” कांग्रेस को डुबाने का एक और नुस्ख़ा ” शीर्षक से मैंने 21 जनवरी 2014 को जो संपादकीय लिखा था, उसे जब भी पढ़ता हूँ, तो यही लगता है कि हमने पुराने अनुभवों से कुछ भी नहीं सीखा !!!??? लीजिए पढ़िए वह अग्रलेख –

रोज़मर्रा इस्तेमाल की चीज़ों के बढ़ते दाम , बढ़ती पेट्रोल , डीज़ल और रसोई गैस की कीमतें , सुप्रीम कोर्ट की आपत्ति के वावजूद गैस सब्सीडी हेतु ‘ आधार ‘ की अनिवार्यता , विभिन्न मदों के साथ अंधाधुंध करारोपण आदि के बाद अब नई बाध्यता ! भारतीय रिजर्व बैंक ने 2005 से पहले जारी सभी करंसी नोट वापस लेने का फैसला किया है। इसके तहत दस रुपये से लेकर 500 और 1000 सहित सभी मूल्य के नोट वापस लिए जाएंगे। यह काम एक अप्रैल से शुरू  हो जाएगा। रिजर्व बैंक ने 22 जनवरी 2014 को  जारी एक बयान में कहा कि रिजर्व बैंक 31 मार्च के बाद 2005 से पहले के सभी बैंक नोट वापस ले लेगा।
एक अप्रैल से लोगों को इस तरह के नोट बदलने के लिए बैंकों से संपर्क करना होगा। केंद्रीय बैंक ने यह कदम कालेधन और जाली नोटों की समस्या पर काबू पाने के लिए उठाया है। लोग आसानी से 2005 से पहले जारी करंसी नोट की पहचान कर सकते हैं। ऐसे नोट के पिछले हिस्से में प्रकाशन का साल नहीं छपा है। 2005 के बाद जारी सभी करंसी नोट के पिछले भाग के नीचे मध्य में प्रकाशन का साल छपा है। बताया गया कि यह  क़दम कालेधन और जाली नोटों की समस्या पर काबू पाने के लिए उठाया गया है |
वैसे तो रिजर्व बैंक ने इस मामले में  लोगों से किसी तरह की हड़बड़ी नहीं करने और वापसी प्रक्रिया में सहयोग करने की अपील की है , लेकिन है यह आमजन की परेशानी बढ़ानेवाला जनविरोधी क़दम ! इससे सरकार की विभिन्न शोषणकारी नीतियों की मारी और सताई जनता एक बार फिर अनावश्यक क़ानूनी प्रक्रिया के चंगुल में फंस गई है | अभी तक वह बार – बार बढ़ती महंगाई और आधार कार्ड बनवाने की अनिवार्यता  के क़ानूनी पचड़े में उलझी हुई है |
अब वह पुराने नोटों को बदलवाने बैंक जाएगी , अन्यथा उसके नोट नहीं चल पाएंगे | देश की साक्षर और निरक्षर जनता अब नोट लेने से पहले यह तो देखेगी ही नोट कटा – फटा और नक़ली तो नहीं है , यह भी देखेगी कि 2005 के पहले का छपा हुआ तो नहीं है | अब सवाल यह है कि निरक्षर जनता जो रंग – रूप से अब तक नोटों को पहचानती रही है , नोट की वैधता कैसे समझ पाएगी ? पढ़े – लिखे लोगों के लिए भी मुसीबतें बढ़ेंगी और लिए भी अनावश्यक तनाव बढ़ेगा | ऐसे में यू पी ए सरकार का यह क़दम कांग्रेस के लिए एक और वाटरलू साबित होगा |
क्या कांग्रेस इसके नतीजे से अवगत नहीं है ? अगर है , तो यह क़दम क्यों ? क्या कांग्रेस के कुछ लोग ही कांग्रेस का भला नहीं चाहते और राहुल के अभ्युदय से उनकी कुर्सी का स्वरुप बिगड़ने वाला है ? कुछ असंभव नहीं ! रिज़र्व बैंक के इस क़दम की टाइमिंग कुछ ऐसी ही कहानी बयान कर रही है |  सच है , देश में कालेधन और नक़ली नोटों की समस्या है , जो एक लंबे समय से बनी हुई है | इसके उपाय का यही एक टाइमिंग क्यों ? सत्ता के गलियारों में यह बात भी कही जा रही है कि यह क़दम भाजपा के मोदी – रामदेव मिशन का तोड़ है | काबिले गौर है कि रामदेव अपने अर्थशास्त्र के साथ मोदी के साथ खड़े हैं , जिसका जवाब कांग्रेस की ओर से दिया गया है , लेकिन यह बात आसानी से समझ में आनेवाली नहीं है |
