बिहार में नाटकीय ढंग से निष्ठा – परिवर्तन हो गया ! इतनी आसानी से मानो कुछ हुआ ही न हो , लेकिन यह भी उतना ही सच है कि इतने  ‘ उत्तम अवसरवाद ‘ की ऐसी मिसाल आसानी से नहीं मिल सकती | लालू प्रसाद के दोनों बेटे ठिकाने लग गए ! इतने ठिकाने कि शायद उनके परिवार की अब सीबीआई को ज़रूरत नहीं पड़ेगी ! बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने कुछ समय पहले कहा था कि तेजस्वी में मुख्यमंत्री बनने के सारे गुण मौजूद हैं | इसी बात को लालू जी ने अपने शब्दों में भी दोहराया था , ” मेरी और नीतीश कुमार की उम्र हो चली है | अब भविष्य बच्चों का ही है | ”

आखिरकार बिहार के महागठबंधन में महीनों से चले आ रहे विवाद का अंत सीएम नीतीश कुमार के इस्तीफे से हुआ। साथ ही 42 फीसद वोट हासिल करनेवाला गठबंधन जिसे उत्साह में ‘ महागठबंधन ‘ भी कहा जाता है , धराशाई हो गया | उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के इस्तीफे पर राजद-जदयू में बढ़ती तकरार को देखते हुए नीतीश ने 26 जुलाई 2017 को देर शाम राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी को अपना इस्तीफा सौंप दिया, जिसे तत्काल मंजूर कर लिया गया। नीतीश ने उन्हें अपना इस्तीफा तो सौंपा ही, लालू यादव समेत पूरे विपक्ष पर जोरदार हमला भी बोला। नीतीश कुमार ने कहा कि वे अपनी तरफ से कोशिश कर थक गए, लेकिन तेजस्वी पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर राजद ने तस्वीर नहीं साफ की। हालांकि नीतीश कुमार के इस इस्तीफे के पीछे माना जा रहा है कि इसकी नींव बीते साल से ही उस वक्त रख दी गई थी।

जब उन्होंने पहली बार नोटबंदी के मसले पर पीएम मोदी का समर्थन किया था। इसके बाद पटना साहिब में दोनों की मुलाकात और फिर हाल में मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को समर्थन देकर वे भाजपा के अधिक करीब आ गए थे। तभी से कल्पना व अनुमान लगाए जा रहे थे कि महागठबंधन अब चल – चलू है | 26 जुलाई 2017 की सायंकाल के घटनाक्रम के बाद शुचिता और लोकतंत्र – रक्षा की दुहाइयों का ताँता लग गया | लालू जी के बेटे तेजस्वी अब नीतीश कुमार की चाल को लोकतंत्र की हत्या बता रहे हैं | राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव को अचानक नीतीश कुमार हत्या 302 के आरोपी दिखाई देने लगे | धरना – प्रदर्शन याद आ गया | राजद का ‘ विश्वासघात दिवस ‘ मन गया | ऐसा लगता है कि राजद की दृष्टि में भ्रष्टाचार के लिए जनमत था | तो यह मान लिया जाए कि भ्रष्टाचार का रोग उसके लिए कोई चिंता व मतलब नहीं रखता !

अगर यहाँ ” तोते ” का गलत इस्तेमाल हुआ , तो भी परिस्थितियों का मुक़ाबला क्या इस तरह होगा कि यह साफ़ लगने लगे कि भ्रष्टाचार – कदाचार के आरोप हरहाल में बेमानी होते हैं ? क्या कभी इस तर्ज़ पर भी सोचा गया कि आख़िर राजनेताओं के पास जल्दी से अकूत संपत्ति कैसे हो जाती है ? क्या उनके पास ऐसी कोई जादू की छड़ी होती है , जिसे घुमाने से संपत्ति झर – झर झड़ने लगती है ? दूसरी ओर ईमानदार अधिकारी / कर्मचारी ताउम्र कमाता है , फिर भी ” छड़ी वाले ” से बहुत ही पीछे रहता है !

राजद के लोग कहते हैं कि लोकतंत्र की हत्या हो गई और ” लोक ” के साथ बड़ा विश्वासघात हो गया | इस बाबत कांग्रेस भी दुखी है | रणदीप सिंह सुरजेवाला फ़रमाते हैं कि तीन पार्टियों – जदयू , राजद और कांग्रेस – के महागठबंधन को पांच साल सरकार चलाने का जनादेश मिला था , उसका सम्मान होना चाहिए और आपसी मतभेद मिल – बैठकर सुलझा लेना चाहिए | सुरजेवाला की यह बात मुनासिब है भाई , लेकिन सवाल यह है कि ” सुशासन बाबू ” अब तक यही तो कर रहे थे | मिल – बैठकर बात उसी समय तक सुलझ सकती है , जब दोनों पक्ष इसके लिए पूरी तरह आमादा हों | क्या लालू जी की मासूमियत किसी की समझ में आ रही है ?

कांग्रेस और राजद दोनों यह मानते हैं कि जनादेश महागठबंधन को मिला था कि पांच साल सरकार चलाएं , मगर क्या ऐसा हो सका ? यह भी कहा जा रहा है कि महागठबंधन जब बचा नहीं ,तो ऐसी बात क्यों ? राज्यपाल की कार्य – प्रणाली पर भी सवाल खड़े किये जा रहे हैं | विधानसभा में सबसे अधिक विधायकों वाली पार्टी – राजद को राज्यपाल ने सरकार बनाने के लिए बुलाया क्यों नहीं ? अतः अब राजद कोर्ट जाएगी | सच है कि जब जनता ने सेकुलर दलों को सत्ता सौंपी , तो भाजपा सत्ता में कैसे शरीक हो गई ? ऐसे में लालू और नीतीश दोनों की निष्ठाओं पर सवालिया निशान है ! 2019 के लोकसभा चुनाव और 2020  के बिहार विधानसभा चुनावों में दोनों को इसका जवाब जनता को देना होगा | क्या सिर्फ़ तेजस्वी के इस्तीफ़े से महागठबंधन टूटने से बच नहीं सकता था ? लेकिन भाजपा के स्वर्णिम काल को तो रोका नहीं जा सकता | –  Dr RP Srivastava

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