कहते हैं,सठियाने का आनंद ही कुछ और है। हमारे देश में इसकी एक परंपरा – सी है और एक उपलब्धि – सी भी। कोई कहे या न कहे, महसूस करे या न करे, लेकिन उम्र पाकर वह सठियाता ज़रूर है। मैं भी सठिया गया हूं, तभी इस विषय पर कुछ लिखने की ओर बढ़ा। स्कूली प्रमाणपत्र के हिसाब से साठ में चल रहा हूं। जल्द ही आगामी 23 सितंबर को साठ पूरा करके 61 वें वर्ष में प्रवेश कर जाऊंगा। फिर भी आगे सठियाने का संकल्प लेता हूं, क्योंकि वास्तविक रूप में मैं 23 सितंबर 2022 से साठ में चलने लगूंगा।
यह प्रभु की बड़ी कृपा है कि मैं उनमें से नहीं हूं कि इस आयु को प्राप्त कर साहित्य में कुछ लिखने भर का संकल्प करते हैं। कितने ही साहित्यकार गुज़रे हैं, जो इस अवस्था का यह अनुभव प्राप्त करने से वंचित रह गए। इंसानी परंपरा का यह स्वाद न लिया और विधाता के आमंत्रण पर चल दिए ! यह भी सच है कि कुछ साहित्यकारों ने इसका आस्वादन न भी किया हो, फिर भी इस विषय पर ग़ज़ब लिखा है। पहले मेरा मानना था कि यह हमारे देश की ही परंपरा है, पर जब से मैंने बी डी नात्सग दोर्ज ( B D Natsagdorj 1906- 1937 ) की चर्चित कहानी ” उदास चट्टानें ” ( Sad Hills ) पढ़ी है, इस विचार को तर्क कर दिया है। ये मूलतः कवि हैं, लेकिन अच्छे कहानीकार के तौर पर भी जाने जाते हैं। ये मंगोलिया के पहले समाजवादी लेखक माने जाते हैं। ये मंगोली साहित्य के एक स्तंभ हैं। इन्होंने अपने जीवन में सठियाने का आनंद नहीं लिया, लेकिन सठियाने की कथा ज़रूर बयान कर दी। उलनबटोर ( मंगोलिया ) से ख़ुद तो चल दिए इस दुनिया से तीस वर्ष की आयु में ही, लेकिन अपनी कहानी में सठियाने का ऐसा सुंदर चित्रण किया कि मानो ” उदास चट्टानें “अट्टहास करने लगी हों। सच है, साहित्यकार सदा आगे – आगे चलता है और जहां रवि नहीं पहुंचता कवि और उसके अन्य विधा के साथी पहुंचते हैं।
ऐसे ही आगे सोचकर अपने को आगे की अवस्था में भौतिक रूप में न ले जाने वाले साहित्यकारों की सूची बड़ी लंबी है, फिर भी यहां कुछ नामों की चर्चा करना कदापि अनुपयुक्त न होगा। पर्सी बयशी शेली ( Percy Bysshe Shelley ) ने 29 वर्ष की अवस्था ही पाई, लेकिन चिंतन और सोच में काफ़ी आगे बढ़कर सठियाने की अवस्था में ले गए और स्वच्छंदतावाद के महान रचयिता बने। जॉन कीट्स (John Keats ) 25 वर्ष में ही अमर हो गए। साठ में जो बात कहनी थी , बहुत पहले ही कह गए। इनसे भी कम आयु की तारु दत्त को 21 वर्ष में ही संसार त्याग करना पड़ा, लेकिन अपनी अंग्रेज़ी और फ्रेंच की रचनाओं में साठ के पार की प्रौढ़ विचारों का महान योगदान कर गईं। ये बंगाल की थीं और ब्रिटिश इंडिया काल में थीं। इन्होंने अनुवाद – कार्य भी किया। अंग्रेज़ी कवि थॉमस चैटर्सन ( Thomas Chatterson ) को मात्र 18 वर्ष की अवस्था मिली, किन्तु उच्चता का काव्य दे गए। एक और अंग्रेज़ी साहित्यकार कीथ डोगलस ( Keith Douglas) 24 वर्ष तक ही जिए, फिर भी साहित्य में नया इतिहास रच दिया। अंग्रेज़ी कवि विल्फ्रेड ओवन ( Wilfred Owen) 25 वर्ष में ही साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर बने। रूपर्ट ब्रुक ( Ruport Brooke ) 27 वर्ष तक ही जीवित रहे , लेखन किया साठ से ऊपरवाला। फ्रेंच साहित्यकार गुईलाम अपोलिनेयर ( Guillaume Apollinaire ) इनसे एक साल अधिक जिए। उनके लेखन से प्रबुद्ध वर्ग बड़ा आंदोलित हुआ।
अमेरिकी कवयित्री सिल्विया प्लाथ ( Sylvia Plath ) ने अपनी आयु के तीसवें वर्ष आत्महत्या कर ली, लेकिन अपनी कविताई और अन्य रचनाओं में अग्रणी रहीं। उनकी कविताएं सठियाने की उम्र का संकेत देती हैं। स्वीकार्य कविता आंदोलन की एक स्तंभ बनीं। अमेरिका की ही पहली अफ्रीकी मूल की कवयित्री फिलिस व्हेटली ( Phillis Wheatly) , जो 31 वर्ष ही जीवित रहीं, अंग्रेज़ी साहित्य मेंअमिट छाप छोड़ी।
भारत में ही कम उम्र में बहुत बड़ा करने का रिकार्ड बना। भारत में सठियाने की परंपरा अधिक रही है और यही अन्य देशों से हमें कुछ अलग करती है। कम उम्र में ही उम्रदराज़ी ज्ञान और सृजन ! भारतेंदु हरिश्चंद्र ने का शारीरिक जीवन 34 वर्ष का था। उन्होंने 25 वर्ष की अवस्था में लगभग 175 ग्रंथों की रचना कर डाली थी। अमर साहित्यकार प्रेमचंद 56 वर्ष ही जिए, पर उनका योगदान अद्वितीय है। शैलेंद्र 43 तो दुष्यंत ने 44 पर देह त्याग किया । इनका योगदान अविस्मरणीय है। सर्वेश्वर दयाल सक्सेना 56 वर्ष ही धरती पर रहे , पाकिस्तान के मंटो जैसा रिकार्ड बना गए। मालूम हुआ , जब लेखकीय परिपक्वता आती है, उम्र नहीं देखती, साठ या साठोत्तरी की याद दिला देती है।
– Dr RP Srivastava
Editor-in-Chief, Bharatiya Sanvad