आधार की अनिवार्यता के ख़िलाफ़ अब भाजपा के नेता भी आवाज़ उठाने लगे हैं | भाजपा के वरिष्ठ नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने आधार पर तीखी टिप्पणी करते हुए इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया है। स्वामी ने यह भी कहा कि मुझे उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट आधार की अनिवार्यता के मामले को खारिज कर देगी। उन्होंने आधार संस्था – भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण [ यू आई डी ए आई ] को समाप्त करने की वकालत करते हुए इसे विध्वंसक बताया | उनके अनुसार , आधार डाटा फीडिंग का काम विदेशी कंपनियां करती हैं , जिससे देश की सुरक्षा को खतरा है | इस बाबत वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखेंगे | दूसरी ओर आधार को लेकर केंद्र सरकार की समस्याएं और बढनेवाली हैं , क्योंकि इसके खिलाफ़ दायर दो दर्जन से अधिक याचिकाओं पर सुप्रीमकोर्ट इस महीने के अंतिम सप्ताह में सुनवाई आरंभ करेगी | सुप्रीम कोर्ट ने मोबाइल सिम को आधार से अनिवार्य रूप से जोड़ने के ख़िलाफ़ दायर एक अन्य याचिका को सुनवाई हेतु स्वीकार कर ली है , जबकि बंगाल सरकार की याचिका को ठुकरा दिया है | कोर्ट का मानना है कि कोई भी राज्य सरकार केंद्र के क़दम को चुनौती नहीं दे सकती |इसलिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की याचिका ख़ारिज कर दी गई | सुश्री बनर्जी ने पहले ही आधार को मोबाइल नंबर से लिंक कराने को लेकर अपना विरोध जता चुकी हैं। अब सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ इन सब मामलों की जल्द सुनवाई करेगी | उल्लेखनीय है कि नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि निजता का अधिकार संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकार है। आधार की वैधानिकता को चुनौती देने वाली अनेक याचिकाओं में दावा किया था कि इससे निजता के अधिकार का हनन होता है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति डी वाई चन्द्रचूड की तीन सदस्यीय खंडपीठ के समक्ष अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि केन्द्र इस मामले में बहस के लिए तैयार है और अब इस मामले में उनका पक्ष सुने बगैर किसी अन्य अंतरिम आदेश की आवश्यकता नहीं है। इसके बाद ही न्यायालय ने कहा कि संविधान पीठ नवंबर के अंतिम सप्ताह में इस पर सुनवाई शुरू करेगी। केन्द्र की पहल का विरोध करते हुए याचिकायें दायर करने वाले याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रह्मण्यम ने कहा कि शीर्ष अदालत ने पहले आधार मामले में कई आदेश पारित किये थे और कहा था कि यह विशुद्ध रूप से स्वैच्छिक कृत्य है और कोई भी नागरिक सरकार की योजनाओं का लाभ प्राप्त करने के लिए यह कार्ड रखने को बाध्य नहीं होगा। इस आदेश का पालन नहीं किया गया | उल्लेखनीय है कि 30 मार्च 2017 को दक्षिण एशियाई विदेशी संवाददाता क्लब , नई दिल्ली ने एक प्रेस कांफ्रेंस कर बायोमेट्रिक विशिष्ट पहचान संख्या (आधार) को संविधान और कानून की अनदेखी क़रार दिया | इसमें इस बात पर चिंता व्यक्त की गई कि राजनीतिक विरोध के बावजूद इस मामले में ख़ामोशी आश्चर्यजनक है |
