आर टी आई भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ एक कारगर ‘हथियार’ है , जिसे हर वह देश अपना रहा है , जो लोकतांत्रिक होने का दावा करता और दम – खम रखता है |आज दुनिया के लगभग 80 देशों में आर टी आई क़ानून लागू है | सबसे पहले स्वीडन ने सूचना का अधिकार कानून 1766 में लागू किया, जबकि कनाडा ने 1982, फ्रांस ने 1978, मैक्सिको ने 2002 तथा भारत ने 2005 में लागू किया। स्वीडन पहला ऐसा देश है, जिसके संविधान में सूचना की स्वतंत्रता प्रदान की है | इस मामले में कनाडा, फ्रांस, मैक्सिको तथा भारत का संविधान उतनी आज़ादी प्रदान नहीं करता। लंबे संघर्ष और अनवरत कोशिशों के बाद 2005 में भारत की जनता को सूचना पाने का संवैधानिक अधिकार मिला था | मगर अफ़सोस ख़ुद सरकार द्वारा इसे ” दिव्यांग ” बनाया जा रहा है | राजनेता और नौकरशाह इसके पीछे हाथ धोकर पड़े हुए हैं | इन्हें अपने काम में जवाबदेही बर्दाश्त नहीं है | वह भी जनता की , जबकि वे संवैधानिक रूप से जन प्रतिनिधि कहलाते और अपने को जनता के प्रति जवाबदेह मानते हैं ! ये कई वर्षों से इस कानून को बकवास और निरर्थक कहकर बंद करने की मांग करते रहे हैं। इस मामले में दलगत भेद नहीं है | लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि जिस प्रकार कांग्रेस सही – गलत कामों की आरंभिका रही है , उसी प्रकार भाजपा उसकी महज़ पैरोकार ! इस बात को एक – दो उदाहरणों से समझते हैं | ”आधार’ की शुरुआत कांग्रेस ने की और पूरे देश की जनता को रसोई गैस के लाइनों में खड़ा कर दिया | इसी परंपरा को भाजपा आज भी व्यापकता के साथ बढ़ा रही है ! जी एस टी का प्रस्ताव कांग्रेस ने रखा था , जिसका भाजपा जी खोलकर विरोध कर रही थी | भाजपा ने इस क़ानून को भी हड़बड़ी में लागू कर दिया , जिसके कारण उसे सैकड़ों संशोधन करने पड़ रहे हैं , जिसके चलते जनता समझ ही नहीं पा रही है , क्या – क्या बदलाव हुए | बिलकुल ऐसे ही बदलाव नोटबंदी के समय कई महीनों तक होते रहे और लंबे समय तक ‘अराजकता ‘ की स्थिति बनी रही | पेट्रोल , डीज़ल के दाम न घटाने की नीति भी कांग्रेस की है | डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री की हैसियत से बार – बार कहते रहे कि अमुक महीने से तेल के दाम घटेंगे , किन्तु कभी नहीं घटे , बढ़े ही ! मोदी सरकार भी यही कर रही है , बल्कि तेलों के दाम न घटाने के लिए इन्हें जी एस टी से बाहर रखा है | इसी तरह पूर्व प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह ने आर टी आई क़ानून के दायरे को कम करने और गोपनीयता बढ़ाने की वकालत की थी। इसे लेकर कांग्रेस सरकार संजीदा नहीं थी और भाजपा की एन डी ए सरकार भी नहीं है | प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि ” आरटीआई किसी को खाने के लिए नहीं देता |” अब तो यही सरकार इस क़ानून को ” दिव्यांग ” बनाने की पूरी कोशिश कर रही है और इस बाबत संशोधन भी लेकर आई है , पर विपक्ष और सूचनाधिकार से जुड़े लोगों के दबाव में वह फ़िलहाल बैकफुट पर नज़र आती है | फिर भी यह तय नहीं है कि मोदी सरकार दोबारा इस प्रस्ताव को पेश करेगी या नहीं | ऐसा नहीं लगता कि वह इस क़ानून को कंकाल में तब्दील करने में पीछे है | उस पर यह आरोप भी लगते रहे हैं कि सूचना आयुक्तों की नियुक्ति निष्पक्षता से नहीं की जाती। पूर्व नौकरशाहों और अपने चहेतो को इस कानून का मुहाफि़ज़ के रूप में सूचना आयुक्त बनना भ्रष्टाचार और दोहरी नीति का उदाहरण है। मोदी सरकार आर टी आई की धार को कुंद करने