दरअसल बात यह है कि देश में पिछले कई सालों से पूंजीवाद – प्रोत्साहक सरकार है | हर काम पूंजीवादियों को ख़ुश करनेवाला हो , इसकी ओर ही ख़ास ध्यान है | दूसरे शब्दों में आम जनता को इस क़दम से आम जनता को इसके लिए मजबूर किया जा रहा है कि वह माल्स से ही ए टी एम , क्रेडिटकार्ड से ही सामान खरीदे , जिसे पूंजीपति चलाते हैं | 2016 तक सभी नागरिकों के बैंक एकाउंट खोलवाने का लक्ष्य भी इसी के पेशेनज़र है | अतः कांग्रेस को अगर मौक़ा मिला तो इसी रास्ते पर देश को ले जाएगी और पूंजीपतियों को ही बचाएगी | इस बात को एक मिसाल से ज़रा डिटेल में समझते हैं |
भारत सरकार ने 21 मई 2012 को काले धन पर श्वेतपत्र जारी किया था , जिससे यह लगा था  कि यूपीए सरकार काले धन की समस्या से निबटने के प्रति गंभीर है | तत्कालीन वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी द्वारा पेश इस दस्तावेज़ में भ्रष्टाचार के मामलों की तेज़ी से जाँच और दोषियों के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई के लिए जल्द से जल्द लोकपाल और लोकायुक्त जैसी संस्थाओं का गठन किए जाने की बात कही गयी थी | तत्कालीन वित्तमंत्री ने आयकर विभाग में अभियोजन पक्ष को मज़बूत बनाने और प्रत्यक्ष कर क़ानूनों व नियमों को युक्तिसंगत बनाने की ओर इशारा करते हुए त्वरित अदालतों के गठन एवं अपराधियों को कड़ी सज़ा के प्रावधानों का समर्थन किया था , लेकिन हुआ कुछ नहीं ! कालाधन रखनेवाले सभी पूंजीपति और राजनेता सदा बचते रहे ! सवाल यह भी है कि किस पूंजीपति के पास कालाधन नहीं है ?
कुल 97 पेज के इस श्वेत पत्र में किसी आर्थिक अपराधी का नाम नहीं लिया गया था और न ही इस बारे में कोई जानकारी दी गयी थी कि दरअसल कितना काला धन विदेशों में है | सरकार ने इस सिलसिले में अन्य एजेंसियों के आकलन शामिल किए थे | हम देखते हैं कि सरकार ने श्वेतपत्र आने के एक साल से अधिक समय गुज़र जाने के बाद आर्थिक अपराधों पर लगाम लगाने के लिए कम से कम उन उपायों पर ध्यान नहीं दिया गया , जिनको अपनाने की बात श्वेतपत्र में कही गयी थी |
अब जब लोकसभा चुनाव नज़दीक आ रहे हैं , यूपीए सरकार कुछ हरकत में ज़रूर दिखने लगी है | यह बात अलग है कि इस सरकार की ऐसी हरकतें अक्सर दिखावा साबित हुई हैं | भारत सरकार ने कर चोरों की पनाहगाह माने जाने वाले करीब आधा दर्जन देशों से विदेशों में गोपनीय खाते रखने वाले 500 लोगों और इकाइयों की बैंकिंग और अन्य वित्तीय गतिविधियों की जानकारी प्राप्त करने के लिए संपर्क किया है। अमेरिका के एक कार्यकर्ता समूह इंटरनेशनल कंसोर्टियम आफ इन्वेस्टिगिव जर्नलिस्ट(आईसीआईजे)   ने  हाल में ही वैश्विक स्तर  पर गोपनीय खातों का खुलासा किया। भारतीयों द्वारा विदेशी बैंको में चोरी से जमा किया गया धन का निश्चित ज्ञान तो नहीं है किन्तु वरिष्ठ अर्थशास्त्री आर . वैद्यनाथन ने अनुमान लगाया है कि इसकी मात्रा लगभग 7,280,000 करोड रूपये है।
भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय मंदी से जूझ रही है और ऐसी आशंका है कि चालू वित्तीय वर्ष के सकल घरेलू उत्पाद में 5.13 लाख करोड़ रुपए का घाटा हो सकता है | अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए फिक्की द्वारा बनाई गई एक 12-बिंदु की योजना में संगठन का कहना है कि उसके आकलन के मुताबिक़, 45 लाख करोड़ रुपए का काला धन विदेशी बैंकों में जमा है, जो कि भारत के सकल घरेलु उत्पाद का करीब 50 प्रतिशत का हिस्सा है और भारत के वित्तीय घाटे का लगभग नौ गुना है | संगठन का कहना है कि अगर इस काले धन का 10 प्रतिशत हिस्सा भी भारत में आ जाए, तो उससे भारतीय अर्थव्यवस्था को काफी फायदा हो सकता है |
