देश के शुभचिंतकों , हितैषियों और विवेकशील लोगों को इस बात का शिद्दत से अहसास है कि हमारा देश इस समय सांप्रदायिकता की आग में तेज़ी से जलने लगा है | उन्हें इस बात की काफ़ी चिंता भी है कि अगर इस नकारात्मक प्रवृत्ति पर फ़ौरन रोक नहीं लगाई गयी , तो स्थिति काफ़ी गंभीर हो सकती है | सही सूरतेहाल यह है कि आज हमारा प्यारा देश चौतरफ़ा समस्याओं से घिरा हुआ है | ग़रीबी , बेरोज़गारी , महंगाई, भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं ने अलग से आम आदमी की मुश्किलें बहुत बढ़ा दी हैं | यह भी सच है कि इन समस्याओं में अम्न , शांति और मानवता को नुक़सान पहुँचाने की समस्या सर्व प्रमुख है | इस बार धार्मिक त्योहारों पर हिंसा की जो घटनाएं घटी हैं , वे बेहद परेशानकुन और तशवीशनाक हैं |
देश की एक बड़ी शक्ति इसका सुदृढ़ सामाजिक ढांचा है | इतने बड़े देश में इतने भिन्न – भिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक समूहों की मौजूदगी और उनके बीच सदियों से सामाजिक स्तर पर सद्भाव की ऐसी मिसाल दुनिया में और कहीं नहीं मिलती | इसने पूरी दुनिया में हमारे देश की इज़्ज़त और शक्ति बढाई है | आज़ादी के बाद देश का जो संविधान बना , उसने भी धार्मिक स्वतंत्रता और विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच शांति और भाईचारे के लिए सुदृढ़ आधार प्रदान किया | वर्तमान में इस सुदृढ़ ढांचे को सख़्त चुनौतियों का सामना है | सांप्रदायिक परिस्थिति तेज़ी से बिगड़ती जा रही है | जो सत्ता से बाहर हो गए हैं , वे इसे फैनिंग कर रहे हैं | सांप्रदायिक ताक़तों ने अब यह बात अच्छी तरह समझ ली है कि उनको राजनैतिक लाभ मिलने का दारोमदार अति सांप्रदायिक विभाजन पर है | यह विभाजन जितना अधिक होगा , उनके लिए सफलता उतनी ही आसान होगी | इसलिए ऐसा महसूस होता है कि वे पूरे देश को विशेषकर सांप्रदायिक तौर पर संवेदनशील राज्यों को स्थायी रूप से साम्प्रदायिक तनाव की स्थिति में रखना चाहते हैं | बड़े सांप्रदायिक दंगे के नतीजे में विश्व में बड़ी बदनामी होती है और अंतर्राष्ट्रीय विरोध का ख़तरा बना रहता है, इसलिए अब नया रुझान छोटे – छोटे लेकिन अत्यंत भयावह घटनाओं की स्थाई निरन्तरता का है |
देखा गया है कि चुनाव के निकट समय में इन घटनाओं की संख्या अचानक बढ़ जाती है ! इन बर्बर घटनाओं की कई मिसालें हाल के दिनों में सामने आई हैं , जो मीडिया में चर्चा का विषय बनीं | इनके अतिरिक्त गाँवों में , सड़कों पर , बसों और ट्रेनों में, यहाँ तक कि दफ़्तरों और कार्य स्थलों पर भी सांप्रदायिक आधारों पर टिप्पणियाँ , प्रताड़ना और हिंसा की घटनाओं की बहुतायत हो गई है | इनसे न केवल देश के बहुलतावादी और धर्मनिरपेक्ष ढांचे को नुक़सान पहुंचाएगा , बल्कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की देश व समाज के विकास योजना में भी बाधा उत्पन्न करेगा | यह सही है कि क़ानून और व्यवस्था की जि़म्मेदारी राज्य सरकार की है, लेकिन अगर राज्य सरकार क़ानून और व्यवस्था को क़ायम रखने में असफल रहती है और घृणास्पद आंदोलन एक बड़ा सांप्रदायिक तनाव पैदा करता है तो केंद्र को चुप नहीं बैठना चाहिए। यह केंद्र एवं राज्य दोनों सरकारों का दायित्व ही नहीं ,बल्कि उनकी अनिवार्यता है कि संविधान प्रदत्त देश के सभी नागरिकों, समूहों और समुदायों के अधिकारों, सम्मान और सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए राज धर्म का पालन करें। यह भी जरूरी है कि समाज में सांप्रदायिक सौहार्द पैदा करने के लिए सभी समुदायों के प्रभावशाली लोगों को आगे आना चाहिए | बुद्धिजीवी , सामाजिक लीडर , धार्मिक रहनुमा , विद्यार्थियों , नवयुवकों और महिलाओं के रहनुमा , पत्रकार , वकील – सभी को अग्रसर किया जाए | सांप्रदायिक सद्भाव , बेहतर पारस्परिक विचार – विनिमय और आपसी विश्वास के वातावरण को बहाल करने के लिए काम किया जाए | मीडिया और सोशल मीडिया में भी मानव – अंतरात्मा को जाग्रत किया जाए | विचार , दृष्टिकोण और धार्मिक मतभेदों पर खुले वातावरण में गंभीर वार्तालाप हो एवं इस सिलसिले में कोई ज़ोर – ज़बरदस्ती न हो |पक्षपात , संकीर्णता और धर्म के नाम पर आक्रामकता का विरोध हो |