हमारे देश में सार्वजनिक वितरण प्रणाली का भ्रष्टाचार से पुराना संबंध है | यह प्रणाली पी डी एस नाम से मशहूर है | यह प्रणाली अभाव की स्थिति में खाद्यान्नों का प्रबंध करने एवं उन्हें उचित मूल्य पर वितरण के लिए तैयार की गई थी | 1992 तक यह प्रणाली बिना किसी विशिष्ट लक्ष्य के सभी उपभोक्ताओं के लिए एक आम हकदारी की योजना थी | पुनर्गठित सार्वजनिक वितरण प्रणाली पूरे देश के 1775 ब्लाकों में जून 1992 में लागू की गई | 1997 में इस प्रणाली लक्ष्य पर आधारित किया गया , लेकिन यह सच है कि किसी भी शक्ल में यह भ्रष्टाचार से दामन नहीं छुड़ा पाई | हर प्रदेश का हर ज़िला इस प्रणाली की भ्रष्टाचारी रुपरेखा को बताने में आज भी सक्षम है | अभी पिछले दिनों राजस्थान में राशन के गेहूं , केरोसिन और चीनी की कालाबाजारी के खुलासे के बाद राज्य सरकार ने एक आइएएस अधिकारी समेत बीस से ज्यादा अधिकारियों और कर्मचारियों को निलंबित कर दिया गया है, जिसे दिखावे कि कार्यवाही बताया जा रहा है | इसी सिलसिले में राज्य के

भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने कई जगहों पर छापामारी की थी और इस घपले में अभी कुछ और लोगों के लिप्त होने की आशंका जताई जा रही है। एक ओर तो राज्य के खाद्यमंत्री बाबूलाल यह फरमा रहे हैं कि किसी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा, वहीं दूसरी ओर प्रदेश के भ्रष्ट अफसरों और कर्मचारियों को बचाने के लिए क़ानून बनाने कि तैयारी चल रही है | इस बाबत जो मसविदा बनाया जा रहा है , उसमें भ्रष्टाचार उजागर करनेवाले को भ्रष्टाचार सिद्ध न कर पाने पर कड़े दंड का प्रावधान है |

अगर ऐसा हुआ , तो वह एक काला क़ानून होगा , क्योंकि अक्सर देखा जा है कि भ्रष्टाचारी को कभी अधिकारी – कर्मचारी और कभी पूरा विभाग ही आपसी मिलीभगत व रज़ामंदी के सहारे बचा ले जाते हैं | इस सूरत में ताज़ा कोशिश आसानी से भ्रष्टाचार उजागर करनेवाले को गिरफ़्त में ले सकती है और भ्रष्टाचार रूपी दरिया का बहाव और तेज़ हो सकता है | राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता एवं जयपुर जिलाध्यक्ष प्रतापसिंह खाचरियावास ने कहा है कि राशन के गेंहू की कालाबाजारी के बड़े घोटाले से राजस्थान की भाजपा सरकार नहीं बच सकती। पिछले चार वर्षों में राज्य सरकार ने पिछली कांग्रेस सरकार के समय खाद्य सुरक्षा गारन्टी कानून के तहत मिलने वाले गेंहू से गरीबों को वंचित कर दिया। अब जब सम्पूर्ण खुलासा हो गया है कि गरीबों को मिलने वाले गेंहू की सैकडों बोरियां पूरे राजस्थान में बड़े पैमाने में कालाबाजारी के जरिये बड़े पैसे वालों को बेच दी जाती है, तब सरकार ने एक आईएएस सहित 19 अधिकारियों को निलम्बित करके इस मामले पर पर्दा डालने का प्रयास किया है। इससे सरकार ईमानदार साबित नहीं होती, बल्कि सरकार के ऊपर पूरी तरह से भ्रष्टाचार साबित होता है। कुछ समय पहले राजस्थान की राजधानी जयपुर के बस्सी क्षेत्र में राशन घोटाला प्रकाश में आया था | फिर भी खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग की कार्रवाई केवल प्राथमिकी दर्ज कराने तक ही सीमित रही , जबकि बताते हैं कि यह घोटाला विगत सात सालों से चल रहा था |

