अब सट्टेबाज़ी और मैच फिक्सिंग को भी कानूनी बनाने की साज़िश तेज़ हो गई है | जबकि इन्हें लेकर क्रिकेट की दुनिया बंट गई है | देश के लॉ कमीशन ने इस बाबत एक प्रस्ताव लाकर खेल प्रेमियों और देश की अर्थव्यवस्था के जानकारों को चौंका दिया है | लॉ कमीशन यह चाहता है कि सट्टेबाज़ी और मैच फिक्सिंग को क़ानूनी बना दिया जाए | ये दोनों काले धन के बड़े केन्द्रों में शामिल हैं | लेकिन काले धन पर रोक सरकार के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है | लॉ कमीशन यह मान बैठा है कि इन्हें रोका नहीं जा सकता , इसलिए इन्हें क़ानूनी बना दिया जाए | दूसरी ओर दो बड़े क्रिकेटरों की परस्पर विरोधी राय पाई जाती है |
सट्टेबाज़ी और मैच फिक्सिंग के कई आरोपों से गुज़र चुके भारतीय क्रिकेट में सट्टेबाज़ी को ही कानूनी बना देने के सुझाव पर सबसे पहले भड़के भाजपा सांसद और पूर्व टेस्ट क्रिकेटर कीर्ति आज़ाद का कहना है , “यह काले धन को सफेद करने का ज़रिया बन जाएगा | कार्रवाई करनी है तो अवैध सट्टेबाज़ों के खिलाफ कीजिए | हैंसी क्रोन्ये केस में बड़े सटोरियों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गयी ?” भारतीय टीम में कीर्ति आज़ाद के साथ खेल चुके हरफनमौला खिलाड़ी मदन लाल ने कहा – “लॉ कमीशन ने सही सिफारिश की है | सट्टेबाज़ी और जुए पर क़ाबू पाना संभव नहीं है इसलिए इन्हें वैधता देने के लिए कानून बनना चाहिए| इससे होने वाली कमाई का इस्तेमाल गरीब-ज़रूरतमंदों के भलाई के लिए किया जाना चाहिए |” लॉ कमीशन ने मोदी सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि खेलों में सट्टे और जुए की वजह से बड़े स्तर पर काला धन पैदा हो रहा है , जिसे रोकना संभव नहीं है | इसलिए अच्छा होगा कि कानून बनाकर इसे नियमित किया जाए | वैध सट्टे और जुए के लिए आधार और पैन कार्ड अनिवार्य किया जाना चाहिए और इससे इसमें आने वाला पैसा सरकार की निगरानी में रहेगा | कानून मंत्रालय रिपोर्ट की समीक्षा करेगा, लेकिन कांग्रेस ने भी यह सिफारिश मानने से इन्कार कर दिया है | कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा, “हमारा मानना है कि सट्टेबाज़ी से भारतीय खेलों को नुक़सान पहुंचेगा | हर पान दुकान को जुए के अड्डे में बदल देना उचित नहीं होगा |” भारतीयों के काले धन का हाल यह है कि स्विस नेशनल बैंक ने अपनी सालाना रिपोर्ट में बताया है कि 2017 में उसके यहां जमा भारतीयों का पैसा 50 प्रतिशत बढ़ गया है | लेकिन सत्तापक्ष की ओर से यह कहा जा रहा है कि ज़रूरी नहीं कि स्विस बैंक में रखा हर पैसा काला ही हो लेकिन काला धन नहीं होगा | सरकार को बताना चाहिए कि यह किसका और कैसा पैसा है? काला धन नहीं है तो क्या क़ानूनी तरीके से भी भारतीय अमीर अपना पैसा अब भारतीय बैंकों में नहीं रख रहे हैं? क्या उनका भरोसा कमज़ोर हो रहा है? 2015 में सरकार ने लोकसभा में एक सख्त कानून पास किया था ,जिसके तहत बिना जानकारी के बाहर पैसा रखना मुश्किल बताया गया था. जुर्माना के साथ साथ 6 महीने से लेकर 7 साल के जेल की सज़ा का प्रावधान था | वित्त मंत्री को रिपोर्ट देना चाहिए कि इस कानून के बनने के बाद क्या प्रगति हुई या फिर इस कानून को कागज़ पर बोझ बढ़ाने के लिए बनाया गया था ?