इस खुलासे में 505 भारत से संबंधित इकाइयों के नाम व पते शामिल हैं। इनमें उद्योगपति और कंपनियां शामिल हैं। आईसीआईजे के इस खुलासे में दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद, पुणो, अहमदाबाद, बड़ौदा, सूरत, चंडीगढ़ और कई अन्य भारतीय शहरों की इकाइयों के नाम व पते हैं। सूत्रों ने बताया कि वित्त मंत्रालय के अंतर्गत विदेशी कर और कर अनुसंधान (एफटीएंडटीआर) विभाग ने ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड, केमैन आइलैंड तथा सिंगापुर से कर आदान प्रदान संधि के तहत संपर्क किया है। इसके अलावा एफटीएंडटीआर ने राजनयिक माध्यम  से क्रूक्स  आइलैंड्स और समोआ से भी संपर्क किया है।
कुछ अन्य देशों से भी उनके यहां भारतीयों के गोपनीय खातों के बारे में जानकारी लेने के लिए संपर्क किया गया है। वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि जो शुरुआती जानकारी मिली है उससे तस्वीर अधिक साफ नहीं होती और ऐसे में आधिकारिक प्रोटोकाल व्यवस्था तथा मौजूदा संधियों के तहत और ब्योरा मांगा जा रहा है |
आईसीआईजे का दावा है कि पिछले तीन दशक में इकाइयों द्वारा करीब एक लाख गोपनीय कंपनियों, ट्रस्टों और कोषों का गठन किया गया। अमेरिका के एक एनजीओ ने किया है इन नामों का खुलासा इनमें 505 नाम भारतीय व्यक्तियों या संस्थाओं के हैं खुलासे में 170 देशों के 2.5 लाख लोगों के नाम हैं शामिल हैं |
इसका वैश्विक खुलासा आईसीआईजे ने इस साल अप्रैल में किया था, लेकिन नाम और पतों को गत  15 जून  को  सार्वजनिक किया गया। हालांकि, इसके साथ ही आईसीआईजे ने यह भी कहा है कि हो सकता है कि इन विदेशी कंपनियों और ट्रस्टों का कानूनी तरीके से इस्तेमाल किया गया हो। इस सूची का मतलब यह कतई नहीं है कि इन इकाइयों ने कानून तोड़ा है। बताया जाता है कि संबंधित देशों से आवश्यक जानकारी हासिल करने के बाद भारतीय अधिकारी आगे की कार्रवाई करेंगे। कुछ देशों से यह जानकारी दोहरा कराधान बचाव संधि और कर सूचना आदान प्रदान करार के तहत मांगी गई है। कुछ अन्य देशों से ओईसीडी के आपसी कर सहायक प्रोटोकॉल के तहत मांगी गई है।
पेरिस स्थित आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) ताकतवर देशों के साथ भागीदार कर काले धन तथा कर अपराधों के खिलाफ अभियान चला रहा है। आईसीआईजे के अप्रैल में शुरुआती खुलासे के बाद वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने कहा था कि इस वैश्विक रिपोर्ट में जिन लोगों के नाम है उनके खिलाफ जांच की जा रही है। इस खुलासे में भारत सहित 170 देशों के 2.5 लाख लोगों और इकाइयों का नाम शामिल है। इन इकाइयों ने कर पनाहगाह देशों में कंपनियों का गठन कर कर चोरी की है। आर्थिक अपराध बहुत ही संगीन होते हैं , लेकिन शायद ये सरकार की प्राथमिकता सूची में शामिल नहीं हैं |
हम अक्सर सुनते हैं कि सरकार आर्थिक अपराधियों पर नकेल कसेगी और विदेशों से काला धन वापस लाएगी , लेकिन इसे अमली रूप अभी तक नहीं दिया जा सका है | जैसा कि ऊपर कहा गया है कि यदि काला धन वापस ले आया जाए , तो भारतीय अर्थव्यवस्था की बदहाली के दलदल से आसानी से निकाला जा सकता है | सरकार को चाहिए कि थैलीशाहों की थैली की परवाह न करके उनकी काली पूंजी को भारत लाए | लोकपाल विधेयक पारित होने के बाद क्या यह आशा की जाए कि काले धन की वापसी की दिशा में कुछ कार्रवाई हो पाएगी ?

– Dr RP Srivastava, Editor-in- Chief, ”Bharatiya Sanvad”

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