मैंने गुरुजी को प्रणाम किया | गुरुजी कुशल – क्षेम पूछने लगे – ‘ भाई , बताओ तुम सकुशल हो ? आज समाचार – पत्रों में ‘ पराड़कर सन्देश ‘ के दफ़्तर पर हमले का दुखद समाचार पढ़ा | बहुत दुःख हुआ | मैं इसकी कड़ी निंदा करता हूँ | ‘ गुरुजी चिंतित दिखे मैंने उन्हें बताया कि मैं कुशल से हूँ | कल शाम जब यह घटना घटी , तो मैं कार्यालय में नहीं था | हाँ , दफ़्तरी घायल हुए हैं , जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है | ‘ रिक्शा रुका रहा | गुरुजी घटना का विवरण पूछते जा रहे थे | मैं थोड़ा आश्चर्यचकित था गुरुजी के अपनत्व को देखकर , क्योंकि वे इस प्रकार बात नहीं करते थे | बात ही बात में कहने लगे , ‘ अब तो ख़ाली होगे | ‘ आज ‘ में काम करना हो, तो कल इसी समय के आसपास कार्यालय में मेरे पास आ जाना।’ मैंने कहा , ‘जी गुरुजी।’ मुझे तो मन की मुराद मिल गई। वहां किसी की सुगमता नियुक्ति नहीं होती थी | दूसरे दिन सघन टेस्ट के बाद मुझे कार्य का अवसर मिल गया। मैं जनरल डेस्क पर विश्वनाथ सिंह जी ( दद्दू ) और हरिवंश तिवारी जी के मातहत काम करने लगा। कुछ ही महीने के अंतराल पर यादवेश जी ( प्रबंधक, कार्मिक ) ने मुझे बुलाया और कहा कि आपका काम हम सबको पसंद आ रहा है। आपकी सर्विस स्थाई करते हुए सब एडीटर के तौर पर आपको पटना भेजा जा रहा है। आपकी वहां अधिक आवश्यकता है। उन्होंने मुझे इस संदर्भ में एक लेटर भी दिया।
मैं पटना पहुंच गया। फ्रेजर रोड स्थित आज कार्यालय स्टेशन के निकट ही था। असीम भैया से भेंट की और उन्हें यादवेश जी का पत्र दिया। दिन के लगभग चार बजे थे। असीम भैया ने कहा कि आज विश्राम करो, कल से ड्यूटी पर आना ग्यारह बजे, लेकिन अगर चाहो तो अभी काम शुरू कर दो। मैंने कहा कि समय काटने के लिए भी व्यस्तता चाहिए, इसलिए भैया काम बताइए। असीम भैया ने अविनाश चंद्र जी , जो उस समय न्यूज एडीटर थे, से मुख़ातिब होकर कहा कि इन्हें काम दीजिए।अविनाश जी ने पी टी आई की तीन और यू एन आई की पांच खबरें जो अलग अलग कतरनों के साथ पिन थीं, यह कहते हुए मुझे थमा दीं कि इन आठों का अलग – अलग समाचार बना कर आज चले जाना। तेरह स्टॉफ की जनरल डेस्क पर ड्यूटी थी और लेकर चौदह हो गई। मैंने जल्द ही आठों ख़बरें बना दीं। मुश्किल से सवा घंटे लगे। इन्हें अविनाश जी को दिया। वे थोड़ा चकित होकर कहने लगे , बहुत जल्दी हो गया। मैंने ख़बरों के जो शीर्षक दिए थे,उनके आकार – प्रकार का भी उल्लेख किया था और प्वाइंट साइज़ का भी। अविनाश जी ने इन्हें जांचा। प्रसन्न हुए और मेरे द्वारा बनाई हुई उन ख़बरों को लेकर असीम भैया के पास गए। उनसे कहा,रामपाल जी तो कमाल के हैं । सभी ख़बरों को बनाकर बाक़ायदा एडिट कर दिया। हमें ऐसे ही स्टाफ की आवश्यकता थी। असीम भैया कुछ न बोले । वे उन ख़बरों का एक – एक कर अवलोकन करने लगे। कुछ देर तक देखने के बाद अविनाश जी से पूछा, आपने इनकी ख़बरों में कहीं करेक्शन नहीं लगाया ? आवश्यकता ही नहीं पड़ी। अविनाश जी ने जवाब दिया। इसी बीच प्यून राम करण, जिन्हें रामकरन कहा जाता था, आए और संपादक जी से कहने लगे कि दादा ( बेनी माधव चटर्जी, प्रबंधक ) ने कहा है कि राम पाल जी काम कर चुके हों , तो पास के विजय होटल में मैं उनके सामान रख आऊं, जहां उन्हें ठहरना है। असीम भैया ने मुझसे होटल जाने के लिए कहा। मैं चला गया, जहां खाने का प्रबंध भी प्रबंधन की ओर से था।
