आस्था प्रकाशन, जालंधर से प्रकाशित अंग्रेज़ी पुस्तक ” Shri Vasuki Nag and Nag Cultire ” पिछले दिनों हस्तगत हुई | 112 पृष्ठीय इस पुस्तक के लेखक हैं – धर्मकांत डोगरा और चंद्रकांत शर्मा | इसमें आठ अध्याय हैं, जो सभी प्रासंगिक और विषयानुकूल हैं | पहले में परिचय है, जिसमें ‘ हिंदू ‘ पर भी चर्चा की गई है | हिंदू को फ़ारसी का शब्द बताकर ‘ स ‘ को ‘ ह ‘ बोले जाने के पुराने झूठ को यहां दुहराया गया है | फ़ारसी का ऐसा कुछ क़वायद नहीं है और न यह स्थापना फ़ारसी के अनुकूल है | शिरोमणि संत श्री रामभद्राचार्य ने ‘ हिंदू ‘ शब्द को यजुर्वेद में मौजूद बताया है | यह शब्द संस्कृत ग्रंथ ‘ मेरुतंत्रम ‘ में मिलता ही है | लेखक द्वय की यह बात बिलकुल सच है कि सनातन धर्म एक शाश्वत एवं सत्यपरायण धर्म है, वहीं यह बात कि हिन्दुइज़्म [ हिंदुत्व ] सभी धर्मों की जननी है, वर्तमान परिप्रेक्ष्य में कुछ अटपटी लगती है | हालांकि यह बात लेखक ने स्वामी विवेकानंद के 1892 के शिकागो संबोधन के हवाले से सही है | स्पष्ट रहे कि हिंदू धर्म और हिंदुत्व में फ़र्क़ पाया जाता है | जब स्वामी विवेकानंद ने उक्त मंतव्य प्रकट किया था, उस समय हिंदुत्व इतना अधिक बहुअर्थी नहीं था | उन्होंने इसका प्रयोग सनातन धर्म के अर्थ में किया था, जो उचित ही है | इस दृष्टि से लेखक की बात नितांत सच है | आज हिंदुत्व की परिभाषा में इतर बातों का भी समावेश है, जिससे भ्रम का पनपना स्वाभाविक है | 
पौराणिक संदर्भों में नागराज वासुकि का विशद विवेचन बड़ा मालूमाती है | लेखक बौद्ध धर्म और उसके संघों तक इसे विस्तार देकर विषय की गहराई में उतरे हैं , जो अति प्रशंसनीय है | 
 आयरिश लेखक सैमुअल फर्ग्यूसन के अनुसार, नाग लोग ईरान से आए और अफ़ग़ानिस्तान के काबुल में स्थापित हो गए। वह लिखता है’-“ जोहाक की जाति का एक ‘ अवशेष ‘ काबुल में बच गया दिखाई पड़ता है यह हमारे लिए ख़ास तौर से बहुत मनोरंजक बात होगी, अगर हम उसके बारे में कुछ अधिक जानकारी प्राप्त करें क्योंकि यह भारत और पर्शिया [ फ़ारस क्षेत्र ] में नागपूजा को जोड़ने वाली कड़ी दिखाई पड़ती है।” काबुल का प्रमुख नाग जोहाक का संबंधी था | ईरान के आदि पुरुष नागपूजक थे | 
हिंदू पौराणिक ग्रंथ वासुकि को आठ नागों में दूसरा बताते हैं, जो कद्रू के गर्भ से उत्पन्न कश्यप का पुत्र था | इसकी बहन का नाम जरत्कारु था, जिसका विवाह जरत्कारु ऋषि से हुआ था | इसी के गर्भ से आस्तीक का जन्म हुआ था, जिसने सर्पयज्ञ के समय जनमेजय से कहकर सर्पकुल की रक्षा की थी | समुद्र-मंथन  समय वासुकि मंथन-रज्जु [ रस्सी ] बने थे [ शुकोक्ति-सुधासागर ] | 
भागवत पुराण [ 1-11-11, 2-6-13, 3-20-48, 11-16-10, 24-13 ] और मत्स्य पुराण [ 261/ 47-50 ] में नागगण अर्थात, नागवंश का वर्णन इस प्रकार है –
