” नीरज बख़्शी की बतकहियाँ ” पढ़कर भाई नीरज जी की याद बड़ी शिद्द्त के साथ आई | उनका पत्रकारिता से लगाव और जुड़ाव भी था | कवि थे ही | जब मैं तुलसीपुर होकर अपने गांव मैनडीह जाता , तो तुलसीपुर में उनसे अक्सर व बेशतर ही मुलाक़ात हो जाया करती थी | वे उम्र में मुझसे अवश्य ही बड़े थे , लेकिन मेरी अपनी शुरू से यह परेशानी रही है कि मेरी हमउम्रों से दोस्ती या संबंध कभी देरपा नहीं रहा | यूं कहें तो अधिक उपयुक्त और सत्य होगा कि हमउम्री की मैत्री मुझे भाती नहीं थी , इसलिए अमलन भी मेरा ऐसा कोई बेहतर संबंध नहीं पाया जाता था |
जब भाई नीरज जी मिलते, तो पहले मेरी पढ़ाई – लिखाई के बारे में न पूछकर पत्रकारिता और साहित्य से जुड़े कर्म के बारे में पूछते | फ़ालतू बातों से परहेज़ करते | मेरा स्वभाव उनसे मेल खाता था | मैं ” नवजीवन ” और ” नवभारत टाइम्स ” में बलरामपुर की ख़बरें भेजता था | इनमें तुलसीपुर के भी समाचार होते थे | जहाँ तक मुझे याद पड़ता है , उस समय केवल ” जनमोर्चा ” ने तुलसीपुर में अपना संवाददाता ओम प्रकाश गुप्त को बना रखा था | एक बार नीरज जी के साथ तुलसीपुर से हर्रैया जानेवाली सड़क के चौराहे पर ओम प्रकाश गुप्त जी भी मुझे मिले | वे भी पहले से ही मुझसे परिचित थे | नीरज जी मुझे देखते ही बोल पड़े, रामपाल जी ! इधर आ जाइए | कैसे हैं आप ? मैंने कहा कि पत्रकारिता में पढ़ाई करने का विचार है | यदि कॉम्पिटीशन में आ गया , तो आगे पढ़ने के लिए चला जाऊंगा |
उन्होंने कहा कि यह अवसर मिले तो छोड़ना नहीं चाहिए | फिर चायपान के दरमियान उन्होंने अपनी कुछ रचनाएं सुनाईं , जिनमें एक कविता भी थी | समीक्ष्य पुस्तक ” नीरज बख़्शी की बतकहियाँ ” नीरज जी के व्यक्तित्व और कृतित्व को सांगोपांग जानने में किसी हद तक बहुत लाभकारी है | इससे मुझे उन बातों की भी जानकारी मिली , जिनसे मैं अनभिज्ञ था | वैसे 112 पृष्ठों की यह पुस्तक उनके बहुआयामी जीवंत व्यक्तित्व को पूर्णतः बयान करने में क़ासिर है, फिर भी जो बातें आई हैं , वे नीरज जी को समझने में काफ़ी मुआविन और मददगार हैं |
नीरज जी का व्यक्तित्व और कृतित्व ऐसा नहीं है कि दुनिया उन्हें फ़रामोश कर दे , लेकिन यह भी सच है कि इसे पुस्तकाकार हो जाने से सर्वसुलभता बढ़ गई है | इसके लिए उनके अनुज पवन बख़्शी जी को ख़ासकर बहुत – बहुत मुबारकबाद ! इस पुस्तक का संपादन पवन जी साथ लक्ष्मी नारायण अवस्थी ने भी किया है | अवस्थी जी के पास नीरज जी बहुत – सी रचनाएं थी , जिनको इस पुस्तक में शामिल किया गया है | पवन जी पुस्तक की आरंभिका ” पुस्तक सृजन की प्रेरणा ” में लिखते हैं –
” स्वर्गीय नीरज बख़्शी मेरे सगे बड़े भाई थे | बल्कि सही शब्दों में कहूं , तो वह मेरे भाई होने के अतिरिक्त मेरे लेखन गुरु भी थे | उनका जन्म 27 अगस्त 1949 को हुआ था | उन्होंने अपने जीवन के कुछ वर्ष भारतीय सेना की सेवा में भी दिए थे | स्वतंत्र विचारधारा के व्यक्ति के लिए किसी पक्षी को क़ैद में रखना उसकी हत्या करने समान होता है | कुछ ऐसा ही नीरज भैया के साथ था | बंधन , वह भी सेना के अनुशासन का , उन्हें रास न आया और उन्होंने समय से पहले सेना से अवकाश ले लिया | ” उल्लेखनीय है कि नीरज बख़्शी जी का जन्म तुलसीपुर [ बलरामपुर ] में हुआ था और यायावरी के बाद पुनः तुलसीपुर को ही उन्होंने अपनी कर्मस्थली बनाई |