समय गुज़रा। दो सप्ताह बीत गए। मुझे शिफ्ट इंचार्ज बना दिया गया। सिटी और लेट सिटी एडीशन का प्रभारी …. मेरी जिम्मेदारियां बढ़ गईं। भैया का आदेश था कि प्रदेश सरकार के बारे में या उसके नेतृत्व के संबंध में टेलीप्रिंटर या ‘आज ‘ के ब्यूरोज से कोई खबर आए तो फोन पर कॉन्टैक्ट करना। ऐसा मैं करने लगा और संपादक जी के निर्देशानुसार इनकी ख़बरें लगाता। उस समय बिंदेश्वरी दुबे मुख्यमंत्री थे। एक रात उनके बारे में यह ख़बर आई कि कांग्रेस आलाकमान मुख्यमंत्री का बदल तलाश कर रहा है। मैंने भैया को बताया , तो उन्होंने निर्देशित किया कि इसे न देना। भैया कुछ समय तक मुख्यमंत्री दुबे के मीडिया सलाहकार भी थे। एक बार मैंने आरएसएस से जुड़ी एक ख़बर प्रकाशित कर दी, जो मुझे संपादक जी की सहमति के बिना नहीं देनी चाहिए थी। हुआ यह था कि भागलपुर से संघ के तीन सदस्य रात के लगभग दस बजे ‘आज’ कार्यालय आए और मुझे अपने कार्यक्रम की ख़बर दी, जिसे मैंने अंतिम पृष्ठ 16 पर लगा दी। वैसे बारह से एक बजे रात तक मैं ख़बरें लेता रहता था। क्राइम बीट के प्रभात रंजन तो अक्सर लेट ही ख़बरें फाइल करते थे। भाई , प्रभात जी, मेरी इस बात पर अन्यथा न लेना। ( प्रभात रंजन आज एक वरिष्ठ और स्थापित पत्रकार हैं, जो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी दखल बनाए हुए हैं )
दूसरे दिन जब मैं शाम को ड्यूटी पर पहुंचा, तो पता चला कि आरएसएस की ख़बर छपने से भैया नाराज़ हैं। जब मैने काम शुरू किया , तो थोड़ी देर के लिए असीम भैया आए। मेरी ओर देखकर मुंह फेर लिया। कुछ न बोले। चले गए। अभी दो दिन ही बीते थे कि भैया ने मुझे बुलाया। मैं थोड़ा सकपकाया। उनके पास गया, तो कहने लगे कि तुम अच्छा लिखते हो। मैं चाहता हूं कि प्रत्येक सप्ताह देश या विदेश की किसी घटना पर तुम्हारा नाम के साथ विश्लेषण छपे, वह भी पहले पेज की बॉटम स्टोरी बने या पेज तीन की टॉप स्टोरी। मैं प्रत्येक सप्ताह लिखने लगा। शुरू के तीन – चार बार छपने के पहले भैया जी दिखाता। फिर उन्होंने कह दिया कि सीधे फोरमैन उदय सिंह को कंपोज करने के लिए दे दिया करो। मेरा यह लेखन – क्रम काफ़ी समय तक जारी रहा, जब तक कि असीम भैया दिल्ली ‘आज ‘ के दिल्ली ऑफिस में राजनीतिक संपादक नहीं बना दिए गए और मैं दूसरी बड़ी ज़िम्मेदारी संभालने के लिए धनबाद [ ‘ आज ‘ ] नहीं चला गया |
मेरे एक विश्लेषण पर बड़ा विवाद हुआ। मैंने उसी समय सोवियत संघ के विघटन की बात लिख दी थी। इसके कारण भी गिनाए थे, जिस पर सोवियत संघ का उच्चायोग तिलमिला उठा। उसके अधिकारी कोलकाता से पटना पहुंचे और प्रेस कांफ्रेंस करके सफ़ाई दी। मुझ पर सी आई ए का एजेंट होने का आरोप मढ़ा। प्रेस कांफ्रेंस को कवर करने के लिए आज के स्टाफ वीरेंद्र को भैया ने भेजा था।
इस पूरी ख़बर को आज ने खंडन के तौर पर नहीं छापा। असीम भैया का साफ़ निर्देश था कि ‘ विश्लेषण का खंडन नहीं छपेगा। हां, सोवियत उच्चायोग का वर्जन ‘ एक अख़बार ‘ लिखकर छाप दो।’ उस समय पटना आज का सर्कुलेशन एक लाख बीस हज़ार के लगभग था।
असीम भैया को मुझ पर काफ़ी विश्वास था। मेरे लिखे विश्लेषण को महीने में एक या दो बार विशेष संपादकीय बनाकर प्रकाशित कर देते, जो आम तौर पर पहले पेज पर स्थान पाता। जब उनको लिखने का मन नहीं होता या अधिक व्यस्त होते, तो उदय सिंह को निर्देशित करते कि राम पाल का कोई आर्टिकल लगा दो। जब बेनजीर भुट्टो पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बनीं और देर शाम को इसकी घोषणा हुई, तो भैया ने मुझसे कहा कि ‘इस घटनाक्रम पर लिखो विशेष संपादकीय के रूप में।’ मैंने लिखा और पहले पेज पर छपा। ऐसे ही भैया मुझे वरिष्ठ जनों, मंत्रियों के इंटरव्यू के लिए भेजते। कभी – कभी बड़े लोगों से भी पेन स्लिप होना स्वाभाविक है। जब मैंने जमाअत इस्लामी हिंद के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अबुल लैस का इंटरव्यू लेकर रिपोर्ट फाइल की, तो भैया ने ग़लत सुर्ख़ी लगा दी। स्त्रीलिंग / पुल्लिंग का विभेद था। जब मैंने कहा की शुद्ध यह है, तो कहा,’ ठीक कर लो। मुझे उर्दू में महारत नहीं।’ यह इंटरव्यू पहले पेज पर आठों कालम में टॉप स्टोरी के तौर पर प्रकाशित हुआ। यह इंटरव्यू इसलिए अधिक चर्चित हुआ, क्योंकि इसमें जनसंख्या विस्तार को हतोत्साहित किया गया था। पूरी बातचीत का टेप हमारे पास मौजूद था। सवाल ऐसे कि मौलाना उलझ गए। मेरी इस्लामी मालूमात से दंग थे मौलाना !