के लिए जो संशोधन का प्रस्ताव रखती है , उसकी कुछ बातों को जान लेना भी समीचीन होगा | कानून में संशोधन के नए नियमों के तहत अब आवेदक की मौत होने पर मामला बंद हो जाएगा और आवेदन अधिकतम 500 शब्दों में देना होगा। वहीं आरटीआई आवेदन की फीस भी बढ़ाई जाएगी। नए नियम के तहत अब आवेदक को ही पोस्टल खर्च उठाना होगा। अब तक आरटीआई आवेदन का पोस्टल खर्च सरकार उठाती थी। वहीं आरटीआई अर्जी देने वाले के खिलाफ काउंटर अपील संभव हो सकता है। इतना ही नहीं आरटीआई की अपील भी ऑनलाइन फाइल करनी होगी। नए ड्राफ्ट नियमों के तहत सूचना अधिकारी के पास अपील की कॉपी भेजनी होगी। सरकार ने इस नए ड्राफ्ट नियमों पर लोगों के सुझाव मांगे थे | अतः लोगों ने अपने सुझाव नियमानुसार 15 अप्रैल 2018 तक ही दिए | केवल ईमेल के जरिए ही सुझाव देने का आप्शन रखा गया था ! एक तो बहुत कम वक्त , दूसरे केवल ईमेल का आप्शन यह बताता है कि सरकार की मंशा और नीयत क्या है ? इसलिए नए नियमों की घोर निंदा होनी तय थी | ऐसा हुआ भी |

आर टी आई के इस्तेमाल से भ्रष्टाचार उजागर – सोहेलवा वन्य जीव प्रभाग के तत्कालीन प्रभागीय वनाधिकारी का मजदूरी देने का झूठा जवाब – 23 जुलाई 2015 को लिखे जवाब में वन विभाग ने ऐसे मजदूरों के नाम बताए , जिन्होंने कभी काम नहीं किया, लेकिन घर बैठे कुछ पा गए , जबकि एक तरह पूरी मजदूरी अधिकारी – कर्मचारी खा गए |

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मोदी सरकार द्वारा प्रस्तावित सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक, 2018 को लेकर केंद्रीय सूचना आयोग के सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलू ने कड़ी निंदा की है | श्रीधर आचार्युलू ने सभी सूचना आयुक्तों को एक पत्र लिख कर कहा कि ये संशोधन सूचना आयोगों को कमजोर कर देगा | उन्होंने मुख्य सूचना आयुक्त से गुजारिश की कि वे सरकार से आधिकारिक रूप से कहें कि सूचना का अधिकार क़ानून में संशोधन का प्रस्ताव वापस लिया जाए | श्रीधर आचार्युलू ने सबसे सीनियर सूचना आयुक्त यशोवर्धन आज़ाद को 19 जुलाई को पत्र लिखा और मांग की कि सभी सूचना आयुक्तों की एक बैठक बुलाई जाए और इस मामले पर सरकार को पत्र लिख कर संशोधन बिल वापस लेने की मांग की जाए | भारत के पहले मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह ने कहा, “इस संशोधन से सूचना आयोग की आज़ादी बिल्कुल खत्म हो जाएगी। जानने के अधिकार का जो बुनियादी स्तंभ है, वह कमजोर हो जाएगा। बल्कि मेरे ख्याल से खत्म ही हो जाएगा, क्योंकि सूचना आयोग सरकार का एक महकमा बनकर रह जाएगा।”नेशनल कैंपेन फॉर राईट टू इंफोर्मेशन से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे कहते हैं, “यह संशोधन आरटीआई के पूरे ढांचे को कमजोर करने वाली बात है। इससे पूरा कानून ही कमजोर पड़ जाएगा। आयोग भी सरकार के लिए एक सरकारी विभाग की तरह काम करने लगेगी। वैसे भी यह सरकार आरटीआई को खत्म कर देना चाहती है।” पूर्व सूचना आयुक्त शैलेष गांधी का कहना है कि, “इस संशोधन से आरटीआई कानून खत्म हो जाएगा, यह कहना थोड़ा ज़्यादा हो जाएगा। अगर सरकार आरटीआई को खत्म करना चाहती तो वो सूचना की परिभाषा को छेड़ती, जुर्माना के प्रावधान में संशोधन करती है। आयोग के अधिकार वाले धाराओं में तब्दीली लाती, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। उसने सिर्फ आयुक्तों के वेतन और उनके कार्यकाल को तय करने की बात कही है।” शैलेष गांधी कहते हैं कि, “पावर कानून से आता है। मुख्यमंत्री की गाड़ी रोकने का पावर पुलिस कांस्टेबल को भी है। कानून के पावर को सरकार ने इस संशोधन में नहीं छेड़ा है। मगर कुछ चींजे चिंताजनक जरूर हैं। इस संशोधन को लेकर सरकार का तर्क सही नहीं है। नीति आयोग, अल्पसंख्यक आयोग, राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ये सब सांविधिक संस्था ही हैं।”