आधार कार्ड की अनिवार्यता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जारी सुनवाई के बीच केंद्र सरकार ने नये सिम के लिए अब आधार की अनिवार्यता हटा दी है | आधार मामले में विगत 26 अप्रैल को सुप्रीमकोर्ट द्वारा सरकार पर लगाई गई फटकार के बाद सरकार ने यह क़दम उठाया है | सुप्रीम कोर्ट ने दूरसंचार विभाग पूछा था कि सिम से जोड़ने का कोई आदेश जारी नहीं किया लेकिन आपने सर्कुलर में कहा गया कि यह कोर्ट का आदेश है? जस्टिस सीकरी और जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि कोर्ट ने यह आदेश जारी नहीं किया था , लेकिन आपने इसे मोबाइल उपयोगकर्ताओं के लिए आधार अनिवार्य बनाने के उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया। पीठ ने कहा, आप ( दूरसंचार विभाग ) सेवा प्राप्त करने वालों के लिए मोबाइल फोन से आधार को जोड़ने के लिए शर्त कैसे लगा सकते हैं? पीठ ने कहा कि लाइसेंस समझौता सरकार और सेवा प्रदाताओं के बीच है। यहाँ सहज तौर पर यह सवाल उठता है कि जब मोबाइल कंपनियां उपभोक्ताओं पर सुप्रीम कोर्ट के हवाले से दबाव डाल रही थीं और सिमों को आधार से जोड़ने को कह रही थीं और डेडलाइनें जारी कर रही थीं तथा कुछ अपुष्ट सूत्रों के अनुसार , कुछ सर्किलों में कुछ चुनिन्दा नामों पर जारी सिमों को ब्लाक कर रही थीं , तब सुप्रीम कोर्ट क्या कर रही थी ? अब जब सारे मोबाइल सरकार के अड़ियल रवैये के कारण सिम आधार से जबरन जोड़ लिए गए , तब उसे याद आई कि ऐसा कुछ उसने नहीं कहा था ! उसे इस हरकत के लिए मोबाइल कंपनियों पर जुर्माना लगाना चाहिए था , तो कहीं अच्छा होता | फिर यह एक सवाल और भी है क्या प्राइवेट कंपनियां आधार की मांग कर सकती हैं , जो बायोमैट्रिक है | यद्यपि कोर्ट ने अभी अपना अंतिम निर्णय नहीं सुनाया है , लेकिन लगता यही है कि वह नागरिक की निजता को ही तरजीह देगी | वैसे इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की पुरानी व्यवस्थाओं का निरादर ही होता आया है , जो भारतीय लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है | ज़ाहिर है , सिमों के सत्यापन में वे सारे पहचान-पत्र इस्तेमाल किए जा सकते थे, जिनकी बात सरकार ने अपने ताज़ा निर्देश में की है | पहले सरकार ने सिमों को ‘आधार’ से जोड़ने को अनिवार्य कर दिया और उसके ऐसा करते ही टेलीकाॅम आपरेटरों ने अपने उपभोक्ताओं पर ऐसे एस एम एस देने शुरू कर दिए थे कि वे अपने सिमों को तय डेडलाइन से पहले आधार से लिंक करवा लें अन्यथा …..|

अब सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद सरकार वैकल्पिक पहचान – पत्रों पर लौट आई है | लेकिन यह सिर्फ़ नए सिम के मामले में हुआ है | बैंक , रसोई गैस , आयकर जमा करने आदि में आधार की अनिवार्यता बरक़रार है | आधार को मज़बूत करने के लिए लाए गए वित्त क़ानून की आड़ में यह सब किया जा रहा है , हालाँकि इस क़ानून को भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है | निजता के अधिकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है | उल्लेखनीय है कि कोर्ट अपने पूर्व निर्णय में निजता के अधिकार को मूल अधिकार मान चुकी है | अमेरिकी नागरिकों को निजता का अधिकार प्राप्त है , हालाँकि यह अधिकार उन्हें बहुत विलंब से मिला | अमेरिका में अदालतों ने इस अधिकार की रक्षा 19वीं सदी के अंत तक नहीं की क्योंकि कॉमन लॉ ने इसे मान्यता नहीं दी थी। इसे मान्यता तब मिली जब चार्ल्स वारेन तथा लूई ब्रैंडाइस ने हार्वाड लॉ रिव्यू (1890) में एक ऐतिहासिक लेख लिखा- ‘द राइट टू प्राइवेसी’। निजता के अधिकार से संबंधित सैकड़ों मामले अमेरिकी अदालतों के समक्ष आये | पहली बार इस मामले में न्यूयॉर्क ऐपेलेट कोर्ट ने रॉबर्सन बनाम रोचेस्टर फोल्डिंग बॉक्स कम्पनी (1902) में इस पर विचार किया और प्रतिवादी को इस अधिकार के उल्लंघन के लिए दोषी करार दिया। फिर ग्रिसवर्ल्ड मामले (1965) में जस्टिस डगलस ने कहा कि भले ही बिल ऑफ राइट्स में इस अधिकार का स्पष्ट उल्लेख नहीं है, यह अन्य अधिकारों में निहित है। अमेरिका में ‘ आधार ‘ नहीं पाया जाता | भारतीय सुप्रीमकोर्ट ने आर. बनाम गोविंद (1975) विवाद में अमेरिकी अदालत के स्टैंड का हवाला दिया था । यह सच है कि सार्वजनिक हित महत्वपूर्ण होते हैं , परन्तु ‘ आधार ‘ के मामले में पुख्ता तौर पर ‘ सार्वजनिक हित ‘ सामने नहीं आ सका है | आकड़ों आदि के दुरुपयोग का पुख्ता संशय अलग से बना हुआ है | ऐसे कई मामले सामने भी चुके हैं | – Dr RP Srivastava , Editor-in -Chief, Bharatiya Sanvad

 

 

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