भैया ने एक बार कैमूर के डाकुओं से इंटरव्यू के लिए भेजा, जहां मैंने दो दिन बिताए और पूरे एक पृष्ठ पर स्टोरी छपी। अक्सर यही होता था कि दिन में इंटरव्यू आदि का काम करता और रात को कार्यालय की नियमित ड्यूटी करता। ड्यूटी के अतिरिक्त जो भी काम करता, सभी का अलग से पेमेंट होता था, यहां तक कि विश्लेषण के भी।
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिन्हा का भी इंटरव्यू चर्चित हुआ। यह आज के सभी एडीशनों में छपा, क्योंकि उसे मैंने हरिवंश तिवारी जी के पास भेज दिया था। कलर फोटो की फिल्म भी भेजी, जो सिन्हा जी और उनकी पत्नी किशोरी सिन्हा की थी। यह इंटरव्यू उनके आवास पर लंच के समय लिया था। उस समय मुझे लेकर तीन लोग ही थे। बहुत विस्तार से बात हुई। मैंने ऑफ द रिकार्ड को भी छाप दिया, इसलिए बड़ा हंगामा मचा। यह इंटरव्यू साप्ताहिक परिशिष्ट में प्रकाशित हुआ, जो सभी संस्करणों तक रंगीन पेजों के साथ पहुंचा। इसके आते ही सत्येंद्र नारायण सिन्हा ‘ आज ‘ कार्यालय पहुंचे और भैया से खंडन प्रकाशित करने के लिए आग्रह किया। भैया ने साफ़ जवाब दिया कि जब तक राम पाल जी नहीं चाहेंगे, खंडन नहीं छप सकता। मैंने इन्कार कर दिया, तो सिन्हा जी आज के वाराणसी कार्यालय की ओर रुख़ किया।
असीम भैया सीधे सादे इंसान थे। निश्छल भाव की प्रतिमूर्ति …. लेखन ऐसा कि ख़बरों के तथ्य बिंब बनकर उत्कृष्ट साहित्य में ढल जाते। भैया का हर लेखन लाजवाब होता | उन्हें लीक से परे लेखन पर बिहार का राजभाषा पुरस्कार भी मिला। उन्होंने ऑडियो विजुअल मीडिया में भी महती योगदान किया, लेकिन अंतिम समय तक आज से ही संबद्ध रहे। उनकी साहित्यिक कृतियों में ‘ सुन समंदर ‘ ( काव्य संग्रह ) और ‘ योगिनी मंदिर ‘ ( उपन्यास ) मंज़रे आम पर आए।
असीम भैया यदा कदा अपनी कविताओं को पंक्तियां गुनगुनाया करते थे। मैंने दो बार ये पंक्तियां सुनीं – एक उनके पटना स्थित आवास पर और दूसरी आज कार्यालय में। ये पंक्तियां इस प्रकार हैं –
प्रेम यज्ञ के हवन पर्व में/ मैं इतना खो जाऊं/
तुम आहुति के हाथ बढ़ाओ/ मैं समिधा हो जाऊं।
जब असीम भैया ने कुछ फ़ुरसत पाकर साहित्यिक लेखन शुरू किया, तो अधिक समय तक इस संसार में नहीं रह सके। कोरोना में प्लाज्मा के पर्याप्त भंडारण का दावा करनेवाली केजरीवाल सरकार असीम भैया को प्लाज्मा नहीं दिलवा सकी और उसके प्रचारात्मक दावों की पोल खुल गई। भैया को शत शत नमन , विनम्र श्रद्धांजलि …..