इस संशोधन का कारण पूछने पर हमने शैलेष गांधी बताते हैं कि, “शायद इसके पीछे एक कारण सीआईसी का वह आदेश है, जो उसने पीएम मोदी के डिग्री को लेकर दिया था। शायद इसी से सरकार को प्रॉब्लम हुई होगी, इसलिए सरकार को लगा होगा कि इन्हें ठिकाना लगाना जरूरी है। दूसरी संभावना ये भी हो सकती है कि सरकार सांविधिक संस्थाओं को ये संदेश देना चाहती हो कि अगर हमारे खिलाफ गए तो हम तुम्हारे साथ भी ऐसा ही करेंगे।” कांग्रेस नेता और केरल से सांसद शशि थरूर के लोकसभा में पूछे गए सवाल के जवाब में कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री डॉ जितेन्द्र सिंह ने बताया था कि “संसद के चालू सत्र में ‘सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक-2018” पर विचार करने और इसे पारित करने के लिए राज्यसभा में विधेयक को पुन:स्थापित करने का नोटिस दिया गया है। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी आरटीआई अधिनियम में संशोधन करने के कदम की आलोचना की थी | यह बात अलग है कि आर टी आई को कमज़ोर करने की भी शुरुआत कांग्रेस के सत्ताकाल में शुरू हुई थी , जिसे मोदी सरकार आगे बढ़ा रही है !

प्रस्तावित नियमों पर आपत्ति जताना असहज और अस्वाभाविक नहीं है | कुछ जानकारों का कहना है कि आरटीआई एक्ट में संशोधन पर सुझावों के लिए काफी कम वक्त दिया गया | वहीं इसमें व्हिसिलब्लोअर की सुरक्षा का कोई भी प्रावधान नहीं है। यह आशंका जताई जा रही है कि नए नियमों के लागू होने से नागरिकों के मुक़ाबले सरकारी अफसरों की ताकत को बढ़ावा मिलेगा | आम लोगों के लिए आरटीआई की प्रक्रिया महंगी की जा रही है। जबकि सच्चाई यह है कि जनमानस के लिए यह कानून कई मामलों में वरदान साबित हुआ है। जवाबदेही के कारण सरकार फ़रार की राह पर है , लेकिन यह तय है कि इस क़ानून को आसानी से नहीं समाप्त किया जा सकेगा | यह बात सरकार भी जानती है , इसलिए वह इस क़ानून को अव्यावहारिक बनाने के प्रयास में है | शशि थरूर ने अपने सवाल में यह भी पूछा था कि, “क्या इस प्रस्ताव को तैयार करते समय किसी भी रूप में पूर्व-विधायी परामर्श किया गया ह। यदि हां, तो तत्संबंधी ब्योरा क्या है?”इस सवाल के जवाब में कहा गया कि, “सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक -2018 को तैयार या निरूपित करते समय व्यय विभाग, विधी कार्य विभाग एवं विधायी विभाग से परामर्श किया गया है।” लेकिन सच यह है कि सरकार ने ऐसा नहीं किया था। विगत 19 जुलाई को विपक्ष ने सरकार को सुझाव दिया कि पहले इसे विधायी जांच के लिए एक चयन समिति को भेजा जाए। फिलहाल देश के आरटीआई कार्यकर्ताओं ने राहत की सांस ली है। उनका मानना है कि उनका विरोध-प्रदर्शन काम आया। साथ ही विपक्ष का भी उनको पूरा साथ मिला। यह भी सच है कि खतरा अभी टला है खत्म नहीं हुआ है, क्योंकि सरकार नीयत ठीक नहीं | इसलिए आवश्यक है कि भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ इस ताक़तवर हथियार – आर टी आई के भविष्य को लेकर सचेत रहें |– Dr RP Srivastava , Editor – in- Chief, Bharatiya Sanvad’’

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