घोटाले के अहम किरदार निभाने वाले विभाग के जिला रसद अधिकारी, प्रवर्तन निरीक्षक, राशन डीलर को सामग्री देने वाली सहकारी समिति के मैनेजर, स्थानीय सरपंच सहित राशन डीलर के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं की गई। मजेदार बात तो यह है कि राशन डीलर की मौत होने के उपरांत भी प्रवत्र्तन निरीक्षक की मिलीभगत से मृतक के फर्जी हस्ताक्षरों से यह खेल चलता रहा। मामला जब विधानसभा में उठा , तो सरकार सकते में आ गई और जांच बैठा दी गई। यह विडंबना है कि सरकारें लंबे समय तक सोती रहती हैं, जब पानी सिर के ऊपर से गुजरने लगता है, तब कहीं जाकर उनके कान पर जूं रेंगती है। यह आश्चर्यजनक है कि जोधपुर समेत पांच जिलों के साठ स्थानों पर राशन घोटाला अरसे से हो रहा था, लेकिन अब जाकर सरकार को पता चला।

इस देश में राशन घोटालों का लंबा इतिहास है। अभी पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में 2100 करोड़ रुपए का राशन घोटाला सामने आया है , जिसकी जाँच के आदेश दिए गए हैं | इस घोटाले में पहले फर्जी राशन कार्ड बनाए गए, फिर उन कार्डों से राशन का कोटा बढ़ाया गया और बंदरबांट कर ली गई | पिछले कुछ समय से योगी सरकार राज्य में 30 लाख से ज्यादा फर्जी कार्ड होने का दावा कर रही है | इन कार्डों की संख्या को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समय-समय पर सार्वजनिक मंचों से पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार को निशाने पर लेते रहे हैं | इस मामले की पृष्ठभूमि में भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेयी की वे चिट्ठियां हैं , जिनके आधार पर वे पहले अखिलेश सरकार और फिर नई भाजपा सरकार पर जांच का दबाव बनाते रहे हैं | उन्होंने इस मामले में सिर्फ मेरठ में ही 78 करोड़ के घोटाले का आरोप लगाया | वे कहते हैं कि पूरे उत्तर प्रदेश में 2,100 करोड़ रुपए से ज्यादा के घोटाला हुआ है | अब मुख्यमंत्री योगी के निर्देश पर मेरठ के मामले में एसआईटी जांच के आदेश गृह विभाग ने जारी किए है

2004 में उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव के कार्यकाल के बहुचर्चित घोटाले की जांच सीबीआई ने की थी, उसका कुछ नतीजा नहीं निकला। 2003 से 2007 की अवधि के घोटालों की जाँच हुई | लगभग दो लाख करोड़ रुपए घोटाले का आरोप लगा और इसे उस वक्त का सबसे बड़ा राशन घोटाला क़रार दिया गया , पर मनरेगा जाँच की तरह यह भी टाय- टाय फिस्स हो गया | फिर भी यह ज़रूर हुआ कि सीबीआई राज्य सरकार के विशेष जांच दल (एसआईटी), प्रशासनिक जांच से राज खुला कि भारतीय खाद्य निगम, राज्य सरकार के गोदामों से सीधे गेहूं-चावल विदेशी बाजारों में नेपाल, बंगलादेश, दक्षिणी अफ्रीका आदि में बिका। जांच के दौरान एक अधिकारी की रहस्यमय स्थिति में मौत हुई। संप्रग का दोहरा चेहरा यह है कि इस प्रकरण को ठंडे बस्ते में बंद किया और बसपा को मनरेगा पर घेरना चाहा। यह यक्ष प्रश्न है कि सपा के तत्कालीन मुख्यमंत्री के कार्यकाल के अनाज घोटाले पर कांग्रेस इतनी उदासीन क्यों है?