अभी पिछले दिनों झारखंड के सिमडेगा ज़िले में संतोषी नामक लड़की की आधार के अभाव में भूख से हो गई | फिर केन्द्रीय खाद्य मंत्री राम विलास पासवान ने ” आधारहीन ” लोगों को भी राशन देने का ऐलान किया , परन्तु अभी तक ऐसी सूचना उपलब्ध नहीं है कि ऐसे लोगों को भी राशन दिया जा रहा है , जिनके पास आधार कार्ड नहीं है | अब सरकार भी कहीं न कहीं यह महसूस कर रही है कि इसकी अनिवार्यता – बाध्यता जनता के लिए मुश्किलें खड़ी कर रही है | यह वही कार्ड है , जो दुनिया के कई देशों में विफल हो चुका है | यह जी एस टी की भांति सरकार गिरानेवाला नहीं है , किन्तु हमारे देश में कांग्रेस सरकार के पतन में इसका बड़ा हाथ रहा है | उल्लेखनीय है कि 28 जनवरी 2009 को कांग्रेस नीत यूपीए सरकार ने गैर कानूनी ढंग से – बिना संसद द्वारा पारित क़दम को जबरन नागरिकों पर थोपा था और रसोई गैस सिलिंडर के लिए आधार कार्ड की अमलन बाध्यता करके पूरे देश में नोटबंदी जैसी लाइनें लगवा दीं | सिर्फ दिखावे के तौर पर कहा जाता रहा कि यह ऐच्छिक है . लेकिन व्यावहारिक रूप में इसे अनिवार्य बना दिया गया | सभी ने देखा , चुनाव में कांग्रेस का खेमा उखड़ गया | भाजपा के ही प्रस्ताव पर कांग्रेस ने यह क़दम उठाया था , जो कांग्रेस के लिए भस्मासुरी साबित हुआ | कहते हैं कि भाजपा के किसी सज्जन ने एक अंग्रेज़ी उपन्यास में ऐसे कार्ड की कल्पना की कल्पना के बारे में पढा था , जो अनोखा और चमत्कारिक था | फिर इसे ही भाजपा ने प्रस्तावित कर दिया , जबकि कांग्रेस एक दूसरा पहचान – पत्र लाना चाहती थी , जिसके बनाने का एक चरण पूरा हो गया था और कंग्रेस के बहुद्देशीय कार्ड पर करोड़ों रुपए फूंके जा चुके थे | हमारे देश के राजनीतिक इतिहास में एक समय ऐसा भी आया था , जब भाजपा आधार का विरोध करने लगी थी | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं आधार कार्ड के घोर विरोधी थे | ऐसा समय आया था , जब नरेंद्र मोदी ने खुलकर आधार योजना का विरोध किया था। जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे , तब उन्होंने आधार कार्ड के लिये तत्कालीन यूपीए सरकार पर हमला करते हुए कहा था कि अगर वे लोग इसी तरह से अंधाधुंध आधार बांटते रहेंगे तो हमारे गुजरात में आतंकियों के घुसने का खतरा बढ़ जाएगा। मोदी ने तब कहा था कि आज कांग्रेस वाले जिस आधार कार्ड को लेकर इतना नाच रहे हैं , उसे देख कर लगता है कि देश के लोगों को पता नहीं कौन सी जड़ीबूटी बांट रहे हैं। नरेंद्र मोदी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा था कि ये आधार कार्ड से लाभ किसको मिलेगा? आधार कार्ड से क्या बाहरी लोग हमारे देश के नागरिक नहीं बन जाएंगे? परन्तु केन्द्रीय सत्ता पाते वे आधार के सबसे बड़े पैरोकार हो गए , यहाँ तक कि जब लोकसभा में विपक्षी दलों ने कहा कि जब यह मामला सुप्रीमकोर्ट कोर्ट में विचाराधीन है ,तो क़ानून बनाने कि जल्दी क्या है ? तो वित्त मंत्री अरुण जेटली ने साफ़ कह दिया कि उन्हें ऐसा करने से कोई नहीं रोक सकता | बाद में एक वित्त विधेयक को क़ानूनी जामा पहनाकर इस कम को आगे बढ़ाया गया , लेकिन इस क़ानून के खिलाफ कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रखी है | इस पूरे मामले पर अभी सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आना बाक़ी है |
