इस लोकतांत्रिक देश का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि यहाँ पर करीब पिछले पांच दशकों से राजनीति वसूलों सिद्धांतों विचारों नीतियों पर आधरित न होकर जाति धर्म सम्प्रदाय पर आधारित होती जा रही है जबकि राजनीति लोकहित में नेक नियती से लोक हिताय एवं लोक सुखाय होनी चाहिए।राजनीति धर्म सम्प्रदाय जाति वर्ग में तब होती है जबकि राजनैतिक दल नीति एवं सिद्धांत विहीन हो जाते हैं और मतदाताओं के मध्य अपनी बेहतरी साबित करने का कोई आधार नहीं बचता है। जाति, धर्म, सम्प्रदाय की राजनीति का ही प्रतिफल है कि आज धर्म जाति उपजातियां घर परिवार कौन कहे मां बाप बेटे में विभाजन होता जा रहा है जो राष्ट्र की एकता अखंडता के भविष्य के लिए उचित नहीं कहा जा सकता है। कहते हैं कि लोकतंत्र में राजनेता अथवा राजनैतिक दल की जब नियत अच्छी होती है तभी उसकी नीतियां अच्छी हो सकती है क्योंकि अच्छी नीति के लिए नियत का अच्छा होना जरुरी माना गया है।आज के बदलते राजनैतिक परिदृश्य में राजनीति के मायने बदलने लगे हैं और अक्सर लोग कहते रहते हैं कि हर जगह हर काम में राजनीति करना उचित नहीं है। आज के बदलते राजनैतिक परिदृश्य में जिस भी मामले में राजनीति घुस गई है उन मामलों का निपटारा नहीं हो पा रहा है और आजादी के बाद से ही उनकी आड़ में राजनैतिक शिकार किये जा रहे हैं। अयोध्या स्थित रामजन्मभूमि एवं बाबरी मस्जिद का विवाद आजादी के समय से शांतिपूर्वक चल रहा था और वादी प्रतिवादी दोनों एक रिक्शे पर बैठकर घर से मुकदमा लड़ने जाते एवं साथ साथ वापस लौटकर जीवन भर एक दूसरे के प्रति श्रद्धान्वत रहते थे। इस विवाद में अचानक गर्मी तब आई जबकि नब्बे के दशक में विश्वहिंदू परिषद की अगुवाई में रामजन्मभूमि में अनाधिकृत बंद ताले को खोलने की मांग को लेकर”आगे बढ़ो जोर से बोलो जन्मभूमि का ताला खोलो” का ऐतहासिक आंदोलन हुआ और अदालती आदेश पर बंद ताले को खोल दिया गया।इसके बाद तत्कालीन पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने मंदिर का शिलान्यास करवा दिया। इसके बाद बाबरी मस्जिद एवं रामजन्मभूमि का मामला राजनैतिक स्वरूप लेने लगा और नब्बे में हुये आंदोलन के दौरान गोली चलने से कुछ लोगों की जान भी जा चुकी है। इतना ही नहीं इसके बाद कल्याण सिंह की सरकार के दौरान बाबरी मस्जिद को जनसमूह द्वारा ढहाया भी जा चुका है और आजकल मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। उच्च न्यायालय प्रमाणिक आधारों पर अपना फैसला सुना चुकी है जिसके खिलाफ दोनों पक्ष सुप्रीम कोर्ट में अपील कर अपना अपना पक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं।इस मामले को जल्दी निपटाने के लिए पूर्व प्रधान न्यायाधीश की अगुवाई वाली खंडपीठ द्वारा जो तिथि निर्धारित की गई थी उस तिथि पर नये प्रधान न्यायाधीश सुनवाई शुरू करना तो दूर अभी यह नहीं तय कर पाये हैं कि पहले से बनी खंडपीठ सुनवाई करे या नयी पीठ का गठन किया जाय। इसके लिए दो महीने की लम्बी तारीख लगाकर इस महत्वपूर्ण मामले को टाल दिया है।सुप्रीम कोर्ट के टालू रवैये से लोगों को गहरा झटका लगा है क्योंकि हिन्दू मुस्लिम सभी इस मामले को लेकर हो रही राजनीति से ऊब गये हैं और इसका निपटारा चाहते हैं। राम मंदिर निर्माण की मांग की आड़ में सत्ता में आई भाजपा सरकार भी अपने चार साल के कार्यकाल में अपनी ही मांग को पूरा नहीं कर सकी है और अगर अदालत के सहारे रहा गया तो आगामी लोकसभा चुनाव के बाद ही इस मामले की सुनवाई शुरू हो सकेगी क्यों आगामी अप्रैल तक लोकसभा चुनाव हो सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट आगामी 23 जनवरी को पीठ के औचित्य पर विचार करके सुनवाई की तिथि जब तय करेगा तब तक चुनाव आ जायेंगे और जो मांग सुप्रीम कोर्ट में चुनाव बाद सुनवाई करने की हुयी थी वह भी पूरी हो जायेगी। सरकार भी सोचती है कि अदालत की आड़ एवं हमारी मंदिर बनाने की तथाकथित जिद्द या सकंल्प के सहारे आगामी लोकसभा चुनाव की वैतरणी पार हो जायेगी लेकिन आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर एक बार भीमंदिर मस्जिद का यह मामला अपनी ऊँचाइयों की बुलंदियों पर पहुंचने जा रहा है। अदालत के टालू रवैये के नाम पर भाजपा से जुड़े माने जाने वालेे तमाम धार्मिक एवं हिन्दू संगठनों ने सरकार को पिछले महीने ही अल्टीमेटम दे दिया है कि अध्यादेश लाकर मंदिर बनाओं वरना आगामी 25 को एक बार भी अयोध्या में नब्बे बानब्बे की तरह हिन्दू आस्था का जनसैलाब उमड़ेगा। भाजपा के तमाम नेता मंत्री मुख्यमंत्री सभी मंदिर बनाने के पक्षधर हैं सभी संत महात्मा एवं हिन्दू सगंठनों के साथ अल्पसंख्यक आयोग भी मंदिर बनाने की मांग कर रहा है।लगता है कि न अदालत इस अन्तर्राष्ट्रीय मामले को निपटाना चाहती है और न ही भाजपा सरकार इसके चक्कर में अपने बनाये जा रहे सेकुलर चेहरे को खराब करना चाहती है। फिलहाल एक बार फिर विश्वहिंदू परिषद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ जैसे सैकडों सगंठनों ने मंदिर निर्माण तत्काल शुरू करने के लिए सरकार पर जो दबाव बनाने के लिए अयोध्या कूच का ऐलान किया है उससे सरकार की बेचैनी बढ़ी है और इसके राजनैतिक परिणाम सामने आ सकते हैं।
– भोलानाथ मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार/समाजसेवी
रामसनेहीघाट, बाराबंकी, यूपी