डॉ. अंबेडकर ने लोकतंत्र के रक्षार्थ कुछ चेतावनी दी थी | सामाजिक-आर्थिक लक्ष्यों की प्राप्ति में संविधान प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग आवश्यक ठहराने के साथ – साथ उन्होंने कहा था कि ‘इसका मतलब है कि हमें खूनी क्रांतियों का तरीक़ा छोड़ना होगा, अवज्ञा का रास्ता छोड़ना होगा, असहयोग और सत्याग्रह का रास्ता छोड़ना होगा।’ डॉ अंबेडकर के इस भाषण में दूसरी चेतावनी यह थी कि भारत सिर्फ राजनीतिक लोकतंत्र न रहे बल्कि यह सामाजिक लोकतंत्र का भी विकास करे | उनका मानना था कि यदि देश में जल्दी से जल्दी आर्थिक-सामाजिक असमानता की खाई नहीं पाटी गई यानी सामाजिक लोकतंत्र नहीं लाया गया तो यह स्थिति राजनीतिक लोकतंत्र के लिए खतरा बन जाएगी।डॉ. अंबेडकर लोकतंत्र के लिए एक तीसरा खतरा बताते हैं कि जनता राजनेताओं के प्रति अंधश्रद्धा भाव न रखे, नहीं तो इसकी कीमत लोकतंत्र को चुकानी पड़ेगी। दिलचस्प बात है कि उन्होंने यहां राजनीति में सीधे-सीधे भक्त और भक्ति की बात की है। उन्होंने कहा था कि ‘धर्म में भक्ति आत्मा की मुक्ति का मार्ग हो सकता है लेकिन राजनीति में, भक्ति या नायक पूजा पतन का निश्चित रास्ता है और जो आखिरकार तानाशाही पर खत्म होता है |’ [ डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर , 25 नवंबर 1949 , संविधान सभा में अभिभाषण ] [ A ‘BHARATIYA SANVAD PRESENTATION ]
खासमखास
“जित देखूं तित लाल” की सुखद अनुभूति
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