लक्ष्मी नारायण अवस्थी लिखते हैं – ” बख़्शी जी को अंतर्दृष्टि एवं दिव्य दृष्टि मिली थी | जो बात करते थे बिलकुल सटीक और सपाट | “
डॉ. प्रकाश चंद्र गिरि के अनुसार , ” उन दिनों नीरज भाई हम सबके इन्साइक्लोपीडिया हुआ करते थे …… वे अपनी निजता का रहस्य क़ायम रखनेवाले कुछ अर्थों में अबूझ आदमी थे | लाख अच्छाइयों के बावजूद अपने बारे में बोलते रहने की क्षुद्रता से वे आजीवन ऊपर रहे | ज़्यादा कुरेदने पर एक शेअर सुनाकर वे सबको खामोश कर देते थे –
” हरेक बात हरेक सानिहा न पूछ ऐ दोस्त ,
नहीं तो तुझसे भी मैं कुछ न कुछ छुपा लूंगा | “
डॉ. अनिल गौड़ ने इस तरह फ़रमाया , ” नीरज बख़्शी का अंदाज़े बयान अलग था | उनका व्यक्तित्व निराला था | आवारा , लापरवाह , बौद्धिक , विद्रोही , मस्त , ज़िद्दी , आत्म संतुष्ट आदि शब्दों से उन्हें थोड़ा बहुत बांधा जा सकता है | “
डॉ. एम ग़ालिब स्वीकार करते हैं कि नीरज जी उन्हें बहुत कुछ सीखने का अवसर प्राप्त हुआ |
” ज़िंदगी दे दी जिगर ने आके पाए यार पर ,
उम्र भर की बेक़रारी को क़रार आ ही गया | “
इस स्मारिका में नीरज जी की कई रचनाओं का समावेश है | ” आदम से आज तक ” की ये पंक्तियां कवि के अंतर्मन के भावों को बख़ूबी उकेरते हैं –
” ख़ुल्द से निकाला जाना उसके लिए , जैसे
रोज़मर्रा की बात हो
हज़ारों सदियों के बाद
आज भी आदम
बड़ी बेशर्मी से ढूंढ रहा है
ख़ुल्द में वापस जाने का रास्ता
सैकड़ों हव्वायें ढूंढती है अपने लिए
रोज़ एक अंजीर का पत्ता | “
” तो मौत क्या है ? ” में कवि मौत पर सवाल खड़े करता है और उसे जीवनचर्या से जोड़कर परिप्रश्न करता है, उनके काव्य सौष्ठव की उत्तमता की ओर भी संकेत करता है –
” कुछ अधूरे सपने
कुछ अधूरी कविताएं
कुछ अनकही बातें
अनेक आधे – अधूरे दिन
क्या यही ज़िंदगी है ,
तो मौत क्या है ? “
पुस्तक में संकलित अन्य कविताएं भी स्तरीय हैं |
यह पुस्तक प्रभाश्री विश्वभारती प्रकाशन , प्रयागराज से छपी है | मुद्रण अति उत्तम है और फॉन्ट ख़ूबसूरत |
– Dr RP Srivastava, Editor – in Chief , www.bharatiyasanvad.com
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” नीरज बख़्शी की बतकहियाँ ” – व्यक्तित्व और कृतित्व का आईना
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” नीरज बख़्शी की बतकहियाँ ” पढ़कर भाई नीरज जी की याद बड़ी शिद्द्त के साथ आई | उनका पत्रकारिता से लगाव और जुड़ाव भी था | कवि थे ही | जब मैं तुलसीपुर होकर अपने गांव मैनडीह जाता , तो तुलसीपुर में उनसे अक्सर व बेशतर ही मुलाक़ात हो जाया करती थी | वे उम्र में मुझसे अवश्य ही बड़े थे , लेकिन मेरी अपनी शुरू से यह परेशानी रही है कि मेरी हमउम्रों से दोस्ती या संबंध कभी देरपा नहीं रहा | यूं कहें तो अधिक उपयुक्त और सत्य होगा कि हमउम्री की मैत्री मुझे भाती नहीं थी , इसलिए अमलन भी मेरा ऐसा कोई बेहतर संबंध नहीं पाया जाता था |
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