दक्ष की बेटी कद्रू से उत्पन्न कश्यप ऋषि की संतान का शरीर कमर से ऊपर का भाग इंसान सरीखा है और नीचे का सर्पाकार | इनका वासस्थान पाताल बताया गया है और उनकी राजधानी का उल्लेख भोगवती के रूप में है | इनमें सबसे पहले नाग का नाम अनंत आया है |  
वाराह पुराण में आई कथा के अनुसार, सृष्टि के प्रारंभ में कश्यप पैदा हुए, जिनका विवाह दक्ष प्रजापति की 13 पुत्रियों के साथ हुआ | उनमें से अन्यतम कद्रू से अनंत, वासुकि, कंवल,पद्म, महापद्म, कर्कोटक, शंख, कुलिक और अपराजित नामक पुत्र हुए | ये सभी नाग कहलाए | इनके लिए ब्रह्मा ने तीन लोक बताए हैं – पाताल, वितल और सुतल | पुराणों में अनेक नागों का वर्णन आया है | इनमें से आठ नाग ही मशहूर हैं | इनका कुल अष्टकुल कहलाता है |    
मत्स्य पुराण [ 154-462 ] में वर्णित कथानुसार, माहिष्मती में कर्कोटक की सभा प्रसिद्ध है | पृथ्वीरूपी गौ को दुहने के समय तक्षक बछड़ा बना था | इन लोगों ने शिव-उमा का विवाहोत्सव मनाया था | पुराणों में आया है कि नागवंश के नौ राजाओं ने चंपावती [ पद्मावती ] से शासन किया था | सात ने मथुरा से ‘ दोआब ‘ पर 383 वर्षों तक राज किया | साकेत और मगध इनके अधीन थे | वास्तव में नाग  सभ्यता और संस्कृति महान थी | इसे हम महान आश्चर्य की संज्ञा से अभिहित कर सकते हैं | 
समीक्ष्य पुस्तक में यह सब विवरण नहीं मिलता | अलबत्ता अन्य पौराणिक उद्धरण आवश्यकतानुसार पाए जाते हैं |  
 नागराज वासुकि के क्षेत्र का विवरण है | भद्रवाह और इतर भद्रवाह पर तो  अध्याय ही हैं | पूरे देश के नाग मंदिरों और स्थलों का विवरण देने का सराहनीय प्रयास किया गया है | नाग पूजा और नाग साम्राज्यों का अच्छा उल्लेख है | कुछ स्थानों पर लगता है कि कुछ छूट गया हो | कुछ कमी लगती है | जैसे, पृष्ठ 80 पर काश्मीर संबंधी उल्लेख ‘ In Kashmir ‘ में किसी नाग राज परिवार का उल्लेख नहीं किया गया है | वहां लोहारा, गोनंदा, कर्कोटा और नागपाल नाग परिवारों ने शासन किया | इनमें कर्कोटा राजवंश [ 625-855 ई. ] सबसे अधिक महत्वपूर्ण है | भविष्य पुराण के अनुसार, इस राज परिवार का संबंध तक्षकों के साथ था | के. एस. सक्सेना की पुस्तक ‘ पॉलिटिकल हिस्ट्री ऑफ काश्मीर ‘ में है कि दुर्लभ वर्धन इस राजवंश का संस्थापक था [ पृ. 40-43 ] | समीक्ष्य पुस्तक में वाकाटक नागों पर कोई सामग्री नहीं मिली, जिनके बारे में नाग इतिहास पर शोध करनेवाले प्रसिद्ध लेखक के.पी. जायसवाल ने लिखा है कि वाकाटक राजकुल के नाम की उत्पत्ति झाँसी ज़िले के वागाट गांव से हुई, जो वागाटक या वाकाटक में आगे चलकर परिवर्तित हुई | इस सिलसिले में दूसरा मत यह है कई वाकाटक, टका नाग परिवार की एक शाखा थी |   
कुल मिलाकर पुस्तक पठनीय और संग्रहणीय है | इसकी प्रिंटिंग और काग़ज़ बेहतरीन है | लेखक द्वय को हार्दिक बधाई, शुभकामनाएं ! 
– Dr RP Srivastava
Editor-in-Chief, Bharatiya Sanvad

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