काम बना दिया | इसी प्रकार सेंसरबोर्ड की ‘आपत्ति ‘ निरस्त हो गई है, तीखे परिवर्तन से ! ‘ अपनी – अपनी ज़रूरत ‘ अति स्वार्थपरता की अक्कासी है | ‘ मानवता ‘ ही सच्ची मानवता है | फिर आशक्त जनों की मानवता पर कौन न उत्सर्ग हो जाए ?
‘ एकाग्रता ‘ पारलौकिक जीवन को भंग कर देती है, किन्तु वास्तव में ऐसा है नहीं | ‘ सूखा राशन ‘ भौतिकवाद पर गंभीर चोट करती है और पाठकों की दोनों आँखों को खोल देती है | ‘ संज्ञाहीन ‘ मार्मिक है और लोगों की सतही मनोवृत्ति को दर्शाती है | ‘ लाटरी ‘ का संदेश अधिक स्पष्ट नहीं है , फिर भी बात हुई न ! सभी कथाओं का शिल्प और सौष्ठव बड़ा शानदार है और सभी यथार्थ धरातल पर खड़ी हैं | रचनाकार को बधाई, मंगलकामनाएँ !
पुस्तक में प्रूफ की काफ़ी गलतियाँ हैं, जिनमें शीर्षक भी सन्निविष्ट हो जाता है | नुक़्ते का प्रयोग हर किसी पर इच्छाभिघात कर सकता है | मेरा मानना है, जब उर्दू के शब्दों पर नुक़्ते लगाए जाएं, तो सभी पर लगाएँ, अन्यथा लगाए ही न जाएँ |
– Dr RP Srivastava
Editor-in-Chief, Bharatiya Sanvad
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