वास्तव में आधार का बायोमेट्रिक होना आपत्ति का बड़ा विषय बना हुआ है | अब भाजपा नेता डॉ . सुब्रह्मण्यम स्वामी इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा यूँ ही नहीं मान रहे हैं | वास्तव में जिन एजेंसियों द्वारा आधार योजना में डाटा फीड का काम वर्षों से संपन्न कराया जा रहा है , वे संदेह के घेरे में हैं | चूँकि आधार कार्ड का निर्माण नागरिकों के मौलिक अधिकारों से जुड़ा हुआ सवाल है और इस बाबत गोपनीयता के अधिकार के रक्षार्थ सुप्रीम कोर्ट के आदेश भी मौजूद हैं | निजता के अधिकार को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ नागरिकों के मौलिक अधिकारों में शामिल कर चुकी है | शायद इसी तथ्य को देखते हुए डॉ . स्वामी कहते हैं कि ” मुझे उम्मीद हैं कि सुप्रीम कोर्ट आधार कार्ड को रद्द कर देगी | यह भी गौरतलब है कि मोदी सरकार ने आधार को क़ानूनी जामा पहनाने के लिए वित्त विधेयक लाकर क़ानून बना चुकी है | आधार पर केवल पश्चिम बंगाल विधानसभा में आवाज़ उठी है और इसके खिलाफ सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया गया | प्रस्ताव पारित किया गया कि केंद्र को प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना से आधारकार्ड को जोड़ने का अपना फैसला तत्काल वापस लेना चाहिए। लोकसभा में 3 मार्च 17 को पेश होने के बाद से संविधान के अनुच्छेद 110 के तहत लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने आधार विधेयक 2016 को धन विधेयक होने का प्रमाण पत्र दे दिया और इसे पारित कर राज्य सभा भेजा गया | यह संविधान और क़ानून सम्मत नहीं है , लेकिन यही एकमात्र ऐसा कानून है , जो संसद , सुप्रीमकोर्ट के अनुमोदन के बिना जबरन लागू किया गया | सुप्रीमकोर्ट द्वारा इसे अनिवार्य न ठहराए जाने और कुछ चीजों के लिए भी ऐच्छिक ठहराए जाने पर भी इसकी लगातार अवहेलना करके बैंकों, रसोई गैस की दुकानों और अन्य सरकारी कार्यालयों में वर्षों तक इसकी मांग की जाती रही और अब तो कानूनन आधार कार्ड को अनिवार्य कर दिया गया | लोगों ने मजबूर होकर आधार कार्ड बनवाए | फिर भी सुप्रीमकोर्ट में कह दिया गया कि लोगों ने स्वेच्छा से आधार कार्ड बनवाए हैं | राज्यसभा में भी विधेयक के धन विधेयक चरित्र पर सवाल उठा | राज्य सभा ने विधेयक में पांच संशोधन किये थे , जिनमें से एक इसे अनिवार्य न बनाना था | लोकसभा ने राज्यसभा के संशोधन को मानने से मना कर दिया और उसे मूल रूप में पारित कर दिया | उस समय लोकसभा के पूर्व महासचिव पी. डी. टी. आचारी ने कहा था कि आधार विधेयक 2016 को धन विधेयक नहीं माना जा सकता है | “ऐसे विधेयक का सम्बन्ध टैक्स लागू करने, टैक्स खत्म करने, टैक्स बदलने आदि से नहीं है; न ही इसका सम्बन्ध सरकार द्वारा ऋण के संचालन या सरकार द्वारा कोई गारंटी लेने या सरकार की वित्तीय जिम्मेवारी में संशोधन से है | इस विधेयक का सम्बन्ध