राज्य सरकार के विशेष जांच दल (एसआईटी) ने आगरा, अलीगढ़, आजमगढ़, इलाहाबाद, औरैया, बलरामपुर, बदायूँ, बहराइच, बलिया, इटावा, ऐटा, फतेहपुर, फिरोजाबाद, फर्रुखाबाद, गाजीपुर, गोंडा, हरदोई, जौनपुर, जालौन, झांसी, कौशाम्बी, कानपुर, कन्नौज, लखीमपुर खेरी, ललितपुर, लखनऊ, मिर्ज़ापुर, मऊ, मथुरा, मैनपुरी, महोबा, मुजफ्फरनगर, प्रतापगढ़, पीलीभीत, संत कबीरनगर, संत रविदास नगर, सोनभद्र , श्रावस्ती, शाहजहांपुर, सीतापुर, वाराणसी ज़िलों में हजारों टन अनाज की गड़बड़ी पकड़ी। यह अनाज केंद्रीय योजनाओं के मद में खर्च होना था। एसआईटी ने केंद्रीय योजनाओं के खाद्यान्न के खुले बाजार में और बंगलादेश, नेपाल आदि देशों में गैरकानूनी रूप से बिकने के प्रमाण पकड़े।

अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ के राशन घोटाले भी उल्लेखनीय रहे हैं। छत्तीसगढ़ का घोटाला तो छत्तीस हजार करोड़ रुपए का था | इस राज्य को खाद्य सुरक्षा क़ानून को सबसे पहले लागू करने का श्रेय प्राप्त है | इस बाबत इसे कई पुरस्कार मिल चुके हैं | सुप्रीम कोर्ट भी इसकी सराहना कर चुका है | गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ खाद्य सुरक्षा क़ानून में 35 किलो अनाज के साथ-साथ अंत्योदय और प्राथमिकता वाले परिवारों के लिए हर महीने दो किलो निःशुल्क आयोडीनयुक्त नमक, पांच रुपए प्रति किलो की दर पर दो किलो चना, 10 रुपए प्रति किलो की दर पर दो किलो दाल का प्रावधान है | छत्तीसगढ़ सरकार ने खाद्य सुरक्षा क़ानून लागू करते समय दावा किया था कि इसके तहत राज्य के 55 लाख 66 हजार 693 परिवारों को किफ़ायती दर पर अनाज मिलेगा | राज्य में कुल राशन कार्डों की तादाद सामने आई, तो पता चला कि राज्य में जितने परिवार हैं, उनसे लगभग आठ लाख अधिक राशन कार्ड बन चुके हैं |

यह तब है, जब छत्तीसगढ़ खाद्य सुरक्षा क़ानून में आर्थिक रूप से संपन्न आयकरदाता परिवारों, 10 एकड़ से अधिक सिंचित या 20 एकड़ से अधिक असिंचित भूस्वामी परिवार और शहरी क्षेत्रों में 100 वर्गफ़ीट से ज़्यादा क्षेत्रफल में बने पक्के मकान के स्वामी और स्थानीय नगरीय निकाय को संपत्ति कर के भुगतान के लिए दायी परिवारों को राशन कार्ड के लिए अयोग्य घोषित किया गया है | राशन की कालाबाजारी के किस्से इस देश में नए नहीं हैं। यही नहीं, घोटाले के आकार और राशि में काफ़ी इजाफा भी हो चुका है। आज जब किसी राज्य से खाद्य सुरक्षा योजना में घपले की खबर आती हैं तो आश्चर्य नहीं, सिर्फ चिंता होती है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली गरीबों के लिए है। लेकिन गरीबों के नाम पर आवंटित अनाज कहीं और पहुंच जा रहा है | उसकी कालाबाज़ारी हो जाती है | अतः गरीब भूख से परेशान होते हैं और भ्रष्टाचारी मालामाल ! हमारे देश का सार्वजनिक वितरण प्रणाली का निगरानी तंत्र भी भ्रष्टाचार का शिकार है | अतः जरूरत इस बात की है कि भ्रष्टाचार को सिस्टम से पाक किया जाए | सीसीटीवी कैमरे का भय इसका इलाज नहीं , इसका इलाज उस आंतरिक विश्वास में निहित है कि सर्वशक्तिमान ईश्वर हम सबके कर्मों को हर पल देख रहा है | वही नियंता और कार्य साधक है | – Dr RP Srivastava

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