चाणक्य को कौन नहीं जानता? सही अर्थों में ये विश्व के पहले अर्थशास्त्री थे। उनकी पुस्तक ” अर्थशास्त्र ” में सिर्फ़ अर्थशास्त्र नहीं। राजकाज को सही ढंग से कैसे चलाया जाए, इसका पूरा ब्योरा है। इन्हीं के बताए रास्ते पर आज दुनिया के सभी देश चल रहे हैं। अंधाधुंध करारोपण इन्हीं की देन है। खुफिया और जासूसी विभाग इन्हीं का आविष्कार है। इन्होंने ही शराब बेचकर राजस्व अर्जित करना सिखाया।
इनका पूरा नाम विष्णुगुप्त था। इन्हें कौटिल्य भी कहा जाता है। ये कूटनीति के मर्मज्ञ थे। ज्ञान के सागर थे। इन्होंने अपनी राजनीतिक कुशलता से ही नंदवंश का अंत कर चंद्रगुप्त मौर्य को मगध के सिंहासन पर बैठाया था। चंद्रगुप्त मौर्य बड़े प्रतापवान क्षत्रिय सम्राट बने। 66 परस्पर विरोधी राज्य उनके अधीन आने को विवश हुए और राज्य का विस्तार हुआ। नंदवंश का उस समय का अंतिम सम्राट धनानंद बुरी तरह पराजित हुआ। उसने ही चाणक्य का अपमान किया था। चाणक्य ब्राह्मण थे और चंद्रगुप्त मौर्य क्षत्रिय। दोनों ने मिलकर सेना बनाई और चढ़ाई कर विजय हासिल की। चढ़ाई इस समय की गई, जब सिकंदर के भारत से जाने के बाद मगध साम्राज्य में अशांति और अव्यस्था फैल गई थी।
विष्णु गुप्त [ चाणक्य ] के आलोचक भी कम न थे। उन्हें काला – कलूटा, धूर्त , पाखंडी सभी कुछ कहा गया, इसको सर्वाधिक विस्तार मिला सेकुलर कहलाने वाले लोगों / इतिहासकारों द्वारा । इनका अवमान करनेवालों में पहला नाम है विशाखदत्त का, जिन्होंने कौटिल्य की रीति – नीति पर ” मुद्राराक्षस ” नामक नाटक लिखा। इसमें चाणक्य की आलोचना की गई। संस्कृत में लिखे गए इस नाटक में चाणक्य के दर्शन का कुछ अंश अवश्य आया है और चंद्रगुप्त मौर्य के शासन पर भी प्रकाश डाला गया है। इस नाटक का हिंदी अनुवाद भारतेंदु हरिश्चंद्र ने किया है। इस नाटक के आधार पर आलोचक कहते हैं कि चाणक्य धूर्त थे। कई लेखकों ने इस नाटक के आधार पर अनर्गल बात लिखी है। ज़ाहिर है, यहां लेखक कितनी बड़ी त्रुटि करते हैं कि एक नाटक को ऐतिहासिक मान लेते हैं ! सच तो यह है कि चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य के बारे में प्रमाणिक रूप से विवरण जानने के लिए चाणक्य की पुस्तक ” अर्थशास्त्र ” और यूनानी इतिहासकार/ पर्यटक मेगस्थनीज के वृत्तांत पढ़ना चाहिए। इन वृत्तांतों में चंद्रगुप्त मौर्य शासन की भरपूर प्रशंसा की गई है। मेगस्थनीज उनके दरबार में लंबे समय तक रहा। उसने लिखा है कि इस शासन के रूहे रवा थे चाणक्य। सुशासन के जनक थे चाणक्य। एक विवरण के अनुसार, वर्षा न होने के कारण पड़े अकाल के दौरान चाणक्य प्रतिदिन सैकड़ों साधुओं को रोज़ाना भोजन कराता था। उनके यहां पूजा आदि का आयोजन अक्सर हुआ करता था। उन पर कप्ताचार के जो व्यक्तिगत आरोप लगाए जाते हैं, वे सिरे से निराधार हैं। यह सच है कि वे राजनीति के दांव – पेंच से बखूबी वाकिफ थे और इसमें अमलन विजई भी वही होते थे। उनके विवेक का एक उदाहरण देखिए – नंद वंश के राजा का मंत्री राक्षस बड़ा स्वामिभक्त था। अपने स्वामी की मौत के बाद भी उसने साथियों की सहायता से चंद्रगुप्त से लड़ाई करने की कोशिश की,किंतु चाणक्य की चतुराई से उसे हारना पड़ा। चाणक्य उसकी स्वामिभक्ति पर प्रसन्न हुए और अपना मंत्रि पद छोड़कर राक्षस को चंद्रगुप्त का मंत्री बना दिया। यह बात चंद्रगुप्त को अच्छी न लगी। उसने राक्षस के प्रति शंका और अविश्वास प्रकट किया, किंतु चाणक्य ने समझाया कि जो व्यक्ति अपने स्वामी की मौत के बाद भी इतना भक्त होता है, वह कभी धोखा नहीं दे सकता। ऐसा ही हुआ। राक्षस ने चंद्रगुप्त के राज्य को मज़बूत बनाने का बड़ा उल्लेखनीय कार्य किया। वास्तव में चाणक्य एक जीवंत पुरुष, ऋषि और प्रतिबद्ध राष्ट्र निर्माता हैं … उन्हें शत – शत नमन
– Dr RP Srivastava