कंसोलीडेटेड फंड आफ इंडिया आदि से है. जो धन इस फण्ड में दिया जाता है या इससे निकला जाता है , वह आकस्मिक है | यह विनियोग विधेयक से संबंधित नहीं हो सकता | ”भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के डी. राजा ने भी इसी प्रकार की बात कही थी | उन्होंने राज्यसभा में कहा था कि आधार विधेयक 2016 धन विधेयक बिलकुल नहीं है | धन विधेयक के सदर्भ में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि कोई भी शक्ति लोकसभा के धन विधेयक प्रमाण पत्र पर सवाल नहीं उठा सकती | आधार विरोधियों का आज भी मानना है कि इसका सीधा फ़ायदा पूंजीपतियों को होगा | इसके लिए सरकार का छिपा हुआ इरादा है – पूरे देश को एक बड़ी दूकान में तब्दील करना | नन्दन नीलेकणे ने जो भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण [ UIDAI ] अध्यक्ष थे | उन्होंने एक अवसर पर कहा था कि ” भारत के एक तिहाई उपभोक्ता बैकिंग और सामाजिक सेवा की पहुंच से बाहर हैं | ये लोग गरीब हैं , इसलिए ख़ुद बाज़ार तक नहीं पहुंच सकते | पहचान [ आधार ] नंबर मिलते ही मोबाइल फोन के जरिए इन तक पहुंचा जा सकता है | ” नेल्सन कंपनी के ‘ कंज्यूमर 360 ‘ कार्यक्रम में उनकी बात की व्याख्या भी की गई | नेल्सन के तत्कालीन मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने कहा कि ” आधार सिस्टम से कंपनियों को फ़ायदा पहुंचेगा | ” उल्लेखनीय है , इस प्रकार का बायोमेट्रिक कार्ड संसार के किसी बड़े देश में उपलब्ध नहीं है | अमेरिका , फ़्रांस , जर्मनी , ब्रिटेन आदि किसी भी देश में बायोमेट्रिक पहचान – पत्र नहीं है | ब्रिटेन में इसे लागू किये जाने को लेकर कुछ वर्ष ज़रूर काम हुआ , लेकिन यह आख़िरकार नाकाम साबित हुआ और इस परियोजना को रोक देना पड़ा | भारतीय सुप्रीमकोर्ट ने निजता के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत मिले जीवन और व्यक्तिगत आजादी के अधिकार के तहत एक मौलिक अधिकार माना है | अमेरिकी नागरिकों को भी यह अधिकार प्राप्त है , हालाँकि यह अधिकार उन्हें बहुत विलंब से मिला | अमेरिका में अदालतों ने इस अधिकार की रक्षा 19वीं सदी के अंत तक नहीं की क्योंकि कॉमन लॉ ने इसे मान्यता नहीं दी थी। इसे मान्यता तब मिली जब चार्ल्स वारेन तथा लूई ब्रैंडाइस ने हार्वाड लॉ रिव्यू (1890) में एक ऐतिहासिक लेख लिखा- ‘द राइट टू प्राइवेसी’। निजता के अधिकार से संबंधित सैकड़ों मामले अमेरिकी अदालतों के समक्ष आये | पहली बार इस मामले में न्यूयॉर्क ऐपेलेट कोर्ट ने रॉबर्सन बनाम रोचेस्टर फोल्डिंग बॉक्स कम्पनी (1902) में इस पर विचार किया और प्रतिवादी को इस अधिकार के उल्लंघन के लिए दोषी करार दिया। फिर ग्रिसवर्ल्ड मामले (1965) में जस्टिस डगलस ने कहा कि भले ही बिल ऑफ राइट्स में इस अधिकार का स्पष्ट उल्लेख नहीं है, यह अन्य अधिकारों में निहित है। अमेरिका में ‘ आधार ‘ नहीं पाया जाता | भारतीय सुप्रीमकोर्ट ने आर. बनाम गोविंद (1975) विवाद में अमेरिकी अदालत के स्टैंड का हवाला दिया था । यह सच है कि सार्वजनिक हित महत्वपूर्ण होते हैं , परन्तु ‘ आधार ‘ के मामले में पुख्ता तौर पर ‘ सार्वजनिक