इसीलिए कांग्रेस ने स्विस बैंकों में भारतीयों के पैसों में 50 फीसदी की बढ़ोतरी पर सरकार की ओर से आये बयानों को लेकर कटाक्ष करते हुए कहा कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले जो धन ”काला” हुआ करता था वो 49 महीनों में ”सफेद” हो गया है। पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट कर कहा, ”मई 2014 से पहले स्विस बैंकों में जमा धन ”काला” था । मोदी सरकार के 49 महीनों में यह ”सफेद” हो गया है।’ उन्होंने अरुण जेटली और पीयूष गोयल के बयानों का हवाला देते हुए कहा, ”दो वित्त मंत्री(?) स्विस बैंक खाताधारकों का बचाव करते हुए कहते हैं कि यह ”गैरकानूनी” नहीं हैं जबकि सीबीडीटी का कहना है कि सितंबर, 2019 से पहले स्विस बैंकों खातों के बारे में कोई सूचना उपलब्ध नहीं होगी।’ केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली के एक बयान का हवाला देते हुए सुरजेवाला ने सवाल किया, ”क्या यह ”फेयर एंड लवली” झूठ है?” दरअसल, जेटली ने कहा है कि स्विस बैंकों में जमा सारे पैसे गैरकानूनी नहीं हैं | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2013 में दिए गए एक भाषण का हवाला देते हुए, जिसमें उन्होंने घोषणा की थी कि हर बच्चा जानता था कि काला धन स्विस बैंक में रखा गया था | कांग्रेस ने सवाल किया कि इनमें से कौन सा बयान सही है: जो पीएम मोदी ने दिया था या जो मंत्रियों ने कहा | कांग्रेस ने दोनों केंद्रीय मंत्रियों द्वारा स्विटजरलैंड के साथ हुए नए समझौते के जिक्र पर भी निशाना साधा. इस समझौते के तहत 1 जनवरी 2018 से स्विस बैंकों में भारतीयों द्वारा किए गए लेन देन तक भारत सरकार की पहुंच होगी | उल्लेखनीय है कि स्विट्जरलैंड के केंद्रीय बैंक के ताजा आंकड़ों के अनुसार 2017 में भारतीयों द्वारा स्विस बैंक खातों में जमा किए गए पैसे में 50 फीसदी से अधिक बढ़कर 7000 करोड़ रुपये (1.01 अरब फ्रेंक) हो गया | वास्तव में काले धन की समस्या हमारे देश में कई दशकों से है | काले धन का अर्थव्यवस्था पर प्रत्यक्ष और प्रतिगामी प्रभाव पड़ता है | इसके बाज़ार में आने के कारण मुद्रा स्फीति की दर बढ़ जाती है और आम आदमी की गाढ़ी कमाई की क्रय – शक्ति घट जाती है | शेयर बाज़ार प्रभावित होता है और काले धन के मैल से चुनाव – व्यवस्था प्रदूषित हो जाती है | वर्तमान केंद्र सरकार ने जनता से यह कहकर कई काम किए कि अमुक काम से काला धन नष्ट हो जाएगा | मगर यह संभव नहीं हो सका | इसी सिलसिले में पांच सौ और हज़ार रुपये के नोट 9 नवंबर 2016 से बंद कर दिए थे और दावा कर दिया गया था कि यह काले धन के ख़िलाफ़ सर्जिकल स्ट्राइक अर्थात 9 / 11 है | तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री एवं वर्तमान उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने उस अवसर पर एक चर्चित ट्वीट किया था , जिसे याद करना समीचीन होगा | इसमें उन्होंने कहा था कि ‘ भ्रष्टाचार और काले धन पर श्री नरेंद्र मोदी जी की सर्जिकल स्ट्राइक | भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ भारत की लड़ाई में साथ दें | ‘ पूर्व तैयारी और प्रबंध के पूरी जनता से बड़े नोटों को छीन लेना एवं उन्हें परेशानियों में डाल देना कतई सराहनीय नहीं था और न आज है | यह काम जनता को कम ‘आहत ‘ करके चरणबद्ध भी हो सकता था | सरकार को शायद यह वह्म और गुमान था कि इस क़दम से काला धन बाहर आकर ही रहेगा और भ्रष्टाचार का अंत हो जाएगा | डॉ . मनमोहन सिंह ने भी प्रधानमंत्री की हैसियत से 2005 से पूर्व के पांच सौ के नोटों को बंद किया था , लेकिन उनका यह काम चरणबद्ध था | यह प्रयोग एक नहीं दो बार हो चुका है। 16 जनवरी 1978 को मोरारजी देसाई सरकार ने 500, 1000, पांच हजार और 10 हजार के नोटों को बंद करने का काम किया था। लेकिन उसका क्या नतीजा निकला? क्या उससे भ्रष्टाचार रुक गया या फिर कालाधन खत्म हो गया ? मोदी सरकार ने विदेश से काला धन वापस लाने की बात बड़े ज़ोरदार ढंग से की थी , लेकिन कुछ हो नहीं सका | काला धन बढ़ता चला गया | सरकार की इन्कम डिस्क्लोज़र स्कीम भी बुरी तरह फ्लाप हो गई | केंद्र सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था को मज़बूत बनाने के लिए काले धन पर लगाम कसने के अपने वादे के तहत विदेशी खातों की जानकारी लेने के साथ ही देश के लोगों को अपनी अघोषित आय का ब्योरा देने का जो वक्त दिया था , उसका भी कोई उल्लेखनीय लाभ नहीं मिल पाया था | 90 लाख बैंक लेन-देन (ट्रांजैक्शन) पैन नंबर के बगैर हुए, जिनमें 14 लाख बड़े (हाई वैल्यू) ट्रांजैक्शन हैं और सात लाख बड़े ट्रांजैक्शन ‘हाई-रिस्क’ वाले हैं | इन्हीं सात लाख ट्रांजैक्शन के सिलसिले में नोटिसें जारी हुई थीं, जो लौट कर वापस आ गईं | विदेशी खाताधारकों की पक्की जानकारी होने के वावजूद उनके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं हुई ! इस सब गंभीर मामलों पर गहरी ख़ामोशी है ! एक तरफ़ जहाँ काले धन के ख़िलाफ़ सरकार में दृढ इच्छा शक्ति की ज़रूरत है , वहीं दूसरी तरफ़ ज़रूरत है उस मानसिकता को बदलने की जो अवैधानिक रूप से काला धन बनाने और संचित करने को प्रेरित करती है और देश व समाज के लिए चुनौती बन जाती है | – Dr RP Srivastava , Editor – in- Chief, ” Bharatiya Sanvad ”