आज देश ने मिलकर यही पुकारा है –
जय जवान, जय हिन्द एक ही नारा है!
तिल भर भूमि बचाने को जो खून बहाते,
पांडु पुत्र की भांति बर्फ़ में गलने जाते।
जो स्वदेश पर जीवन-सुख न्योछावर करते,
जिनसे आंख मिलाने में हमलावर डरते!
हर जवान हमको प्राणों से प्यारा है –
जिनके कदमों में भूचाल पला करते है,
दुश्मन के दल को जो सदा दला करते हैं।
भारत मां ने जिन्हें विजय का मंत्र दिया है,
जिनके बल ने सबल – सुखद जनतंत्र दिया है।
उनको ही अर्पित तन मन धन सारा है –
जो शहीद हो गए वतन पर हंसते – हंसते,
उनके पावन मृत्यु – दिवस पर मेले लगते।
गाता है इतिहास सदा उनकी गुण-गाथा,
उनके चरणों पर झुकता है सबका माथा।
सीमा पर जगमग उनका ही तारा है।
– शिवशंकर शर्मा ‘ राकेश ‘
[ राकेश जी के विषय में मैं अधिक नहीं जानता। उनकी गीत – संग्रह “जय जवान” मेरे पास है, जो फरवरी 1963 में अलीगढ़ के भारत प्रकाशन मंदिर से प्रकाशित हुआ है। इससे संकेत मिलता है कि उनका मुस्लिम विश्वविद्यालय के संस्कृत,हिंदी विभाग से संबध रहा होगा। इस पुस्तक में नाम के साथ विभाग का नाम लिखा है, लेकिन वे क्या थे और उनकी प्रकाशित कौन – कौन कृतियां हैं, मेरे लिए अज्ञात हैं। अनुरोध है कि जिन सुधी जनों, आदरणीय मित्रों और अग्रजों को कवि महोदय के व्यक्तित्व और कृतित्व के विषय में जो भी जानकारी हो यहां शेअर करने की कृपा करें।
– Ram Pal Srivastava ]