कोई कितना भी इन्कार करे, लेकिन इस सत्य पर परदा डालना असंभव है कि भारत कहानी का जन्मदाता है | इस देश से ही कहानियों का आग़ाज़ हुआ, जो आगे चलकर लिपिबद्ध हुआ | यह बात दीगर है कि इस तथ्य पर आधुनिक दौर में भी मतभेद है कि कहानी में समाज का चित्रण आवश्यक है | प्रगाढ़ रूप से समाज-संपृक्त कहानी है या नहीं | ज़ाहिर है, यह कोई कसौटी नहीं है |
जनप्रिय कथाकार अंकुश्री इसकी परवाह नहीं करते, अपितु समाज में व्याप्त भूत को भगाकर कहानी के कथ्य को उसके अंजाम तक सफलतापूर्वक पहुंचाते हैं | ” छलिया ” का ‘ भय का भूत ‘ ऐसी ही उद्देश्यपरक कहानी है | अन्य सभी 15 कहानियां अपनी थीम, शिल्प और प्रस्तुति के लिहाज़ से स्तरीय और श्रेष्ठ हैं |
‘ स्वच्छंदता ‘ वर्तमान राजनीति की बेराहरवी का खुला चित्रण है | नारी के दैहिक शोषण में नारी का कभी कितना हाथ होता है, कथाकार ने अपने शब्दों में बख़ूबी उकेरा है – ” शराब और मुर्ग़ा-मीट बाज़ार ख़रीद कर आना था, लेकिन प्रभारियों के घर से बाहर रहने के बदले व्यवस्था करनी थी | ” सो नीरा सिंह ने बंदोबस्त करवा दिया ! यह कहानी शब्द-चयन और संप्रेषणीयता की दृष्टि से भी मुझे कुछ अधिक भाई |
” छठिया ” की पहली कहानी ‘ छठिया ‘ का कहना ही क्या ! अपने कहन और गठन में यह उत्तम है | इसमें परिस्थितियों से समझौता करने की बाध्यता है | छठिया और चंदा के प्रेम विवाह को स्वीकार करने में गरीबना की भलाई का भी समावेश था | अन्यथा वह कर क्या सकता था | उसे मर्यादा के पार जाकर समझौता करना ही था | जब दोनों घर से भागने तीन वर्ष के बाद एक सुंदर-सलोने बेटे के साथ गांव आ जाएं | इस कथा का घटनाक्रम सहज और शैली काफ़ी दिलचस्प है, जो पढ़ने में इतनी रवानी एवं तल्लीनता पैदा कर देता है कि इसे एक ही सिटिंग में अंत तक पढ़ना ही पड़ता है |
‘ मेज़बानी ‘ बहुत लज़ीज़ और लाजवाब है | जो तंगदिल और तंगनज़र होते हैं, उनसे अधिक शील-स्वभाव की आशा नहीं की जा सकती | फिर यदि व्यक्ति हद दर्जा कृपण है, तो भलाई कोसों दूर हो जाती है | माधुरी का चरित्र ऐसा ही है | वह अपने मानवीय कर्तव्य को एकदम भूल गई है | लेकिन ‘ आत्मविश्वास ‘ का कथानक उमंग विपरीत परिस्थितियों में भी नारी-जीवन में संकल्प और उमंग का तानाबाना लेकर आती है, ग़ज़ब प्रस्तुति है |
अब आइए कुछ ख़ामियों की भी चर्चा करें, ताकि समीक्षा में समदृष्टि आ सके | प्रूफ की त्रुटियां अधिक होने से किसी भी पाठक का पढ़ने मज़ा किरकिरा हो सकता है | इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है | साथ ही पूरी पुस्तक का पॉइंट साइज़ बढ़ाना चाहिए, लेकिन आवरण मनमोहक और कथाओं के सार को समेटे हुए है | भाषा-शैली और परिमार्जित होती, तो और बेहतर था | स्वाभाविक रूप से इन पर कालावधि का इस प्रकार प्रभाव है कि जैसे-जैसे अनुभव बढ़ता गया, कथाएं और पुष्ट होती चली गईं | कथाकार को तहेदिल से मुबारकबाद, मंगलकामनाएं !
– Dr RP Srivastava
Editor-in-Chief, Bharatiya Sanvad
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