माँ की महत्ता इतनी बड़ी है कि उसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता | वह सृष्टिदायिनी है | वही पहली बार हमारे स्कूल की शुरुआत घर में ही करती है | हमारे जीवन की सबसे पहली और प्यारी शिक्षक होती है। वह हमें जीवन का सच्चा दर्शन और व्यवहार करने का तरीका सिखाती है। इस दुनिया में हमारे जीवन के शुरु होते ही वह हमें प्यार करती है और हमारा ध्यान देती है , अर्थात उसकी कोख में आने से उसके जीवन तक। बहुत दुख और पीड़ा सहकर वह हमें जन्म देती है लेकिन इसके बदले में वह हमेशा हमें प्यार देती है। इस दुनिया में कोई भी ऐसा प्यार नहीं है जो बहुत मजबूत, हमेशा के लिये निस्वार्थ हो, शुद्ध और समर्पित हो। वह हमारे जीवन में अंधकार दूर करके रोशनी भरती है। दरहकीकत उसकी महत्ता के आगे सारे जग की सर्वसंपन्न, सर्वमांगल्य, सारी शुचिता फीकी पड़ जाती है | वेद के अनुसार प्रथम नमस्कार माँ को करना चाहिए। सारे संसार का प्रेम माँ रूपी शब्द में व्यक्त कर सकते हैं। जन्मजात दृष्टिहीन संतान को भी माँ उतनी ही ममता से बड़ा करती है। दृष्टिहीन संतान अपनी दृष्टिहीनता से ज्यादा इस बात पर अपनी दुर्दशा व्यक्त करता है कि उसका लालन-पालन करने वाली माँ कैसी है, वह देख नहीं सकता, व्यक्त कर नहीं सकता। वेद में माँ को ‘ वीर प्रसविनी ‘ कहा गया है | वेद की ही शिक्षा है कि दूसरा नमस्कार पिता को करना चाहिए | मनु स्मृति [ 3 – 56 ] के इस बहु उल्लेखित श्लोकांश में है – ” यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता ” अर्थात जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है , वहां देवता रमण करते हैं ” | इस्लाम में एक हदीस में माँ के कदमों तले जन्नत बताया गया है | हजरत मुहम्मद साहब ने एक हदीस में कहा -‘यदि तुम्हारे माता और पिता तुम्हें एक साथ पुकारें तो पहले मां की पुकार का जवाब दो।’
एक बार एक व्यक्ति ने हजरत मुहम्मद साहब से पूछा’हे ईशदूत, मुझ पर सबसे ज्यादा अधिकार किस का है?’उन्होंने जवाब दिया ‘तुम्हारी माँ का’, ‘फिर किसका?’ उत्तर मिला ‘तुम्हारी माँ का’,’फिर किस का?’ फिर उत्तर मिला ‘तुम्हारी माँ का’ तब उस व्यक्ति ने चौथी बार फिर पूछा ‘फिर किस का?’ उत्तर मिला ‘तुम्हारे पिता का।’
सच है –
माँ बनके ममता का सागर लुटाती हो,
बहन हो हक और स्नेह जताती हो,
पत्नी बन जीवनभर साथ निभाती हो,
बन बेटी, खुशी से दिल भर जाती हो,
तुम में अनंत रूप, असंख्य रंग हैं …
हर मोड़ पे साथ निभाती हो !
तुमसे है घर-द्वार, तुमसे संसार है,
सृष्टि भी बिना तुम्हारे लाचार है,
गुस्सा है तुम से और तुम से ही प्यार है,
हो साथ तुम तो क्या जीत क्या हार है,
बिना तुम्हारे न रहेगी ये दुनिया …
तुम्हारे ही कंधों पर सृष्टि का भार है !
लेकिन यह तो हुआ एक पक्ष …. व्यावहारिक पक्ष बड़ा ही चिंताजनक , दुखद और क्षोभकारी है ! आजकल इस महान हस्ती का जितना अनादर , तिरस्कार और दुत्कार का इसे सामना करना पड़ रहा है , शायद किसी और को नहीं . आज के कुपूत उसे बोझ समझते हैं और उसके आशीर्वाद के अमृत का पान न करके ज़रा – ज़रा सी बात पर वृद्धाश्रम का रास्ता दिखा देते हैं या उसकी हर सुख – सुविधा की उपेक्षा करने से नहीं चूकते …. आख़िर यह स्थिति कब तक ……??? – Dr RP Srivastava