हित ‘ सामने नहीं आ सका है | आकड़ों आदि के दुरूपयोग का संशय अलग से बना हुआ है | इसके विवरण के दुरूपयोग को लेकर शंकाएं भी सामने आती रही हैं | नन्दन नीलेकणे के अमेरिकी उद्योगपतियों से गहरे रिश्ते प्रकाश में आए थे , हालाँकि अब उनका पहचान प्राधिकरण से संबंध नहीं है , फिर भी वे उसके बारे में सब कुछ जानते हैं | इस प्राधिकरण ने पहचान – पत्र बनाने और डाटा संग्रहण के लिए ख़ासकर तीन कंपनियों – एल – 1 आईडेंटटिटी सोल्यूशन , एसेंचर और महेंद्रा सत्यम – मोर्फो को भी लगाया है | इन कंपनियों के बड़े अधिकारियों में ऐसे लोग भी हैं , जिनके अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी सी आई ए और अन्य सैन्य संगठनों से संबंध हैं | कंपनी बोर्ड में जार्ज टेनेट भी हैं , जो सी आई ए के पूर्व निदेशक हैं | ये कंपनियां भारतीय नागरिकों के आंकड़ों का मनचाहा इस्तेमाल कर सकती हैं | आधार परियोजना दुनिया की सबसे बड़ी बायोमैट्रिक संग्रहण और पहचान परियोजना है , जिसमें इसके स्वामित्व, प्रौद्योगिकी और निजता से जुड़े खतरे शामिल हैं। पहले एक संसदीय समिति कह चुकी है कि आधार परियोजना में उद्देश्य की स्पष्ट्ता का अभाव है और अपने क्रियान्वयन में यह दिशाहीन है | आधार क़ानून में भी स्पष्टता का घोर अभाव है | जहाँ तक आधार की विश्वसनीयता का संबंध है , गाय , कुत्ता आदि के भी आधार कार्ड बन चुके हैं | हनुमान जी का भी आधार बना है | एक आदमी के दो आधार कार्ड बनाये जा चुके हैं और कई ऐसे देशवासी हैं , जिनके फिंगर प्रिंट न उभरने के कारण आधार कार्ड नहीं बन पाए हैं और वे सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने के लिए विवश हैं | उम्रदराज लोग फिंगर प्रिन्ट के न आने से आधार कार्ड की सुविधा से वंचित हैं और सभी को डर सताने लगा है कि कहीं वोट देने समेत अन्य अधिकारों और सुविधाओं से वंचित न हो जाएं। बहराइच के मोहल्ला बख्शीपुरा निवासी पं. बागीश पाल ने बताया कि मतदाता परिचय पत्र के लिये फॉर्म भरकर फिंगर प्रिंट देने गए तो मशीन पर फिंगर प्रिंट ही नहीं आया और उनको बैरंग वापस लौटना पड़ा। इस मोहल्ले के ही बड़ी संख्या में 65 से 85 वर्ष के उम्र के लोग आधार कार्ड की सुविधा से वंचित हैं। इसके अलावा मोहल्ला मीराखेल पुरा निवासी सेना से रिटायर्ड बनवारी लाल (65) ने बताया कि फॉर्म भरकर आधार कार्ड बनवाने का उपक्रम किया तो फिंगर प्रिंट न आने की बात कहकर कैंप से लौटा दिया गया। यही हाल उनकी मां फूलमती (85) के साथ भी हुआ। इतना ही नहीं, नगर समेत समूचे जिले में बड़ी संख्या में उम्रदराज लोग फिंगर प्रिंट के न आने से आधार कार्ड जैसी महत्वपूर्ण सुविधा से वंचित हैं। यह परेशानी उत्तर प्रदेश में ही नहीं, दूसरे राज्यों में भी सामने आ रही है। आधार कार्ड बनाने के लिए फिंगर प्रिंट और आंखों की पुतलियों की भी स्कैनिंग की जाती है। उम्रदराज लोगों के हाथ घिस जाने की वजह से फ्रिंगर प्रिंट नहीं आ पा रहे हैं। अतः आशा की जाती है कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ इस मामले के विभिन्न पहलुओं के मद्देनज़र अपना निर्णय सुनाएगी | – Dr RP Srivastava