राष्ट्रभाषा हिंदी का रह – रहकर पीड़ा की तरह विरोध बेहद चिंतनीय और निंदनीय है | हिंदी को रोमन लिपि में लिखना अनुचित है ? वास्तव में हिंदी भाषा और इसकी देवनागरी लिपि का कोई जवाब नहीं ! ऐसी निहायत उम्दा लिपि और भाषा दूसरी नहीं , जो पूरे भारत की भाषा बन सके , ऐसी भाषा जिसमें संपर्क साधने की क्षमता हो | देवनागरी लिपि के अतिरिक्त अन्य कोई लिपि भावों को सोच्चारण व्यक्त करने में अक्षम है , इसलिए भी देवनागरी लिपि की अनिवार्य आवश्यकता है | विश्व की लगभग चार हज़ार भाषाओँ में हिंदी शब्द – संपदा की दृष्टि से सबसे समृद्ध है | यह सभी भाषा – शब्दों को आत्मसात करती रही है | शब्दों में उसके लिए कोई छुआछूत नहीं है |
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल ।बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल ।।विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार।सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार ।।
अपनी भाषा से बढ़कर अपनत्व एवं संतोष की प्राप्ति नहीं हो सकती |
आचार्य पं.रामचंद्र शुक्ल के शब्दों में -अपनी भाषा से बढ़कर अपना कहाँ ?जीना जिसके बिना न जीना है यहाँ .उस भाषा में जो है इस स्थान की ,उस हिंदी में जो है हिंदुस्तान की .उसमें जो कुछ रहेगा वही हमारे काम का ,उससे ही होगा हमें गौरव अपने नाम का |
– Dr RP Srivastava, Edotor-in-Chief, www.bharatiyasanvad.com